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Updated on: 22 April, 2020 12:00 AM IST

आज विश्व कोरोना नामक भयंकर महामारी से गुजर रहा है, भारत भी इस महामारी से अछूता नहीं है. हमारा देश और हमारे देशवासी जिस दृढ़ता से इस संकट की घड़ी का मुक़ाबला कर रहे हैं निश्चित ही बहुत जल्द हम इस महामारी से मुक्त होंगे. विषम परिस्थितियां समाज को सदैव ही कुछ सीख देती हैं,  बस आवश्यकता होती है तो उस सीख को पहचानने की और समझने की. आप सभी ने कोरोना से जुड़ें कुछ नए से शब्द आज कल बहुत सुने होंगे जैसे आइसोलेशन और क्वारंटाइन, डिसिन्फ़ेक्शन आदि.इन शब्दों का पशुपालन से बहुत पहले का और बहुत गहरा नाता है, इनको समझ के आप अपने पशुओं में होने वाले बहुत से संक्रामक बीमारियों से उनकी सुरक्षा बिना किसी खर्चे के कर सकते हैं.

क्या होता है क्वारंटाइन ?

अगर हम किसी पशु को ख़रीद के बाहर से अपने घर में ले कर आते हैं, और लाए गए पशु को अपने घर पहले से पालित पशु से ना मिला कर, एक अलग स्थान पर कुछ निश्चित समयांतराल के लिए रखते हैं, तो यह कार्य क्वारंटाइन कहलाता है. और जहां ये पशु कुछ समय कि लिए रखे जाते हैं उस स्थान को क्वारंटाइन शेड बोला जाता है.

क्वारंटाइन का पशुपालन में क्या महत्व है?

बाहर से लाये गए पशुओं के विषय में सामान्यतः पशुपालक को कम जानकारी होती है,  पशु के टीकाकरण और पेट और बाहर के कीड़ों के दवाई दिए जाने की भी पूरी जानकारी नहीं होती,  साथ ही यात्रा के तनाव से पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी काफ़ी कमी आ जाती है और रास्ते में भी कई तरह की बीमारियों से पशुओं के संक्रमित होने का भी ख़तरा बना रहता है, यदि हम अपने स्वस्थ पशुओं को बाहर से लाए गए पशुओं से कुछ समय तक दूर रहेंगे तो संक्रमण होने पर,  नए पशुओं से पुराने पशुओं में फैलने का खतरा कम होता है, और पशु पालक अनावश्यक होने वाले नुक़सान से बच जाते हैं.

क्वारंटाइन में किन बातों का ध्यान रखे पशुपालक ?

पशुपालक को चाहिए की जब सभी पशुओं से सम्बंधित कार्य समाप्त हो जाए तभी क्वारंटाइन में रखे पशुओं के पास जाए, और वहां का काम ख़त्म करने के बाद वापस अपने घर के पशुओं के पास जाने से बचे. साथ ही पशुचिकित्शक से सलाह ले कर पेट के और शरीर के कीड़ों की दवाई और टीकाकरण करवाए. पशुओं को सामान्यतः कम से कम 20 से 30 दिनों तक क्वारंटाइन में रखे और अच्छी देखभाल करें.

आइसोलेशन क्या होता है ?

जब घर में पले हुए पशुओं में से कुछ पशु बीमार होने लगते हैं, या पशुओं में किसी संक्रामक बीमारी के लक्षण आने लगते हैं तो ऐसे पशु जिनमें लक्षण होते हैं और ऐसे पशु जिनका लक्षण वाले या बीमार पशुओं से संपर्क हुआ होता है, उनको सामान्य पशुओं से अलग रखा जाता है. जहां इन बीमार और बीमार के संपर्क में आए हुए पशुओं को रखा जाता है उस स्थान को आइसोलेशन शेड बोला जाता है.

आइसोलेशन में पशुपालक को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

जिस प्रकार से क्वारंटाइन में रखे गए पशुओं का देख रेख का काम , सामान्य पशुओं के देख रेख के काम के बाद किया जाता है, ठीक उसी प्रकार से आइसोलेशन में रखे गए पशुओं के देख रेख का कार्य सामान्य पशुओं के बाद ही किया जाना चाहिए, जिससे संक्रमण के फैलने का ख़तरा कम हो जाता है.पशुचिकित्सक की तुरंत सलाह लेनी चाहिए और जब तक पशु पूर्णतः स्वस्थ नहीं हो जाता है तब तक उन्हें सामान्य पशुओं के साथ नहीं रखा जाना चाहिए. बीमार पशुओं की अच्छे से देख रेख करनी चाहिए.

क्या है डिसिन्फ़ेक्शन और sanitisation?

डिसिन्फ़ेक्शन वह प्रक्रिया है जिसमें किसी निर्जीव वस्तुओं को संक्रामक सूक्ष्मजीव रहित बनाया जाता है और sanitisation से सजीव वस्तुओं को सूक्ष्मजीव रहित  बनाया जाता है, यानी कि यह दोनों प्रक्रिया किसी इंसान या किसी वस्तु द्वारा होने वाले संक्रमण के फैलाव को रोकने में मददगार होते हैं. पशुपालक कई तरह की उपलब्ध रसायनों का प्रयोग करके और इन दोनों प्रक्रियाओं का भली भाँति पालन करके अपने पशुओं को संक्रामक बीमारियों से बचा सकते हैं.

कोरोना महामारी में संक्रम को रोकने और कम करने के लिए आज पूरे विश्व में इन प्रक्रियाओं का पालन किया जा रहा है और इन दोनों प्रक्रियाओं का पशुपालन में भी संक्रमण रोकने और कम करने में बहुत बड़ा योगदान है.

लेखक- डॉ. आदर्श तिवारी
       बीवीएससी. और एएच
       आईसीएआर-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर बरेली

English Summary: Corona virus can spread in animals too, know how to isolate and quarantine when sick
Published on: 22 April 2020, 01:44 IST

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