थनैला रोग का अर्थ दूध देने वाले पशु के अयन एवं थन की सूजन तथा दूध की मात्रा एवं रासायनिक संगठन में अन्तर आना होता है. अयन में सूजन, अयन का गर्म होना एवं अयन का रंग हल्का लाल होना इस रोग की प्रमुख पहचान है.
दूध निकालने पर दूध के साथ रक्त भी आता है जिससे दूध का रंग हल्का लाल हो जाता है. दो या तीन दिन बाद इससे दूध आना बन्द हो जाता है और अगर दूध निकलता भी है तो इसके साथ-साथ दूध के छीछड़े भी निकलते है.
पशु को हल्का बुखार भी रहने लगता है. लगभग एक सप्ताह बाद थन काफी बड़ा हो जाता है और अगर उचित चिकित्सा न हो तो अयन सूख जाता और थन मर जाता है. थनैला रोग विश्व के सभी भागों में पाया जाता है. इससे दुग्ध उत्पादन का ह्रास होता हे. दुग्ध उद्ध्योग को भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ती है. थनैला रोग जीवाणुओं, विषाणुओं, प्रोटोजोवा आदि के संक्रमण से होता है. संक्रमण के दोरान कई कारक स्वतः ही दूध में आ जाते हैं. उक्त दूध को मनुष्यों द्धारा उपयोग करने पर कई बीमारियां हो सकती हैं. इस कारण यह रोग और भी हानिकारक हो जाता है.
उपचार एवं रोकथाम:
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बीमारी पशु के अयन एवं थन की सफाई रखनी चाहिए.
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बीमारी की जांच शुरू के समय में ही करानी चाहिए.
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थन या अयन के उपर किसी भी प्रकार के गर्म पानी, तेल या घी की मालिश नहीं करनी चाहिए.
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दूध निकालने से पहले एवं बाद में किसी एन्टीसेप्टिक लोशन से धुलाई करनी चाहिए.
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अधिक दूध देने वाले पशुओं को थनैला रोग का टीका लगवाना चाहिए.
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कभी-कभी बच्चों के दूध पीते समय थनों पर दांत लग जाते हैं उस पर बोरिक मलहम जेनसियन वायलेट क्रीम या हिमैकस- डी लगाना चाहिए.
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पशु में बीमारी होने पर तत्काल निकट के पशु चिकित्सालय से सम्पर्क कर उचित सलाह लेना चाहिए.
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दुधारू पशु से संम्बन्धित सावधानियां:
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दूध देने वाला पशु स्वस्थ होना चाहिए. टी. बी., थनैला इत्यादि बीमारियां नहीं होनी चाहिए. पशु की जांच समय पर पशु चिकित्सय से कराते रहना चाहिए.
दूध दुहने से पहले पशु के शरीर की अच्छी तरह सफाई कर लेना चाहिए. दुहाई से पहले पशु के शरीर पर खरैरा करके चिपका हुआ गोबर, धूल, कीचड़, घास आदि साफ कर लेनी चाहिए. खास तौर पर पशु के शरीर के पिछले हिस्से, पेट, अयन, पूंछ व पेट के निचले हिस्से की विशेष सफाई रखनी चाहिए.
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दुहाई से पहले अयन की सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. अयन एवं थनों को किसी जीवाणु नाशक घोल से धोया जाए तथा घोल से भीगे हुए कपउे से पोंछ लिया जाए.
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यदि किसी थन में बीमारी हो तो उससे दूध निकाल कर फेंक देना चाहिए.
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दुहाई से पहले प्रत्येक थन की दो चार बूदं की धारें जमीन पर गिरा देना चाहिए या बर्तन में इकट्रठा कर लेना चाहिए.
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दुधारू पशु को बांधने के स्थान से सम्बन्धित सावधानियां:
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पशु बांधने का व खडे होने का स्थान पर्यात होना चाहिए.
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फर्श यदि सम्भव हो तो पककी होनी चाहिए, यदि पक्की नहीं हो सके तो कच्ची फर्श समतल हो तथा उसमें गडढे इत्यादि न हों. मूत्र व पानी निकालने की व्यवस्था होनी चाहिए.
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दूध दुहने से पहले पशु के चारों ओर सफाई कर लेनी चाहिए. गोबर, मूत्र हटा देना चाहिए. यदि बिछावन बिछाया है तो दुहाई से पहले उसे हटा लेना चाहिए.
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दूध निकालने वाले स्थान की दीवारे, छत आदि साफ होनी चाहिए. उनकी चूने की पुताई करवा लेनी चाहिए तथा फर्श की फिनाइल से धुलाई दो घण्टे पहले ही कर लेनी चाहिए.
दूध के बर्तन से सम्बन्धित सावधानियां.
दूध दुहने का बर्तन साफ होना चाहिए. उसकी सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए. दूध के बर्तन को पहले ठण्डे पानी से फिर सोडा या अन्य जीवाणुनाशक रसायन से मिले पानी से फिर सादे खोलते हुए पानी से धोकर धूप में, चूल्हे के उपर उल्टी रखकर सूखा लेना चाहिए. साफ किये हुए बर्तन पर मच्छर, मक्खियों को नहीं बैठने देना चाहिए.
दुध दुहने के बर्तन का मुंह चौरा व सीधा आसमान मे खुलने वाला नहीं होना चाहिए क्योकि इससे मिट्रटी, धूल, आदि के कण व घास फुस के तिनके ,बाल आदि सीधे दुहाई के समय बर्तन में बिर जायगे इसलिए बर्तन संकरे मुंह वाले एंव टेढा होना चाहिए. बर्तन पर जोंड व कोने कम से कम होने चाहिए.
स्वच्छ दुग्ध उत्पादन
पशु का दुहान नियमित रूप से निश्चिय समय पर करें. दुहान से पूर्व जनन अंगों एवं अयन को लाल दवायुक्त पोटेशियम परमैगनेट पानी से साफ करें. दुहान का बर्तन उपर से आधा तिरछा/ढका हुआ हो. दुहान निरोग व्यक्ति द्धारा हाथों को साबुन से स्वच्छ कर लाल दवा से धोकर किया जाये. दुहान के समय शान्ति का माहौल हो अथवा हल्का संगीत बजाने से अधिक दुग्ध उत्पादन मिलता है.
दुहान का कार्य शीघ्रता से एक बार मे पूरा करना चाहिए. दुग्ध की प्रारम्भिक धार प्रयोग में नहीं लानी चाहिए. उसे फेंक देना चाहिए. गर्मियों में दिन में एक बार पशु को नहलायें एवं अधिक दुग्ध उत्पाद प्राप्त करें. दुहान के समय गंध वाला आहार न खिलायें ग्वालों को इत्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए अन्यथा दूध में गंध आ जायेगी.
लेखक:
डॉ. सूदीप सोलकी, डॉ.दुर्गा गुर्जर, सहायक आचार्य (वेटनरी माईक्रोबायोलॉजी) टीचिगं एसोसियेट
पशुचिकित्सा महाविधालय,नवानियां, उदयपुर, पशुचिकित्सा महाविधालय,नवानियां, उदयपुर