Success Story: चायवाला से उद्यमी बने अजय स्वामी, मासिक आमदनी 1.5 लाख रुपये तक, पढ़ें सफलता की कहानी ट्रैक्टर खरीदने से पहले किसान इन बातों का रखें ध्यान, नहीं उठाना पड़ेगा नुकसान! ICAR ने विकसित की पूसा गोल्डन चेरी टमाटर-2 की किस्म, 100 क्विंटल तक मिलेगी पैदावार IFFCO नैनो जिंक और नैनो कॉपर को भी केंद्र की मंजूरी, तीन साल के लिए किया अधिसूचित एक घंटे में 5 एकड़ खेत की सिंचाई करेगी यह मशीन, समय और लागत दोनों की होगी बचत Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Goat Farming: बकरी की टॉप 5 उन्नत नस्लें, जिनके पालन से होगा बंपर मुनाफा! Mushroom Farming: मशरूम की खेती में इन बातों का रखें ध्यान, 20 गुना तक बढ़ जाएगा प्रॉफिट! सबसे अधिक दूध देने वाली गाय की नस्ल, जानें पहचान और खासियत
Updated on: 16 April, 2020 12:00 AM IST

औषधीय पौधों में अतीस को खास स्थान प्राप्त है. इसे संस्कृत में विषा या अतिविषा कहा जाता है तो मराठी में अतिविष के नाम से जाना जाता है. इसी तरह अन्य क्षेत्रीय भाषाओं जैसे गुजराती में अति बखनी कली आदि के नाम से जाना जाता है. इसका उपयोग कई तरह की बीमारियों जैसे कफ, पित्त, अतिसार आदि में होता है. डॉक्टर्स भी कई तरह के विष और  खांसी के उपचार में इसके सेवन की सलाह देते हैं. आज के संदर्भ में देखा जाए तो इस फसल की बाजार में भारी मांग है. शायद यही कारण है कि सरकरा इस पौधें की खेती पर 75 प्रतिशत अनुदान दे रही है. यह अनुदान एनएमपीबी द्वारा दिया जा रहा है. चलिए हम आपको आज अतीस की खेती के बारे में बताते हैं.

अतीस की होती है वार्षिक खेती

अतीस का पौधा वार्षिक खेती के लिए जाना जाता है, जबकि इसकी जड़ दिवर्षीय होती है. इसके तने सीधे होते हैं और जिन पर आमतौर पर कोई शाखा नहीं होती. पत्तियां में चिकनाहट होती है और वो डंठली रहित होते हैं. आम तौर पर इनके कंदों की लम्बाई 3 सेमी की होती है, जो आकार में शंकु की तरह दिखाई देते हैं.

जलवायु और मिट्टी

इसकी खेती के लिए समुद्र तल से 2200 मीटर की ऊंचाई के क्षेत्र उपयुक्त माने गए हैं. जैविक और रेतिली मिट्टी में भी इसकी खेती आराम से की जा सकती है. इसे प्रचुर मात्रा में हवा, नमी एवं खुली धूप की जरूरत पड़ती है. बीज, कंद एवं तना इसकी रोपण सामाग्री के लिए जाने जाते हैं.

नर्सरी की तैयारी

इस पौधे को तैयार करने के लिए सबसे पहले बीजों को 0.05 सेमी गहराई और 2 सेमी की दूरी पर लगाएं. रोपण कार्य करने से पहले भूमि की जुताई कर खेतों को अच्छे से समतल करना जरूरी है. प्रत्यारोपण के लिए 10 से 15 दिन बाद पूर्व खाद को मिट्टी में मिलाने का कार्य करें.

सिंचाई

गर्मियों में सिंचाई क्रिया जल्दी प्रारंभ करनी चाहिए. जबकि शुष्क मौसम में सप्ताह में एक बार सिंचाई का काम किया जा सकता है. अगर आप एलपाइन क्षेत्रों में इसकी खेती कर रहे हैं तो नेचुरल तौर से फूल सितंबर महीने तक आ जाते हैं. हालांकि फलों के आने का उचित समय नवम्बर माह ही है. इसके बारे में अन्य तरह की जानकारी के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. अनुदान के बारे में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए टेबल पर ध्यान दें.


 

अनुमानित लागत

देय सहायता

पौधशाला

 

 

पौध रोपण सामग्री का उत्पादन

 

 

क) सार्वजनिक क्षेत्र

 

 

1) आदर्श पौधशाला (4 हेक्टेयर )

 25 लाख रूपए

अधिकतम 25 लाख रूपए

2) लघु पौधशाला  (1 हेक्टेयर )

6.25 लाख रूपए

अधिकतम 6.25 लाख रूपए

ख) निजी क्षेत्र (प्रारम्भ में प्रयोगिक आधार पर )

 

 

1) आदर्श पौधशाला  (4 हेक्टेयर)

25 लाख रूपए

लागत का 50 प्रतिशत परंतु 12.50 लाख रूपए तक सीमित                         

2) लघु पौधशाला  (1 हेक्टेयर )

6.25 लाख रूपए

लागत का 50 प्रतिशत परंतु 3.125 लाख रूपए तक सीमित

English Summary: 75 percent subsidy on Wolfs bane farming know more about it
Published on: 16 April 2020, 10:21 IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now