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Updated on: 3 May, 2019 12:00 AM IST

देश भर में नींबू वर्गीय फलों की बागवानी व्यापक रूप से की जाती है। भारत में केले और आम के बाद नींबू का तीसरा स्थान है। इन फलों को भारत में आंध्र प्रदेश,गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तराखंड, बिहार असाम, राजस्थान, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में सफलतापूर्वक उगाया जाता है। पूरे साल इनकी उपलब्धता के कारण ये भारत में सबसे लोकप्रिय फल हैं। नींबूवर्गीय फल आर्थिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण हैं।

बागवानी की तकनीक

जलवायु एवं मृदा

नींबू वर्गीय फलों की बागवानी उपोष्ण तथा उष्णीय, दोनों प्रकार की जलवायु में अच्छी तरह से की जा सकती है। इस वर्ग के फलों की सामान्यतया बागवानी दोमट तथा बलुई दोमट मिट्टी,जहां जल निकास का उत्तम प्रबंधन हो एवं पी.एच.5.5से 7.2 तक हो, उपयुक्त है। अच्छी बढ़वार तथा पैदावार के लिए मृदा की गहराई 4 फीट से अधिक होनी चाहिए। सिंचाई के जल में 750 मि.ग्रा./लीटर से अधिक लवण होने पर इन किस्मों को लवण अवरोधी मूलवृत जैसे X.639 या आरएलसी X-6 पर लगाकर रोपण करना चाहिए।

बाग की स्थापना

प्रजातियों तथा किस्मों के आधार पर पंक्ति से पंक्ति तथा पौध से पौध की दूरी का निर्धारण करना चाहिए। साधारणतया कागजी नींबू, लेमन,मौसमी, ग्रेपफ्रूट तथा टेनजेरिन को 4x4 मीटर या 5x5 मीटर की दूरी पर लगाते हैं। पौध रोपण से पहले जून में 3x3x3 फुट आकार के गड्ढ़े खोद लिए जाते हैं। 10.15 दिनों बाद इन गड्ढ़ों को मिट्टी तथा साड़ी हुई गोबर की खाद (1:1के अनुपात में) भरने के बाद हल्की सिंचाई करें। इसके बाद पहली बरसात के बाद चुनी हुई किस्मों के पौधों का रोपण करना चाहिए।

खाद एवं उर्वरकः- खाद तथा उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। उपोष्ण जलवायु में गोबर की खाद की पूरी मात्रा का प्रयोग दिसंबर-जनवरी में तथा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग दो बराबर मात्रा बांटकर करना चाहिए। लेमन को छोड़कर सभी किस्मों में पहली खुराक मार्च में और दूसरी जुलाई- अगस्त में देना चाहिए। लेमन में उर्वरक एक बार मार्च-अप्रैल में प्रयोग करना चाहिए। उर्वरकों का प्रयोग करते समय पर्याप्त नमी होनी चाहिए, अन्यथा प्रयोग के बाद सिंचाई आवश्यक है। अगर दीमक की समस्या हो तो क्लोरोपाइरीफॉस या नीम की खली का प्रयोग करें।

सिंचाईः- उपरोक्त सभी प्रजातियों का प्रतिरोपण करने के तुरन्त बाद बाग की सिंचाई करें। पौधों की सिंचाई उनके आस-पास थाला पद्धति में गर्मियों के मौसम में हर 10 या 15 दिनों के अंतर पर और सर्दियों के मौसम में प्रति 4 सप्ताह बाद सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई करते समय ध्यान रखें कि सिंचाई का पानी पेड़ के मुख्य तने के सम्पर्क में न आए। इसके लिए मुख्य तने के आसपास मिट्टी डाल देनी चाहिए। उपोष्ण जलवायु में अच्छे फूलन के लिए फूल आने से पहले तथा इसके दौरान सिंचाई न करें।

निराई- गुड़ाईः- पौधों में अच्छी वृद्धि तथा बढ़वार के लिए उपरोक्त प्रजातियां/किस्मों के बागों की गहरी जुताई नहीं करनी चाहिए। इन पेड़ों की जड़ें जमीन की उपरी सतह में रहती है। और गहरी जुताई करने से उनके नष्ट हो जाने का खतरा रहता है।

  की कोशिका से रस चूस लेता है। कीटों द्वारा कोशिका रस चूस लिए जाने के कारण पत्तियां, कलियां और फूल मुरझा जाते हैं। यह कीट हमेशा फूल आने के समय आक्रमण करता है। इसके साथ-साथ यह कीट एक किस्म के विषाणुओं को भी फैलाता है, जिससे नींबू की पैदावार कम होती है। इस कीट की रोकथाम के लिए 15 मि.ली. -मैलाथियान को 10 लीटर पानी में बने घोल का छिड़काव फूल आने से पहले करनी चाहिये। इसके अलावा फोरेट 10 जी का प्रयोग मृदा में किया जा सकता है।

