Hypomagnesemia: पशुपालकों के लिए अपने पशुओं का स्वस्थ रखना बेहद जरूरी होता है, खासतौर पर उन पशुओं का जो अधिक मात्रा में दूध देते हैं. दुधारू पशुओं में रोग/Diseases in Dairy Cattle होने की संभावना सबसे अधिक होती है. ऐसे ही एक गंभीर रोग का नाम हाइपोमैग्नीसिमिया है, जो मैग्निशियम की कमी से होता है. यह रोग तब होता है जब पशु के शरीर में मैग्निशियम की मात्रा बहुत कम हो जाती है, जिससे उनकी मांसपेशियों और तंत्रिका तंत्र पर असर पड़ता है. इससे पशु का व्यवहार असामान्य हो सकता है, जैसे सिर झटकना, बार-बार मूत्र करना और तेज़ उत्तेजना दिखाना. यदि समय रहते इसका इलाज न हो, तो यह जानलेवा भी हो सकता है.
यह रोग खासकर वसंत और बरसात के शुरुआत में अधिक होता है, जब पशु अधिक हरा चारा खाते हैं, जिसमें मैग्निशियम की मात्रा कम होती है. इसलिए सही जानकारी और समय पर उपचार से इस बीमारी से बचाव संभव है. आइए इसके बचाव से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में जानते हैं...
इस रोग के लक्षणों को पहचानना है जरूरी
हाइपोमैग्नीसिमिया के शुरुआती लक्षणों में पशु का बिना कारण बार-बार सिर झटकना, कराहट भरी आवाज निकालना और बार-बार मूत्र करना शामिल है. कई बार पशु बिना पैर मोड़े चलते हैं या आवाज और हल्की छुअन से अत्यधिक उत्तेजित हो जाते हैं. गंभीर स्थिति में पशु अचानक दौड़ने लगता है, पैरों को जोर-जोर से जमीन पर पटकता है और नियंत्रण से बाहर हो सकता है.
क्या करें बचाव और इलाज?
पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग, बिहार सरकार– पशुपालन निदेशालय के अनुसार, इस रोग से बचाव के लिए उन पशुओं को, जिनमें इसका खतरा अधिक हो, रोजाना लगभग 50 ग्राम मैग्निशियम ऑक्साइड खिलाना चाहिए. यह एक प्रकार का खनिज पूरक है जो शरीर में मैग्निशियम की कमी को पूरा करता है.
यदि पशु में कोई भी लक्षण नजर आए तो देरी न करें. तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करें. समय रहते इलाज शुरू कर देने से पशु पूरी तरह से ठीक हो सकता है. हालांकि, कुछ मामलों में पशु को 24 से 48 घंटे के भीतर दोबारा उपचार की आवश्यकता हो सकती है.
सावधानी ही है सबसे बड़ी सुरक्षा
यह रोग अधिकतर वसंत और प्रारंभिक वर्षा ऋतु में सामने आता है, जब हरे चारे की मात्रा अधिक होती है और उसमें मैग्निशियम की मात्रा कम हो जाती है. इसलिए पशुपालकों को चाहिए कि वे हरे चारे के साथ-साथ खनिज मिश्रण भी नियमित रूप से दें. पशुपालक जागरूक रहें और समय पर इलाज कराएं, ताकि उनके पशु स्वस्थ रहें और दुग्ध उत्पादन प्रभावित न हो.