भारत में झींगा पालन प्राकृतिक रूप से समुद्र के खारे पानी में होता था, लेकिन कृषि क्षेत्र में तकनीकी विकास और रिसर्च के चलते मीठे पानी में भी सम्भव हो गया है. देश में लगभग 4 मिलियन हेक्टेयर मीठे जल क्षेत्र के रूप में जलाशय, पोखर, तालाब आदि उपलब्ध हैं. इन जल क्षेत्रों का उपयोग झींगा पालन के लिए बखूबी किया जा सकता है. कृषि के साथ झींगा पालन से अच्छी-खासी कमाई होती है. आजकल यह व्यवसाय काफी तेजी से बढ़ रहा है. विदेशी और घरेलू बाजार में इसकी ज़्यादा मांग है, इसलिए किसान खेती-बाड़ी के साथ झींगा पालन भी कर सकते हैं.
मुख्य तालाब के लिए जगह का चुनाव
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तालाब क्ले सिल्ट या दोमट मिट्टी पर बनाना चाहिए, क्योंकि इसमें पानी रोकने की क्षमता अच्छी होती है.
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तालाब का पानी सभी तरह के प्रदूषण से मुक्त हो.
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मिट्टी कार्बोनेट, क्लोराइड, सल्फ़ेट जैसे हानिकारक तत्वों से मुक्त हो.
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तालाब लगभग 50 से 1.50 हेक्टेयर का हो.
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तालाब की न्यूनतम गहराई 75 मीटर का अधिकतम गहराई 1.2 मीटर हो.
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तालाब की दीवारों को ढालदार न बनाकर सीधी खड़ी रखना चाहिए.
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तालाब में चूने का उपयोग करना चाहिए, साथ ही पानी भरने और बारिश का अतिरिक्त पानी निकालने का उचित प्रबंध होना चाहिए.
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पानी भरने और निकालने के लिए लोहे की जाली का उपयोग करें.
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तालाब में जलीय वनस्पति होना चाहिए, क्योंकि झींगों को दिन में तालाब के किनारे छुपकर आराम करने की आदत होती है.
नर्सरी के लिए तालाब तैयार करना
झींगा पालन करने के लिए तालाब की नर्सरी तैयार करने की आवश्यकता होती है. पहले तालाब का पूरा पानी निकालकर उसको अच्छी तरह सूखा लें. इसके बाद एक जुताई करें. अब तालाब में 1 मीटर की गहराई तक पानी भरें. ध्यान दें कि अच्छी नर्सरी तैयार करने के लिए चूना, खाद और उर्वरकों का उपयोग करें.
नर्सरी में बीज डालना
नर्सरी में लगभग 20 हजार बीज की ज़रूरत पड़ती है. इसके संचयन के लिए अप्रैल-जुलाई का महीना उपयुक्त रहता है. सबसे पहले झींगा बीज के सभी पैकेट में तालाब का पानी भरकर 15 मिनट तक रखना चाहिए, ताकि पैकेट के पानी औऱ तालाब के पानी का तापमान एक हो जाए. ध्यान दें कि जहां झींगा बीज को संचयन के लिए छोड़ा जाता है, वहां उन्हें भोजन के रूप में सूजी, मैदा, अंडा को एक साथ मिलाकर गोला बनाकर दिया जाता है. बीज से निकलने वाले लार्वों को लगभग 45 दिनों तक रहने देना चाहिए. इस दौरान ये लार्वा शिशु झींगा में बदल जाते हैं और इनका वजन लगभग 3 ग्राम का हो जाता है.
नर्सरी तालाब से मुख्य तालाब में स्थानांतरण
जब नर्सरी में शिशु झींगें 3 से 4 ग्राम तक हो जाएं, तो इन्हें हाथों में लेकर बहुत सावधानी से मुख्य तालाब में डालना चाहिए. इसके साथ कतला और रोहू आदि मछली की प्रजातियों को भी पाल सकते हैं.
आहार
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झींगा जन्तु और वनस्पति, दोनों को खा लेता है.
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झींगों का तेजी से विकास करने के लिए शाकाहार और मांसाहार, दोनों तरह का भोजन देना चाहिए.
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इसके अलावा सरसों की खली, राईस ब्रान, फिशमील देना चाहिए.
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मछलियों का चूरा, घोंघा, छोटे झींगे और बूचड़खाने का अवशेष दिया जा सकता है. इसके अलावा छोटी मछलियों को उबाल कर भी खिला सकते हैं.
आहार की मात्रा
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तालाब में आहार की कमी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि भूखा रहने पर झींगे आपस में एक-दूसरे को खाना शुरू कर देते हैं.
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झींगा बीज के वजन का 10 प्रतिशत तक आहार प्रतिदिन देना चाहिए.
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दो महीने तक 2 से 3 किग्रा पूरक आहार प्रति एकड़ की दर से देना चाहिए. इसके बाद 4 से 6 माह तक 4 से 5 किग्रा प्रति एकड़ की दर से पूरक आहार देना चाहिए.
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आहार के अतिरिक्त एग्रीमीन, टैरामाईसीन पाउडर, एंटीबायोटिक, सिफालैक्सिन आदि दवाएं भी देते रहना चाहिए.
उचित देखभाल
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कभी-कभी तालाब के किनारे अधिक संख्या में झींगें हों, तो ऐसे में तालाब में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है, इसके लिए एयरटेल का उपयोग करें या फिर पंपिंग सेट द्वारा तालाब के पानी को कुछ ऊंचाई से तालाब में डालें.
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पानी का पी.एच. मान बनाए रखने के लिए उचित मात्रा में चूने का उपयोग करना चाहिए.
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तालाब में बीज संचय के 15 से 20 दिन बाद तक शिशु झीगें नहीं दिखाई पड़ने पर भी आहार देते रहना चाहिए.
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झींगों को कछुआ, केकड़ा, मेंढक, सांप आदि जलीय जीवों से बचाना चाहिए.
उत्पादन और मुनाफ़ा
तालाब में डाले गए लार्वा के लगभग 50 से 70 प्रतिशत झींगें ही जीवित रहते हैं, इसलिए इनकी अच्छी देख-रेख करना चाहिए. झींगों का 4 से 5 महीने में लगभग 50 से 70 ग्राम वजन बढ़ जाता है, इसलिए इतने वजन के झींगों को तालाब से निकालना शुरू कर देना चाहिए. आपको बता दें कि तालाब में शुद्ध रूप से झींगा का बाजार भाव बहुत ज़्यादा होता है. इनको बाजार में लगभग 250 रुपया प्रति किग्रा. की दर से बेचा जाता है. अगर इसमें लगी लागत पूंजी को निकाल दें, तो एक एकड़ जल क्षेत्र से लगभग 2 लाख रुपए से अधिक का मुनाफ़ा हो सकता है.
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