गाय पालन से अधिक मुनाफा कमाने के लिए नस्ल का अच्छा होना बहुत जरूरी है. यह पशुपालक की एक अहम समस्या है कि गाय की किस नस्ल का चुनाव किया जाए.
इसी क्रम में मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय (Nanaji Deshmukh University of Veterinary Sciences, Jabalpur) ने एक कमाल कर दिखाया है.
यहां के वैज्ञानिकों ने गायों के संरक्षण और संवर्धन के लिए एक गजब का तरीका खोज निकाला है. दरअसल, विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने गायों में सरोगेसी का काम करना शुरू कर दिया है. जी हां, अभी तक आप इंसानों में सरोगेट मदर द्वारा संतान की प्राप्ति के बारे में जानते होंगे, लेकिन अब इस प्रक्रिया को गायों में भी अपनाया जाएगा. यानि अब गाय सेरोगेसी मदर बनेंगी.
बता दें कि ये प्रयोग सड़क पर घूमने वाली आवारा गायों (COW) पर किया गया. जब वो गर्भवती हो गयीं, तो सरोगेसी (Surrogate Mother) से गायों का संरक्षण और संवर्धन होगा, साथ ही नई और अच्छी नस्ल की गाय तैयार हुईं.
इस प्रयोग से पता चला है कि सड़कों पर घूमने वाली गाय और गौशालाओं में छोड़ी गई गाय भी अच्छी नस्ल के गाय या बछड़ों को जन्म दे सकती हैं. वैज्ञानिकों ने भ्रूण प्रत्यारोपण विधि से बेसहारा गायों को न केवल नया जीवनदान दिया है, बल्कि अच्छी नस्ल की गाय को जन्म देने के लिए तैयार किया है. खास बात यह है कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने भ्रूण प्रत्यारोपण विधि द्वारा करीब 15 गायों को गर्भवती भी किया है.
कैसे होता है भ्रूण प्रत्यारोपण (How is embryo implantation done?)
इस विधि के तहत बैल के अच्छे सीमन को अच्छी नस्ल और ज्यादा दूध देने वाली गाय के अंदर डाला जाता है. बता दें कि ऐसी गाय को डोनर कहा जाता है. जब गाय के अंदर भ्रूण परिपक्व हो जाता है, तब सक्शन विधि द्वारा भ्रूण को गाय से निकाल लिया जाता है. इसके बाद सेरोगेट गाय में डाला जाता है.
इस विधि का 30 गाय पर प्रयोग किया (This method was used on 30 cows)
जिला प्रशासन की मदद से विश्वविद्यालय ने लगभग 30 गाय ली थीं, जिन पर इस विधि का प्रयोग किया गया. वैज्ञानिक द्वारा सभी गायों की देखरेख की जा रही है.
बता दें कि प्रत्यारोपण विधि द्वारा विश्व विद्यालय की गौशाला में 15 गायों को गर्भवती किया जा चुका है. इन गाय के पोषण आहार का भी ध्यान रखा जा रहा है. अब ये गाय अक्टूबर के अंत तक अच्छी नस्ल के बछड़े या बछिया को जन्म देंगी. यानि कुल मिलाकर यह प्रयोग अच्छी तरह सफल हुआ है.
किसानों और डेयरी संचालकों को होगा लाभ (Farmers and dairy operators will benefit)
सबसे खास बात यह है कि इस प्रोजेक्ट को बहुत कम लागत में पूरा किया गया है. विश्वविद्यालय के मुताबिक, इस काम के लिए विश्वविद्यालय में एक लैब तैयार की गई. इस प्रोजेक्ट का मुख्य मकसद यह है कि किसानों और डेयरी संचालकों को अच्छी नस्ल की गाय मिल सकें.
इसके साथ ही उन गायों का संरक्षण हो, जिन्हें सड़कों या गौशालाओं के भरोसे छोड़ दिया जाता है. बता दें कि इससे पहले भी विश्वविद्यालय में कुत्ते के खून से आंख की झिल्ली बनाई गई थी.