Cold wave impact on banana and papaya: जनवरी माह में उत्तर भारत में अत्यधिक ठंढक की वजह से केला पपीता जैसे फल फसलों के विकास पर बहुत ही विपरित प्रभाव पड़ता है ,बाग बीमार एवं रोगग्रस्त दिखाई देते है. शीत लहर, पाला और अत्यधिक ठंढक (कम तापमान) के कारण केले और पपीते के पौधों को भारी नुकसान हो सकता है. ठंढ से बचाव के लिए किसानों को समय पर उचित प्रबंधन करना आवश्यक है. फरवरी माह में तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है, लेकिन शीतलहर और ओस की संभावना बनी रहती है, जिससे पौधों को अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है. आइए जानते है केले और पपीते के पौधों को ठंढ से हुए नुकसान को कम करने के लिए फरवरी में किए जाने वाले उपायों के बारे में....
1. केले के पौधों में हुए ठंढ जनित नुकसान और उनके समाधान
(क) ठंढ से होने वाले प्रमुख नुकसान
- पत्तियों का झुलसना (Chilling Injury): अत्यधिक ठंढ के कारण पत्तियाँ पीली या भूरी होकर सूखने लगती हैं.
- तनों पर फटने या काले धब्बे पड़ने की समस्या: ठंढ के प्रभाव से तने की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं जिससे तना फटने लगता है.
- फल की वृद्धि पर असर: कम तापमान के कारण केले की बढ़वार रुक जाती है और फलों का आकार छोटा रह जाता है.
- जड़ क्षय (Root Rot): अधिक ठंढ व नमी के कारण जड़ें प्रभावित हो सकती हैं जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं.
(ख) फरवरी में ठंढ के प्रभाव को कम करने के लिए उपाय
- खेत प्रबंधन: प्रभावित केले के पौधों के सूखे और जले हुए पत्तों को काटकर हटा दें, ताकि नए पत्तों को अच्छा विकास करने का अवसर मिले. खेत में नमी बनाए रखने के लिए हल्की सिंचाई करें. अत्यधिक पानी से बचें क्योंकि यह जड़ सड़न (Root Rot) को बढ़ावा दे सकता है. जैविक मल्चिंग (खेत में सूखी घास, पुआल या गन्ने की सूखी पत्तियां बिछाना) करें ताकि मिट्टी का तापमान बना रहे.
- उर्वरक और पोषण प्रबंधन: फरवरी में जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, केले के पौधों में वृद्धि फिर से शुरू होती है. इस समय हल्की गुड़ाई करने के बाद प्रति केला 200 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश एवं 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करें ,अप्रैल आते आते केला का बाग पुनः हरा भरा दिखने लगेगा. म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP - Muriate of Potash) का प्रयोग करने से केला के पौधों में ठंढ सहन करने की क्षमता बढ़ती है. आवश्यकतानुसार सूक्ष्म पोषक तत्वों (Zn, B, Fe) का छिड़काव करें ताकि पौधे तेजी से उबर सकें. गोबर खाद या वर्मीकंपोस्ट का प्रयोग करें ताकि मिट्टी में जीवांश की मात्रा बढ़े और पौधे को पर्याप्त पोषण मिले.
- जैविक और रासायनिक उपचार: पोटेशियम नाइट्रेट (1%) या कैल्शियम नाइट्रेट (1%) का छिड़काव करने से पौधों को ठंढ से उबरने में सहायता मिलती है. ठंढ के कारण यदि तनों में फटने या काले धब्बे (Blackening) की समस्या हो तो बोर्डो पेस्ट (Bordeaux Paste) का लेप करें. यदि फंगस जनित रोगों की संभावना हो तो ट्राइकोडर्मा हार्ज़ियनम (Trichoderma harzianum) या Pseudomonas fluorescens जैविक कवकनाशी का प्रयोग करें.
2. पपीते के पौधों में हुए ठंढ जनित नुकसान और उनके समाधान
(क) ठंढ से होने वाले प्रमुख नुकसान
- पत्तियों और तने पर जलने के निशान: अत्यधिक ठंढ से पत्तियाँ और तने झुलस सकते हैं.
- फलों की गुणवत्ता में गिरावट: ठंढ के कारण फल कठोर हो सकते हैं और उनका पकना प्रभावित हो सकता है.
- जड़ और तने की सड़न: ठंढ और अधिक नमी के कारण पपीते की जड़ों और तने में फफूंदजनित बीमारियाँ (Fusarium या Phytophthora) लग सकती हैं.
(ख) फरवरी में ठंढ के प्रभाव को कम करने के लिए उपाय
- खेत प्रबंधन: प्रभावित पत्तियों को काटकर हटा दें ताकि पौधे को नई वृद्धि के लिए ऊर्जा मिल सके. हल्की सिंचाई करें, लेकिन जलभराव से बचें ताकि जड़ें सड़ने न लगें. खेत में मल्चिंग (पुआल, गन्ने की पत्तियाँ या सूखी घास) करें ताकि मिट्टी का तापमान बना रहे.
- उर्वरक और पोषण प्रबंधन: अक्टूबर में लगाए गए पपीता में निराई-गुड़ाई करे , हल्की गुड़ाई करने के बाद प्रति पौधा 100 ग्राम यूरिया, 50 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश एवं 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करें. समयानुसार हल्की हल्की सिचांई करते रहे . पपीता में लगने वाले जड़ फलन एवं विषाणु जनित रोगों के लिए बताए गए उपाय को हर महीने करते रहे. मार्च अप्रैल में पपीता लगाने के लिए ,पपीता के बीज को नर्सरी में डाले. जैविक खाद (वर्मी कम्पोस्ट या गोबर खाद) डालें ताकि मिट्टी में जीवांश तत्व बढ़ें. यदि पत्तियाँ पीली पड़ रही हों तो जिंक सल्फेट (ZnSO₄ - 0.5%) और बोरॉन (3%) का छिड़काव करें.
- जैविक और रासायनिक उपचार: पत्तियों और तनों पर बोर्डो मिक्सचर (1%) या कार्बेन्डाजिम (1%) का छिड़काव करें ताकि फंगल संक्रमण से बचा जा सके. यदि तने में दरारें पड़ गई हों तो नीम तेल (Neem Oil - 2%) या बोर्डो पेस्ट लगाएं. ट्राइकोडर्मा हार्ज़ियनम (Trichoderma harzianum)या सुडोमोनस फ्लोरोसेंस (Pseudomonas fluorescens) का छिड़काव करें ताकि मिट्टी में फफूंदजनित रोग न फैलें.
केला और पपीता ठंढ-संवेदनशील फसलें हैं, और अत्यधिक ठंढक से इनकी बढ़वार और उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है. फरवरी माह में तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है, जिससे पौधों की वृद्धि पुनः शुरू होती है. इस समय प्रभावित पौधों की देखभाल करके और उचित पोषण देकर उनके विकास को पुनः पटरी पर लाया जा सकता है. मल्चिंग, संतुलित पोषक तत्वों का प्रयोग, और जैविक तथा रासायनिक उपाय अपनाकर ठंढ से हुए नुकसान को कम किया जा सकता है, जिससे स्वस्थ पौधों और अच्छे उत्पादन की संभावना बनी रहती है.