भारत में किसानों की भूमि के स्तर को देखते हुए इसे संगठित करने के लिए यह कानून सबसे पहले पंजाब प्रान्त में प्रायोगिक रूप में शुरू किया गया था. भारत में किसानों के हितों को देखते हुए भारत में चकबंदी कानून को लाया गया. आज भारत में अधिकतम राज्यों में यह चकबंदी का कार्यक्रम सरकार समय-समय पर करती रहती है. इससे बहुत से किसानों को लाभ तो कई किसानों को नुकसान भी हो जाता है.
चकबंदी कानून का इतिहास
भारत में चकबंदी कानून सर्वप्रथम पंजाब प्रान्त में एक प्रयोग के रूप में सन 1920 में शुरू किया गया था. इस समय भारत में अंग्रेजी सरकार की हुकूमत थी. उस समय सरकार द्वारा बनाये गए सभी नियम लगभग अंग्रेजी हुकूमत को लाभ पहुंचाने वाले ही होते थे. इस प्रायोगिक नियम की सफलता के बाद सरकार ने इसे वर्ष 1936 में इसे लागू करने का मन बना लिया साथ ही इसे अन्य प्रान्तों में भी लागू करने के विचार से आगे बढ़ाया गया. लेकिन जहां एक तरफ पंजाब में कुछ हद तक सफलता प्राप्त हुई वहीं अन्य प्रान्तों में इसके लिए कोई खासा रुझान प्राप्त न होने के कारण इस चकबंदी नियम को लेकर किसानों में मतभेद की स्थिति पैदा हो गयी.
स्वतंत्रता के बाद चकबंदी
भारत से अंग्रेजों का शासन समाप्त होने के बाद सरकार ने चकबंदी के नियम में कुछ ख़ास बदलाव किए. इन्हीं बदलावों के साथ सरकार ने सबसे पहले बंबई में सन 1947 में पारित नियम में यह घोषणा की गयी जहां उचित हो वहां चकबंदी को लागू किया जा सकता है. इस घोषणा के बाद कुछ प्रदेशों में इस नियम को लागू भी किया गया. उस समय यह नियम को पंजाब, उत्तर प्रदेश, प. बंगाल, बिहार एवं हैदराबाद में लागू किया गया. भारत सरकार के एक आंकड़े के अनुसार सन 1956 तक 110.09 लाख एकड़ की भूमि चकबंदी क्षेत्र में आ गयी थी. वहीं अगर हम चकबंदी क्षेत्र भूमि की बात वर्ष 1960 तक में करें तो यह आंकड़ा 230 एकड़ तक का हो गया था.
चकबंदी अधिनियम किन राज्यों में लागू नहीं है
भारत में यह अधिनियम सभी राज्यों के लिए मान्य नहीं है. इस अधिनियम को सरकार ने कुछ राज्यों के लिए ऐच्छिक रूप से और कुछ राज्यों के लिए अनिवार्य रूप से लागू किया था. भारत में नागालैण्ड, आन्ध्र प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, केरल, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, त्रिपुरा और मेघालय में चकबंदी से सम्बंधित कोई क़ानून नहीं है.
अनिवार्य एवं ऐच्छिक चकबंदी अधिनियम
चकबंदी के नियमों को लेकर भारत सरकार समय-समय पर कई तरह की समीक्षा कर उनमें होने वाले परिवर्तनों और नियमों को लागू करती है. चकबंदी के नियम को लेकर सरकार ने इसे प्रदेशों में जलवायु, मौसम, जनसंख्या इत्यादि के अनुसार कुछ प्रदेशों में इसे ऐच्छिक रूप से लागू किया गया. इसका अर्थ यह था कि अगर प्रदेश सरकार चाहे तो अपने प्रदेश में इसे लागू कर सकती है और अगर वह इसे लागू करना उचित नहीं समझती है तो वह इसे प्रदेश में लागू नहीं करती है. भारत में कुछ प्रदेशों के लिए यह नियम अनिवार्य कर रखा है जहां चकबंदी को कराना अनिवार्य होता है.
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चकबंदी अधिनियम
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चकबंदी अधिनियम के लिए प्रदेश सरकारें प्रदेश में Section 4(1) और Section 4(2) के अंतर्गत सूचना को जारी करती हैं.
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इसके बाद प्रदेश सरकार एक और भी अधिसूचना को जारी करती है जो Section 4A(1), 4A(2) तहत चकबंदी आयुक्त के द्वारा जारी की जाती है.
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इस अधिसूचना के बाद अगर किसी भी किसान की भूमि का कोई भी मुक़दमा राजस्व न्यायालय में पड़ा हुआ है तो वह सभी मुकदमें इस नियम की घोषणा के बाद अप्रभावी हो जाते हैं. साथ ही किसान अपनी भूमि का प्रयोग केवल खेती से सम्बंधित कार्यों को करने के लिए बाध्य हो जाता है.
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इसके बाद एक चकबंदी समिति के गठन के पश्चात चकबंदी लेखपाल भूमि का निरिक्षण Section7 और Section-8 के तहत करने के साथ ही नए नक़्शे को तैयार करता है.
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Section 8(a) of the Act के तहत सभी के प्रयोग में आने वाली भूमि को आरक्षण एवं अन्य कामों के लिए भी तैयार किया जाता है.
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Section-9 के तहत भूमि के सभी विवादों को सुलझाया जाता है.
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आगे की प्रक्रिया में Section-20 के तहत Size Sheet-23 Part-1 का वितरण किया जाता है।
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यदि कोई किसान चकबंदी की प्रक्रिया के कारण उससे असहमत है तो वह Section- 48 के अंतर्गत उप संचालक चकबंदी कोर्ट में अपने वाद को दर्ज करा सकता है.
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भारत में चकबंदी के नियम को प्रभावी तरीके से लागू किया जा रहा है. अभी तक इसके बहुत से लाभ सरकार को देखने को मिले हैं. बहुत से संतुष्ट किसानों के लिए भी एक जगह भूमि का उपलब्ध हो पाने से खेती में तेज़ी और फसल उत्पादन में भी आसानी हो गयी. इस नियम के लागू होने से किसानों के खर्च में तो कमी आई ही है साथ ही अन्य लाभों को भी किसान आराम से प्राप्त कर पा रहे हैं.