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Updated on: 17 February, 2018 12:00 AM IST
Goat rearing by scientific method

बीजू बकरे का चुनाव

  • साड़ (बाप) शुद्व नस्ल का हो

  • साड़ अधिकतम उंचाई का हो

  • मां अधिकतम दूध देने वाली हो

  • शारीरिक रूप से पूर्ण स्वस्थ एवं चुस्त हो

  • मिलन कराने पर अधिकतम बकरियों को गर्भित करता हो

बकरी का चुनाव

  • शुद्ध नस्ल की हो

  • अधिक उंचाई की हो

  • दूध एवं दुग्ध काल अच्छा हो

  • प्रजनन क्षमता अच्छी हो

  • शारीरिक रूप से स्वस्थ हो

बच्चियों का चुनाव

  • शुद्ध नस्ल की हो

  • मां अधिक दूध देने वाली हो

  • त्वचा चमकीली हो एवं जानवर चुस्त हो

उन्नत प्रजनन पध्दतियाँ

  • नियमित रूप से मादा के गरमी में आने की पहचान करावें

  • हमेशा शुद्व संाड से गर्भित करावें

  • सांड को दो वर्ष बाद बदल देवें

  • दूसरे झून्ड से नये सांड का चुनाव करें

  • पूर्ध परिपक्व होने के बाद ( डेढ़ से दो वर्ष ) के सांड को उपयोग में लायें

  • प्रथमवार बकरियों को गर्भित कराते समय उनका शरीर भार 65 - 70 प्रतिशत प्रौढ़ पशु के बराबर हो

  • कम प्रजनन एवं उत्पादन क्षमता वाली (10 - 20 प्रतिशत) एवं रोग ग्रसित (10-15 प्रतिशत) मादाओं को प्रतिवर्ष निष्पादन करते रहना चाहिए

  • गर्मी में मादाओं के आने पर 10 -16 घन्टे बाद सांड से मिलन करायें.

उन्नत पोषण स्तर

  • नवजात बच्चों को पैदा होने के आधे घन्टे में खीस पिलायें

  • बकरियों को नीम, पीपल, बेर, खेजड़ी, पाकर, बकूल, एवं दलहनी चारा खिलायें

  • विशेष अवस्था में ( दूध देने वाली, गर्भावस्ता आदि में ) अतिरिक्त दाना अवश्य दें

  • पोषण में खनिजों एवं लवणों का नियमित रूप से शामिल रखें

  • गोचर ( चारागाह ) के विकास के लिए वन विभाग एवं कृषि विभाग से जानकारी प्राप्त करें छगाई करने के लिए खूब चारा वृक्ष लगायें

  • एकदम से आहार व्यवस्था में बदलाव न करें

  • अधिक मात्रा में हरा चारा एवं गीला चारा न दें

उन्नत आवास व्यवस्था

  • पशु गृह में प्रर्याप्त मात्रा में धूप, हवा एवं खुली जगह हो

  • सर्दियों में ठंड से एवं बरसात में बौछार से वचाव की व्यवस्था करें

  • पशुगृह को साफ एवं स्वच्छ रखें

  • छोटे बच्चों को सीधे मिट्टी के सम्पर्क में आने से बचने के लिए फर्श पर सूखी घास या पुलाव बिछा देंवें तथा उसे दूसरे तीसरे दिन बदलते रहें।

  • वर्षाऋतु से पूर्व एवं बाद में 6 इंच मिटृटी बदल देवें

  • छोटे बच्चों की, गर्भित बकरियों एवं प्रजनक बकरे की अलग आवास व्यवस्था

उन्नत स्वास्थ्य व्यवस्था:

  • समय पर ( साल में दो-तीन बार अवश्य ) कृमि नाशक दवा पिलायें

  • रोग निरोधक टीके समय से अवश्य लगवायें

  • बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें एवं तुरंत उपचार करावें

  • आवश्कतानुसार बाहय परजीवी के उपचार के लिए व्यूटोक्स ( 1 प्रतिशत) का घोल लगावें

  • नियमित मल परीक्षा (विशेषकर छोटे बच्चों) करावें।

उन्नत बाजार प्रबंध:

  • जानवरों को मांस के लिए शरीर भार के अनुसार बेचें

  • त्यौहार ( ईद, दुर्गा पूजा ) के समय एवं पूर्व में बेचें

  • सेगठित होकर उचित भाव पर बाजार में बेचें

  • बकरी व्यवसाय से सम्बन्धित खर्च ( लागत ) एवं उत्पादन का रिकार्ड रखे

जालावादी: उत्तम दुकाजी बकरी

मूलक्षेत्र एवं वितरण: गुजरात राज्य के सुरेन्द्रनगर जिला, बडी संख्या में ये बकरियाँ राजकोट जिले में भी पाई जाती है!

अनुमानित संख्या: 2-2.5 लाख

प्रमुख बकरी पालन: रेवाडी एवं भरवाड (मालधारी )

प्रबन्ध पद्धति: बकरियों के समूह में रखकर गोचर (सामुदायिक चारागाह) में प्रायः भेड़ों के साथ चराया जाता है। 25-35 प्रतिशत  बकरियाँ गर्मियों में सूरत, बलसाड एवं बडोदरा में प्रवास पर जाती है। इन बकरियों को प्रमुखतया झाड़ियों के बने बाड़ों में जो कि बिना छत के होते हैं रखा जाता है। इन बकरियों को समूह में 8-10 घंटे के लिए गौचर में चराया जाता है। जिसमें प्रमुख रूप से बेर, बबूल एवं खेजड़ी प्रचुरता से मिलते हैं।

जालावादी नर जालावादी मादा

पहचान

आकार: बड़ा

रंग: काला

कान: प्राय सफेद जिन पर विभिन्न आकार के काले धब्बे या काले रंग के कानों पर सफेद धब्बे जिन्हें तारा बकरी कहते हैं. कान पत्ती की रह बडे एवं नीचे लटके हुए

सींग: बडे स्क्रूदार पैंच की तरह घुमाव लिये (2-5 घुमाव)  एवं ऊपर की ओर उठे हुए (वी शेप, अ )

गर्दन: लम्बी

नाक: थोड़ी उठी हुई

बाल: पूरे शरीर पर छोटे -2 बाल 1-11/2 इंच परन्तु जाघों पर बड़े  बाल 2-3 इंच

अयन: बडे एवं शक्वांकार

पूंछः छोटी (5-6 इंच), ऊपर की ओर उठी हुई वयस्क औसत 

शरीर भार: नर 50 कि0ग्रा0 (45 से 80 कि0ग्रा0) मादा 35 कि0ग्रा0 (28 से 59 कि0ग्रा0)

प्रथमवार बकरी ब्याने की उम्र: 18 माह

औसत दुग्ध उत्पादन: 1 कि0ग्रा0 प्रतिदिन  (1-2 कि0ग्रा0)

दुग्धकाल: 180 (150-250 दिन)

बहुप्रसवता: 50-70 प्रतिशत

लेखक:

मनोज कुमार सिंह
केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान् मखदूम,
फरह, मथुरा (उ0प्र0)

English Summary: Goat rearing by scientific method
Published on: 17 February 2018, 04:07 IST

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