पर्णसुरंगीः- यह कीट मीठी नांरगी, नींबू, ग्रेपफ्रूट आदि सभी पौधों को नुकसान पहुंचाता है। यह हमेशा नई पत्तियों निकलते समय आक्रमण करता है। यह कीट बाग के पेड़ों के अतिरिक्त नर्सरी के पौधों को भी नुकसान पहुंचाता है। इसकी इल्लियां पत्तियों में टेढ़ी-मेढ़ी सुरंग बनाती हैं। जब पेड़ों में नये फुटाव हो रहे हों तब मोनोक्रोटोफॉस 3.5 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी) में घोल बनाकर दो छिड़काव 15 दिनों के अंतर पर करें।

मिलीबगः- ये कीट कोमल शाखाओं एवं पुष्पक्रम आदि पर चिपक कर रस चूसते हैं, जिससे फूल तथा फल गिरने लगते हैं। इनकी रोकथाम के लिए कार्बोसल्फान (5मि.ली.प्रति10 लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करना चाहिए। पौधों के थालों में गहराई करके खरपतवार निकाल देने चाहिए और पौधों की पंक्तियों में बीच में ग्लाइफोसेट 5 मि.ली./लीटर का घोल बनाकर छिड़काव करें।

रोग फाइटोप्थोरा सड़न :- यह रोग उपरोक्त सभी किस्मों को प्रभावित करता है। जलभराव होने के कारण यह रोग अधिक फैलता है। त्वचा का सड़ना, जड़ों का सड़ना, अत्यधिक गोंद निकलना तथा पौधों का सूखना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं।

जहां पानी का भराव अधिक होता है, वहां यह रोग अधिक होता है, पौधशाला को फाइटोप्थोरा रहित जल निकास, तनों के चारों तरफ 60 सें.मी.उंचाई तक बोर्डेक्स मिश्रण का लेप लगाने, अवरोधी मूलवृंत पर 30 सें.मी. उंचाई पर कलिकायन करने से रोग को फैलाने से रोका जा सकता है। रोग फैलने से रोकने के लिए बोर्डो पेस्ट(मि.ग्रा. 1मि.ग्रा. कॉपर सल्फेट $10 लीटर पानी) से पौधों की 2-3 फीट उंचाई तक पुताई वर्ष में दो बार अवश्य करें। रोग का संक्रमण होने पर रिडोमिल गोल्ड (2.5 ग्रा/लीटर) पानी का घोल बनाकर पेड़ के थालों में भरें तथा इसी घोल का पर्णीय छिड़काव करें।

फलों की तुडाईः- उपरोक्त किस्मों की तुड़ाई अलग-अलग समय पर की जाती है। लेमन तथा कागजी नींबू 150 - 180 दिनों में पककर तैयार हो जाते हैं। वहीं मीठी नारंगी तथा ग्रेपफूट 260 -280 दिनों में पकते हैं। इसके अलावा किन्नों तथा टेंजेरिन 300 से अधिक दिनों में पकते हैं। फलों को तोड़ते समय इस बात की विशेष सावधानी बरतनी होती है कि फलों की तुड़ाई बाजार की मांग तथा प्रचलित फलों के मूल्य को ध्यान में रखकर करनी चाहिए कागजी नींबू एवं लेमन के फल हल्के पीले होने पर तोड़ने चाहिए जबकि मीठी नारंगी तथा किन्नो का कुल ठोस पदार्थ तथा अम्लता का अनुपात 14 से अधिक हो, तो तोड़ने चाहिए।

इस प्रकार नींबूवर्गीय किस्मों में विविधीकरण करके तथा उनका वैज्ञानिक विधियों से बाग प्रबंधन करने से अधिक उत्पादन के साथ -साथ वर्ष भर आमदनी की जा सकती है तथा किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सकती है।

नींबू का नासूर - केंकर रोगः- यह मुख्यतया कागजी नीबू तथा ग्रेपफ्रूट के पौधों और फलों को प्रभावित करता है। बरसात के मौसम में यह रोग आमतौर पर दिखाई देता है। यह पत्तियों, टहनियों,  कांटों और फलों को प्रभावित करता है। सबसे पहले पौधों के उक्त भागों में छोटे- छोटे हल्के पीले रंग के धब्बे पड़ जाते है। अंततः ये धब्बे उठे हुए और खुरदरे हो जाते है। इस रोग की रोकथाम हेतु मुख्यतः प्रभावित शाखाओं को काटकर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर का घोल बनाकर छिड़काव करें। इसके अलावा, स्ट्रेप्टोसाइक्लीन नामक रसायन की एक ग्राम मात्रा को 50 लीटर पानी में घोलकर 3 व 4 बार छिड़कने से अथवा एक गा्रम पानी की खली को 20 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव से भी इस रोग से भी इस रोग से छुटकारा पाया जा सकता है।

लेखक:

सोनू दिवाकर, एस.पी.शर्मा, ललित कुमार वर्मा, अशुतोष अनन्त,  

पंडित किशोरी लाल शुक्ला उद्यानिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, राजनांदगांव (..)491441

English Summary: Earn more lemon from year to year
Published on: 03 May 2019, 07:30 IST

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