पशुपालन में बछड़े के जन्म देने या प्रसव के बाद अच्छी मात्रा में दूध देने वाली गाय और भैंस का शारीरिक वजन कम होने लगता है, जिससे बॉडी कंडीशन स्कोर कम हो जाता है. इससे पशु में नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है. इसका कारण यह है कि दुग्धस्त्रवण के प्रारम्भिक दिनों में दूध निर्माण के दौरान चाही गयी ऊर्जा की मांग पशुओं को आहार से प्राप्त होने वाली ऊर्जा से अधिक हो जाती है. इसका मतलब यह है कि पशु को खिलाया जाने वाला चारा उनकी ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा नहीं कर पा रहा है.
वजन में कमी का मुख्य कारण यह है कि पशु उनके शरीर में जमा या संग्रहित फैट को पोषक तत्वों की अधिक आवश्यकताओं (विशेषतः ऊर्जा आवश्यकताओं) की पूर्ति करने के लिए स्तन ग्रंथि की ओर फैला देते या पलट देते हैं. लेकिन इसके बाद भी ये जमा फैट भी दूध उत्पादन के लिए पशु की वास्तविक क्षमता के हिसाब से पर्याप्त नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप दूध की उत्पादन मात्रा में कमी आती है.
आहार के माध्यम से पशुओं को जितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उसकी आपूर्ति में कमी होने से पशुओं की प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होती है. यह एक बछड़ा होने के बाद देरी से गर्भाधान का कारण बन सकता है. ऐसी स्थिति में यदि आप पशु को अतिरिक्त आहार दे रहे हैं, तो इसका कोई फायदा नहीं होता है. यदि अधिक मात्रा में मोटा चारा (रफिज़) खिलाया जाता है, तो हो सकता है कि पहले तो पशु इसे खाये ही नहीं. और यदि वह ज्यादा खा भी लेता है तो इससे उसका रूमेन (पेट) पूरा भर जाएगा और यह सीधे पाचनशक्ति को प्रभावित करेगा.
और यदि हम अधिक ऊर्जा देने वाले कंसन्ट्रेट देने की कोशिश करते हैं, तो रुमेन में प्रोपियोनिक एसिड के अधिक उत्पादन के कारण, एसिडोसिस की खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है. यह चयापचय स्तर/ऊतक स्तर पर गड़बड़ी पैदा करता है तथा कम रेशेदार भोजन को पचाने की क्षमता को कम करता है, जिससे कीटोसिस (रक्ताम्लता ) नामक स्थिति पैदा होती है.
लेकिन सौभाग्य से, आज हमारे पास इस चयापचय समस्या को दूर करने के लिए एक उपाय है. जी हाँ! और वह उपाय है -बायपास फैट तकनीक. बायपास फैट दानों के रूप में बाज़ार में (कैल्शियम लवण के फैटी एसिड) के नाम से उपलब्ध है.
पशुओं में दुग्धस्त्रवण की निरंतरता तथा प्रजनन क्षमता हेतु पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा को बनाये रखने के लिए यह तकनीक वास्तव में फैट के रूप में उच्च ऊर्जा के पूरक का एक सघन रूप है. दूध उत्पादन के साथ-साथ यह बॉडी कंडीशन स्कोर एवं प्रजनन उर्वरता को भी बनाए रखता है. बायपास फैट कीटोसिस नामक चयापचय रोग को रोकने में भी उपयोगी है.
बायपास फैट, जैसा कि नाम से भी स्पष्ट है, रूमेन (पेट )से बायपास करता है, और इसे रूमेन में हाइड्रोलाइज्ड नहीं होने देता है, लेकिन सीधे जठरान्त में जाता है और छोटी आंतों में पच जाता है. यहाँ (दुधारू पशुओं के मामले में) यह शारीरिक ऊतकों, विशेष रूप से स्तन ग्रंथि की ओर आगे तक जाने के लिए फैटी एसिड के रूप में अवशोषित होता है.
अन्यथा, असुरक्षित फैट जो रुमेन में हाइड्रोलाइज्ड हो जाती है, वह रुमेन में उपस्थित फाइबर (रेशों) के पाचन में बाधा डाल सकती है, क्योंकि रूमेन का वातावरण रूमेन में सेल्यूलोज के अपघटन वाले जीवों के लिए जन्मजात नहीं होता है.
