भारत में ईमू पालन से पशुपालकों को बड़ा मुनाफा हो रहा है. इसका व्यापार मुख्य तौर पर दिल्ली, आंध्रा प्रदेश, कर्नाटक, तामिलनाडू जैसे राज्यों में लोकप्रिय है. इसके साथ ही महाराष्ट्र और केरला जैसे उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में इसका व्यापार किया जाता है. वसा रहित होने के कारण मीट के रूप में इसकी मांग अन्य पशुओं से अधिक है.इसके मीट में उच्च मात्रा में आयरन, प्रोटीन और विटामिन जैसे पोषक तत्व होते हैं. मीट के अलावा इनके तेल, त्वचा और पंखों काव्यापार भी होता है. एक प्रौढ़ ईमू की लंबाई 5-6 फीट हो सकती है, जबकि इनका भार 60 किलो तक हो सकता है. चलिए आज आपको हम ईमू पालन के बारे में बताते हैं.
ईमू पालन के लिए क्षेत्र
ईमू पालन का कार्य बड़ी आसानी से शेल्टर लगाकर किया जा सकता है. इसके पालन के लिए ऐसे क्षेत्र का चयन करें, जहां उचित मात्रा में ताजे और साफ पानी की उपलब्धता हो. क्षेत्र शहर से समीप ही हो, तो अधिक बेहतर है. इससे मजदूरों की उपलब्धता, आवाजाई प्रणाली आदि में आसानी होगी.ध्यान रहे कि ईमू को दौड़ने काशौक होता है, जो इसके विकास में सहायक भी है. इसलिए क्षेत्र का चुनाव खुली जगह वाला होना चाहिए. विशेषज्ञों के मुताबिक लगभग 50 बच्चों के लिए 50x30 फीट खुली जगह की जरूरत होती है.
छोटे बच्चों की देखभाल
ईमू के छोटे बच्चों की खास देखभाल करनी चाहिए. 1 दिन के ईमू का भार 450 ग्राम तक हो सकता है. नए जन्में बच्चे को सूखने के लिए 3 दिन तक इन्क्यूबेटर में रखना जरूरी है. उसके बाद बच्चों को 3 सप्ताह के लिए ब्रूडर में रखना चाहिए.
चारा
इनको खाने में उचित मात्रा विटामिन ए, विटामिन बी12, विटामिन डी वाला भोजन देना चाहिए. वैसे इस बात का भी ख्याल रखें कि हर ईमू की खुराक एक समान नहीं होती, इसलिए विशेषज्ञों से सलाह लेकर ही चारे का प्रबंध करें.
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