घृतकुमारी के पत्ते लंबे, फलदार, हरे और एक से डेढ़ फुट तक लम्बे होते हैं. इसके पत्तों के अन्दर चमकदार गुदा होता है, जो स्वाद में कड़वा होता है. पत्तों को काटने पर एक पीले रंग का द्रव्य निकलता है जो ठण्डा होने पर जम जाता है. यह मुख्यत: फलोरिडा, वेस्टइंडीज, मध्य अमेरिका तथा एशिया महाद्वीप में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है. भारत में इसकी खेती राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र तथा हरियाणा के शुष्क इलाकों में होती है.
जलवायु
घृतकुमारी को मुख्यतः गर्म आर्द्र और शुष्क, उष्ण जलवायु की जरुरत होती है. इसकी खेती असिंचित तथा सिंचित दोनों प्रकार के खेत में की जाती है, परन्तु इसकी खेती हमेशा ऊँची भूमि पर करनी चाहिये.
खाद
वर्षा ऋतु से पहले खेत की एक दो बार जुताई कर लेनी चाहिए. यह 20 से 30 सेमी की गहराई तक पर्याप्त है. जुताई के बाद खेतों में 10 से 15 टन गोबर की खाद मिला दें.
बुवाई
इसकी बिजाई सिंचित क्षेत्रों में सर्दी को छोड़कर पूरे वर्ष में की जा सकती है. इसके लिए मुख्यत: जुलाई-अगस्त का मौसम उचित माना जाता है. एक एकड़ की भूमि के लिए करीब 5000 से 10000 पौधों की जरूरत होती है. पौध की संख्या भूमि की उर्वरता और कतार से कतार की दूरी पर निर्भर करती है.
सिंचाई
इसके बीजों को बोने के बाद खेत में एक सिंचाई की जरुरत होती है. इसके अच्छे उपजाऊपन के लिए आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिये.
गुड़ाई
फसल बिजाई के एक मास बाद इसकी पहली निकाई और गुड़ाई करनी चाहिए. इन पौधों की लगभग 2-3 गुड़ाई प्रति वर्ष करनी चाहिये तथा समय-समय पर खरपतवार को भी साफ करते रहना चाहिए.
कटाई
इस फसल पर किसी तरह के कीटों एवं बीमारी का प्रकोप नहीं पड़ता है पर कभी-कभी दीमक लग जाते हैं. पौधे लगाने के एक वर्ष बाद यह परिपक्व होते हैं. इसके पत्तियों को तेज धारदार हांसिये से काटना चाहिए. पत्ता काटने की यह क्रिया प्रत्येक तीन-चार महीने पर करते रहना चाहिए.
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बिक्री
एक एकड़ के खेत में घृतकुमारी का 20 हजार किलो का उत्पादन किया जा सकता है. इसकी ताजा पत्तियों का वर्तमान भाव 4 से 8 रू प्रति किलोग्राम है. इसे आयुर्वेदिक दवाईयां बनाने वाली कंपनिया तथा प्रसाधन सामग्री निर्माताओं को बेचा जा सकता है.