भारत में लौंग का उपयोग घर-घर में होता है. पुराने समय से ही कभी इसका इस्तेमाल मसालों के रुप में होता आया है, तो कभी लोग इसे धार्मिक कार्यों के लिए उपयोग करते हैं. खाने में अपना विशेष स्थान रखने वाला लौंग कई औषधीय तत्वों से भी भरपूर होता है. यह एक सदाबहार पेड़ है और एक बार लगाने के बाद इसका पौधा कई सालों तक फल देता रहता है.
वैसे भारत के लगभग सभी राज्यों में लौंग की खेती होती है. हालांकि इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त तटीय रेतीले इलाकों को ही माना गया है. चलिए आज हम आपको लौंग की खेती के बारे में विस्तार से बताते हैं.
जलवायु एवं मिट्टी
लौंग की खेती को उष्णकटिबंधीय जलवायु में आराम से की जा सकती है. इसके पौधें अधिक धूप या अधिक सर्दी सहन नहीं कर पाते. अच्छे विकास के लिए इनकी निर्भरता आम तौर पर बारिश पर होती है. इनकी खेती के लिए छायादार जगहों का प्रबंध करना जरूरी है. गर्मियों के मौसम में वैसे ये 30 से 35 डिग्री तक का तापमान सह सकते हैं, इसकी खेती के लिए नम कटिबंधीय क्षेत्र लाभकारी हैं. इसकी खेती जल भराव वाली मिट्टी में नहीं की जा सकती.
बीज
लौंग के माता पेड़ से पके हुए कुछ फलों को इक्कठा करने के बाद तैयार किए जाते हैं. बीजों की बुवाई से पहले उन्हें रात भर भिगोकर रखना चाहिए और बुवाई से पहले फली को हटा देना चाहिए.
रोपण करने का तरीका
लौंग के पौधों की रोपाई मानसून के वक्त किया जाता है. पौधों को रोपने का सही महीना जून से जुलाई का है. रोपाई के लिए 75 सेंटीमीटर लम्बा, चौड़ा और गहरा गड्डा खोदना चाहिए. ध्यान रहे कि एक गड्डे से दूसरे गड्डो की दूरी 6 से 7 सेंटीमीटर तक हो.
सिंचाई
लौंग की खेती की सिंचाई जरूरत के हिसाब से की जा सकती है. गर्मियों के मौसम में इसकी लगातार सिंचाई की जानी चाहिए.
फलों की तुड़ाई
लौंग के पौधों से करीब 4 से 5 साल में फल प्राप्त होना शुरू होता है. इसके फल पौधों पर गुच्छों के आकार में लगते हैं, जिनका रंग गुलाबी होता है. इनके फूलों को खिलने से पहले ही तोड़ लिया जाता है. इनके फलों की लम्बाई अधिकतम दो सेंटीमीटर हो सकती है.