कई पशु फ़ीड निर्माता मिश्रित फ़ीड में बायपास फैट को मिलाते हैं. हालाँकि, बायपास फैट बाज़ार में भी उपलब्ध है. यह उच्च उत्पादकता देने वाले पशुओं को @ 150 से 200 ग्राम प्रतिदिन दिया जा सकता है. इस प्रकार, बायपास फैट खिलाने से दूध की उत्पादकता के साथ-साथ दूध में फैट प्रतिशत भी बढ़ता है, तथा फैट शुद्धिकृत दूध (फैट करेक्टेड मिल्क) में पर्याप्त वृद्धि होती है .
उच्च उत्पादकता देने वाले दुधारू पशुओं के लिए बायपास फैट को पूरक आहार के रूप में देना चाहिए, विशेषतः स्तनपान के प्रारम्भिक दिनों में जब स्तन ग्रंथियों को भी पोषक तत्वों की आवश्यकता सबसे अधिक होती है, ताकि स्तन-वक्र भी अपने वांछनीय स्तर को प्राप्त कर लेता है. दुग्धस्त्रवण की प्रारंभिक अवस्था में एक किसान के डेयरी फार्म पर उच्च उत्पादकता वाली संकरित प्रजाति (क्रोसब्रिड) की गायों पर गर्म और नम परिस्थितियों के दौरान परीक्षण किया गया था.
पशुओं को पूर्ण फ़ीड ब्लॉक दिए गए थे जिनमें बायपास फैट पूरक भी मौजूद थे. खुशी की बात यह थी कि, किसान ने बताया कि गायों की दूध की उत्पादकता में कोई गिरावट नहीं हुई थी, बल्कि यह पूर्ववत ही थी, और ना ही गर्मी और उमस के कारण गायें हांफ रही थी. गर्म और नमीदार स्थिति में, अपने शरीर के अतिरिक्त गर्मी से छुटकारा पाने के लिए पशु को अपनी पूर्वनिहित ऊर्जा का उपयोग करना पड़ता है.
केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का एक संकेत पशु को भूख कम करने के लिए मजबूर करता है, जिसके परिणामस्वरूप वह कम आहार का सेवन करता है. क्योंकि, रफिज़ या मोटे चारे का अंतर्ग्रहण शरीर में गर्मी की मात्रा को और बढ़ा देता है, जो कि रुमेन किण्वन की प्रक्रिया से उत्पन्न होती है.
आप उच्च उत्पादकता वाले दुधारू पशुओं को बायपास फैट खिला सकते हैं. बायपास फैट एक रुमेन (पेट) में संरक्षित ऊर्जा को बढाने वाला स्रोत है. यह दूध उत्पादन के साथ-साथ प्रजनन के गति को बनाए रखने के लिए पशु की ऊर्जा आवश्यकताओं का ख्याल रखता है, और साथ ही पशु के ऊर्जा संतुलन को नकारात्मक स्थिति में जाने नहीं देता. यदि आप अपने डेयरी फार्म से लाभ कमाना चाहते हैं तो आपको अपने पशुओं के ऊर्जा सेवन को अधिकतम करना चाहिए और नकारात्मक ऊर्जा संतुलन को कम करना चाहिए.
डेयरी पशुओं को बाईपास फैट खिलाने के लाभ:
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आंतों में अमीनो एसिड के प्रवाह और उपयोग को बढ़ाता है.
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बछड़ों (गाय / भैंस) की वृद्धि दर 20 -25% बढ़ जाती है.
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पशुओं में पहली बार बियाने की उम्र को काम करती है, बैलों में कामेच्छा और वीर्य की गुणवत्ता में सुधार होता है, जिससे नर और मादा बछड़ों की जल्दी परिपक्वता होती है.
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गायों और भैंसों में कम से कम 10-20% दूध की पैदावार बढ़ाता है.
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दो बैलों के पैदाइश (इंटर काल्विंग इंटरवल) की अंतराल को घटाता है और गर्भाधान दर में सुधार करता है
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जानवरों को बायपास फैट खिलाने से दूध की गुणवत्ता पर कोई प्रभाव नहीं होता है. वास्तव में, दूध की एसएनएफ में मामूली वृद्धि हो सकती है.
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