ब्रुसेलोसिस रोग गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सुअर एवं कुत्तों में फैलने वाली संक्रामक बीमारी है, जो पशुओं से मनुष्यों में एवं मनुष्यों से पशुओं में फैलती है. इस बीमारी से ग्रस्त पशुओं में 7-9 महीने के गर्भकाल में गर्भपात (Abortion) हो जाता है. ये रोग पशुशाला में बड़े पैमाने पर फैलता है तथा पशुओं में गर्भपात हो जाता है जिससे अधिक नुकसान होता है.
ये बीमारी मनुष्य के स्वास्थ्य एवं आर्थिक (Economic) दृष्टिकोण से भी बेहद गंभीर बीमारी है. विश्व स्तर पर लगभग 5 लाख मनुष्य हर साल इस रोग से ग्रस्त हो जाते हैं.
ब्रुसेलोसिस रोग का कारण (Causes of Brucellosis disease)
गाय, भैंस में ये रोग ब्रूसेल्ला एबोरटस नामक जीवाणु द्वारा होता है. ये जीवाणु ग्याभिन पशु की बच्चेदानी में रहता है तथा अंतिम तिमाही में गर्भपात करता है. एक बार संक्रमित हो जाने पर पशु जीवन काल तक इस जीवाणु को अपने दूध तथा गर्भाश्य के स्त्राव में निकालता है. पशुओं में ब्रुसेल्लोसिस रोग संक्रमित (Infected) पदार्थ के खाने से, जननांगों के स्त्राव के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कांटैक्ट से, योनि स्त्राव से, संक्रमित चारे के प्रयोग से तथा संक्रमित वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान द्वारा फैलता है.
मानव में रोग का कारण (Causes of disease in humans)
मनुष्यों में ब्रूसेल्लोसिस रोग सबसे ज्यादा रोगग्रस्त पशु के कच्चा दूध पीने से फैलता है. कई बार गर्भपात होने पर पशु चिकित्सक या पशु पालक असावधानी पूर्व जेर या गर्भाशय के स्त्राव को छूते हैं, जिससे ब्रुसेल्लोसिस रोग का जीवाणु त्वचा के किसी कटाव या घाव से भी शरीर में प्रवेश कर जाता है.
ब्रूसेल्लोसिस रोग के लक्षण (Symptoms of Brucellosis disease)
पशुओं में गर्भावस्था की अंतिम तीन महीनों में गर्भपात होना इस रोग का प्रमुख लक्षण है. गर्भपात के बाद चमड़े जैसा जेर का निकलना इस रोग की खास पहचान है. पशुओं में जेर का रूकना एवं गर्भाशय की सूजन एवं नर पशुओं में अंडकोष की सूजन इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं. पैरों के जोड़ों पर सूजन आ जाती है.मनुष्य को इस रोग में तेज बुखार आता है जो बार-बार उतरता और चढ़ता रहता है तथा जोड़ों और कमर में दर्द भी होता रहता है.
ब्रूसेल्लोसिस रोग की जांच (Testing of brucellosis disease)
इस रोग का निदान रोगी पशु के योनि स्त्राव/दूध/रक्त/जेर की जाँच एवं रोगी मनुष्य के वीर्य/रक्त की जाँच करके की जा सकती है.
ब्रूसेल्लोसिस रोग का प्रबंधन कैसे करें (How to manage Brucellosis disease)
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पशुओं में ब्रूसल्लोसिस की कोई सफल प्रमाणित चिकित्सा नहीं है. मनुष्यों में एंटीबायोटिक दवाओं के सहारे कुछ हद तक इस रोग के चिकित्सा में सफलता पायी गयी है.
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नए खरीदे गए पशुओं को ब्रुसेल्ला संक्रमण की जाँच किये बिना अन्य स्वस्थ पशुओं के साथ कभी नहीं रखना चाहिए.
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अगर किसी पशु को गर्भकाल के तीसरी तिमाही में गर्भपात हुआ हो तो उसे तुरंत फार्म के बाकी पशुओं से अलग कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि उसके स्त्राव द्वारा अन्य पशुओं में संक्रमण फैल जाता है.
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अगर पशु को गर्भपात हुआ है तो खून की जाँच करानी चाहिए.
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आसपास के स्थान को भी जीवाणु रहित करना चाहिए.
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स्वस्थ गाय भैसों के बच्चों में 4-8 माह की आयु में ब्रुसेल्ला एस-19 वैक्सीन से टीकाकरण करवाना चाहिए.
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अगर पशु का गर्भपात हुआ है तो उस स्थान को फिनाइल द्वारा विसंक्रमित (Disinfected) करना चाहिए.
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गर्भाशय से उत्पन्न मृत नवजात एवं जैर को चूने के साथ मिलाकर गहरे जमीन के अन्दर दबा देना चाहिए जिससे जंगली पशु एवं पक्षी उसे फैला न सकें.
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रोगी मादा पशु के कच्चे दूध को स्वस्थ नवजात पशुओं एवं मनुष्यों को नहीं पिलाना चाहिए. दूध को उबाल (Milk pasteurization/ Sterilization) कर ही उपयोग करना चाहिए.
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मादा पशु के बचाव के लिए 6-9 माह के मादा बच्चों को इस बीमारी के विरूद्ध टीकाकरण करवाना चाहिए.
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ब्याने वाले पशुओं में गर्भपात होने पर पशुपालक उनके संक्रमित स्त्राव, मल-मूत्र आदि के सम्पर्क से बचना चाहिए क्योंकि इससे उनमें भी संक्रमण हो सकता है.