बतख पालन का काम इस बेरोजगारी के दौर में बेरोजगार युवाओं के लिए आय का अच्छा साधन है. मुर्गी पालन के मुकाबले बतख पालन में कम जोखिम भी होता है. बतख के मांस और अंडों के रोग प्रतिरोधी होने के वजह से मुर्गी के मुकाबले बतख की मांग अधिक है.
बतख का मांस और अंडे दोनों ही प्रोटीन से भरपूर होते हैं. बतखों में मुर्गी के मुकाबले मृत्यु दर बेहद कम है. इस का कारण बतखों का रोग प्रतिरोधी होना भी है. अगर बतख पालन का काम किसान भाई बड़े पैमाने पर करें तो यह बेहद लाभदायी साबित हो सकता है.
कैसे करें बतख पालन की शुरुआत (How to start duck farming)
बतख पालन शुरू करने के लिए शांत जगह बेहतर होती है. अगर यह जगह किसी तालाब के पास हो तो बहुत अच्छा होता है, क्योंकि बतखों को तालाब में तैरने के लिए अच्छी जगह मिल जाती है. अगर बतख पालन की जगह पर तालाब नहीं है, तो जरूरत के मुताबिक तालाब की खुदाई करा लेना जरूरी होता है.
तालाब में बतखों के साथ मछलीपालन भी किया जा सकता है. अगर तालाब की खुदाई नहीं करवाना चाहते हैं तो टीनशेड के चारों तरफ 2-3 फुट गहरी व चौड़ी नाली बनवा लें, जिसमें बतखें तैरकर अपना विकास कर सकती हैं. बतख पालन के लिए प्रति बतख डेढ़ वर्ग फुट जमीन की आवश्यकता पड़ती है. इस तरह 5 हजार बतखों के फार्म को शुरू करने के लिए 3750 वर्ग फुट के 2 टीनशेडों की आवश्यकता पड़ती है. इतनी ही बतखों के लिए करीब 13 हजार वर्ग फुट का तालाब होना जरूरी होता है.
बतखों की प्रजाति का चयन (Duck species Special selection)
बतख पालन के लिए सब से अच्छी प्रजाति खाकी कैंपवेल है, जो खाकी रंग की होती है. ये बतखें पहले साल में 300 अंडे देती हैं. 2 - 3 सालों में भी ये अंडा देने के काबिल होती है. तीसरे साल के बाद इन बतखों का इस्तेमाल मांस के लिए किया जाता है.
इन बतखों की विशेषता यह है कि ये बहुत शोर मचाने वाली होती हैं. शेड में किसी जंगली जानवर या चोर के घुसने पर शोर मचा कर ये मालिक का ध्यान अपनी तरफ खींच लेती हैं. इस प्रजाति की बतखों के अंडों का वजन 65 से 70 ग्राम तक होता है, जो मुर्गी के अंडों के वजन से 15-20 ग्राम ज्यादा है. खाकी कैंपवेल बतख की उम्र औसतन 3-4 साल तक की होती है, जो 90-120 दिनों के बाद रोजाना 1 अंडा देती है.
बतखों का आहार (Duck diet)
बतखों के लिए प्रोटीन वाले दाने की जरूरत पड़ती है. चूजों को 22 फीसदी तक पाच्य प्रोटीन देना जरूरी होता है. जब बतखें अंडे देने की हालत में पहुंच जाएं, तो उन का प्रोटीन घटा कर 18-20 फीसदी कर देना चाहिए. बतखों के आहार पर मुर्गियों के मुकाबले 1-2 फीसदी तक कम खर्च होता है. उन्हें नालों पोखरों में ले जा कर चराया जाता है, जिस से कुदरती रूप से वे घोंघे जैसे जलीय जंतुओं को खा कर अपनी खुराक पूरी करती हैं. हर बतख के फीडर में 100-150 ग्राम दाना डाल देना चाहिए.
इलाज व देखभाल (Treatment and care)
बतखों में रोग का असर मुर्गियों के मुकाबले बहुत ही कम होता है. इन में सिर्फ डक फ्लू का प्रकोप ही देखा गया है, जिस से इनको बुखार हो जाता है और ये मरने लगती हैं.
बचाव के लिए जब चूजे 1 महीने के हो जाएं, तो डक फ्लू वैक्सीन लगवाना जरूरी होता है. इसके अलावा इन के शेड की नियमित सफाई करते रहना चाहिए और 2-2 महीने के अंतराल पर शेड में कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करते रहना चाहिए.