मध्य प्रदेश राज्य में विधानसभा के चुनाव होने के कारण आचार संहिता लगी हुई है जिसके चलते प्याज को लेकर सरकार भावांतर या बेसप्राइस तय नहीं कर पा रही है. ऐसे में राज्य में हालात यह है कि बम्पर फसल होने के बाद भी प्याज को सड़कों पर फेकनें के हालात बन गए हैं. प्याज की खरीद-बिक्री वाले किसानों को चुनावी मतगणना आने तक इंतजार करना होगा. अब इस बारे में नई सरकार आने के बाद ही कोई निर्णय हो पाएगा. वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार ने भी चुनावों को देखते हुए खाद का कोटा बढ़ा दिया है. रबी के मौसम में फसल में खाद की कमी ना हो इसके लिए राज्य के कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन गुरूवार को दिल्ली पहुंच गए.
कोटा बढ़ाने की मांग
दरअसल मध्य प्रदेश में होने वाला ये विधानसभा चुनाव किसानों पर ही मुख्य रूप से केंद्रित रहा है. इसके अलावा राजधानी दिल्ली में भी किसानों का आंदोलन हो चुका है जो कि काफी अहम माने जा रहा है. राज्य में कांग्रेस ने किसानों को कर्ज माफी का दाँव खेला है. इसके साथ ही भाजपा ने किसानों को अभी से ही साधना शुरू कर दिया है. प्रदेश में 3.50 लाख मीट्रिक टन खाद का कोटा था लेकिन इसे बढ़ाकर 4.15 लाख टन कर दिया गया. राज्य के कृषि मंत्री ने दिल्ली जाकर इस कोटे को और भी बढ़ाने की मांग की है.
आचार संहिता आई आड़े
राज्य में इस बार पांच लाख हेक्टेयर में प्याज की फसल हुई है. वर्तमान में स्थिति यह है कि प्याज की पचास पैसे से एक रूपये तक ही कीमत मिल पा रही है. इसके अलावा जो प्याज अच्छी क्वालिटी का है उसका भी भाव दो-तीन रूपये किलो ही मिल पा रहा है जिससे किसानों में काफी ज्यादा आक्रोश है. प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस संबंध में एक बैठक भी की थी लेकिन आचार संहिता के चलते कुछ भी तय नहीं किया जा सका. पिछली बार सरकार ने प्याज का बेस प्राइस 8 रूपये प्रति किलो था.
नई सरकार आते ही चुनौती
11 दिसंबर को विधानसभा चुनावों की मतगणना होगी जिसके बाद यह तय होगा कि राज्य में सत्ता किसके हाथ जाएगी. प्रदेश में अब नई सरकार के आने के बाद सबसे पहली चुनौती किसानों को साधने की रहेगी. वहीं दूसरी ओर किसानों ने धान की बिक्री को भी रोक रखा है. साथ ही प्याज भी कौड़ियों के दाम बिक रही है. यदि नई सरकार धान पर किसी भी तरह का बोनस देती है तो उस पर 400 करोड़ का अतिरिक्त बोझ भी पड़ेगा, जबकि प्याज में 800 करोड़ रूपए तक का औसत बजट खर्च होगा. इसीलिए दोनो ही परिस्थितियों में सरकार को आते ही इन मुसीबतों से जूझना पड़ेगा.
किशन अग्रवाल, कृषि जागरण