आज के समय में खेती-बाड़ी की नई-नई तकनीकें विकसित होने लगी है जिसके चलते किसानों को कई तरह के फायदे हो रहे है. इसी राह पर अब राजस्थान के मछुआरे भी चल पड़े है. दरअसल राजस्थान के अजमेर जिले के कई बांधों में केज में मछलीपालन की प्रचुर संभावनाएं मौजूद है. आज वर्तमान में केवल चार जगहों पर केज यानि कि पिंजरे में मछली पालन हो रहा है. प्रदेश में अब मत्स्यपालन की ओर लोगों का रूझान बढ़ रहा है. दरअसल अब इसमें रियल स्टेट के साथ अन्य राज्य के बाहर से आकर लोग जुड़ रहे है. वर्तमान में चार स्थानों पर केज में मछलियों का पालन हो रहा है. इसके लिए सरकार की ओर से नियम के अनुसार सब्सिडी भी उपलब्ध कराई जा रही है.
केज में पल रही मछली
राजस्थान के भीलवाड़ा के बंद जयपुरा बांध में, बूंदी के गूंढ़ा बांध में, बांदा और झालवाड़ में केज में मछली पालन का कार्य तेजी से किया जा रहा है. इसमें मछलियां की तेजी से पनप रही है. मत्स्य पालन विभाग को डूंगरूपुर में अम्बा बांध में व्यक्तिगत तौर पर एक हजार केज लगाने का प्रस्ताव दिया गया है जिस पर कार्य हो रहा है. इस केज का साइज 6 गुणा 4 गुणा और 4 मीटर का ही एक केज होगा. इस केज में प्रतिवर्ष 40 से 50 क्विंटल प्रतिवर्ष इनका उत्पादन होता है.
मछली उत्पादन का फायदा
यहां पर मछली का उत्पादन करने से सबसे बड़ा फायदा यह है कि कम जगह पर भी ज्यादा उत्पादन आसानी से हो जाता है. इसके अलावा इस तरह से मछलीपालन करने पर मजदूरी और लागत दोनों ही कम लगती है. यहां पर केज में मछलियों का उत्पादन अजमेर, उदयपुर, बांसबाड़ा. सिलीबेढ़, चितौड़गढ़ आदि में मछलीपालन किया जा रहा है.
थाइलैंड और वियतनाम
यहां प्रदेश के मत्स्य विभाग के अधिकारियों का दल करीब दो महीने पहले ही थाईलैंड और वियतनाम में केज में मछली पालन की तकनीक आदि की जानकारी ली है. केज में मछली पालन भारत में ही हो रहा है. यहां पर प्रारंभिक अवस्था में जबकि थाइलैंड और वियतनाम में यह विकसित व्यवस्था में बताया जा रहा है. यहां पर राज्य में केज में मछली पालन की कई संभवनाएं है. यहां कई बांधों में इसका पालन हो सकता है. यहां दल ने थाइलैंड से मछलीपालन की जानकारी ली है.