दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत में भी हाइड्रोपोनिक खेती (Hydroponic Farming) पर काफी चर्चा हो रही है. यह एकीकृत खेती (Integrated Farming) की ऐसी आधुनिक तकनीक है, जो फसल के अधिक उत्पादन, क्वालिटी प्रोडक्शन तथा पानी की 90 फीसदी तक बचत करने में मददगार है.
हालांकि, लोगों का ऐसा मानना है कि यह तकनीक काफी महंगी है, दूसरी तरफ सरकार भी इसके लिए सब्सिडी नहीं देती है. ऐसे में आने वाले समय में क्या इस तकनीक का देश के किसानों को फायदा होगा?
ऐसे तमाम सवाल और संशय को लेकर हमने युवा फार्मर तथा हाइड्रोपोनिक खेती के विशेषज्ञ राहुल राज द्राविड़ से विशेष बातचीत की. उन्होंने उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित चंद्र शेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से मैकेनिकल में बीटेक किया है. इस दौरान उन्होंने हाइड्रोपोनिक खेती पर तीन साल तक अध्ययन किया है.
नई नहीं, सैकड़ों साल पुरानी है तकनीक (Not new, it's hundreds of years old Technology)
हाइड्रोपोनिक फार्मिंग के विशेषज्ञ राहुल राज द्राविड़ ने कृषि जागरण से बातचीत करते हुए बताया कि पिछले कुछ सालों से भारत में भी हाइड्रोपोनिक खेती या बिना मिट्टी की खेती को लेकर युवा और प्रोग्रेसिव फार्मर्स में खास विशेष दिलचस्पी देखने को मिली है. अधिकतर लोगों का मानना है कि यह तकनीक पिछले कुछ सालों में ही विकसित हुई है.लेकिन असल में यह सैकड़ों साल पुरानी तकनीक है. ऐसा माना जाता है कि 600 ईसा पूर्व बेबीलोन में हैंगिंग गार्डन देखने को मिले हैं. वहीं 1200 सदी के अंत तक चीन में भी पानी के ऊपर खेती की जाती थी.
वहीं, इजरायल ने इसे पुनर्जीवित करने का काम किया है. यही वजह है कि पिछले कुछ सालों से यह इजरायल तकनीक के रूप में प्रचलित हो गई.
भारत में क्या है भविष्य? (What is the future in India?)
उन्होंने बताया कि आने वाले कुछ दशकों में यह तकनीक देश में तेजी से विकास कर सकती है. वहीं इस समय देश के बड़े महानगरों जैसे- मुंबई, दिल्ली, नोएडा, बेंगलुरु जैसे शहरों के आसपास इसका बेहतर भविष्य है. यदि देश के बड़े महानगरों और शहरों के इर्द-गिर्द हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती की जाए तो किसानों को अच्छा मुनाफा मिल सकता है. शहरों की बढ़ती आबादी को देखते हुए सब्जियों, फलों तथा विभिन्न फसलों की डिमांड खूब बड़ी है. शहरों की एक बड़ी आबादी के खानपान की पूर्ती करने में खेती की यह एकीकृत तकनीक सक्षम है.
इन सब्जियों से मिलेगा लाभ (Benefits of these vegetables)
2018 से लखनऊ, बरेली, कोलकाता, सोनीपत, कोयम्बटूर आदि शहरों में राहुल राज हाइड्रोपोनिक खेती के लिए काम कर रहे हैं. वे बताते हैं कि यह सच है कि यह तकनीक काफी महंगी है. लेकिन व्यावसायिक खेती के लिहाज से यह एक बेहतर तकनीक है. शुरुआती इन्वेस्टमेंट के बाद कई सालों तक इससे अच्छा मुनाफा लिया जा सकता है.
उनका कहना है कि हाइड्रोपोनिक फार्मिंग से अधिक लाभ लेने के लिए उन सब्जियों की खेती करना होगी जिनकी बाजार में अच्छी डिमांड है और भाव बेहतर मिल सकें. शिमला मिर्च (कैप्सिकम), फ्रेंच खीरा (कुकुम्बर), रेड चेरी टोमेटो, ऑरेंज रेड चेरी टोमेटो ऐसी सब्जियां है, जिनकी खेती इस तकनीक से कर अच्छा मुनाफा लिया जा सकता है.
सेटअप लगाने में 70 लाख रुपए का खर्च (70 lakhs spent on setting up)
राहुल राज ने आगे बताया कि आज के समय में यह तकनीक थोड़ी महंगी है, लेकिन यह एकीकृत खेती का बेहतरीन उदाहरण है. एक एकड़ में हाइड्रोपोनिक तकनीक का सेटअप लगाने में करीब 70 लाख रूपए तक का खर्च आता है. पॉलीहाउस, एनएफटी (Nutrient Film Technique) आदि के खर्च शामिल है. एक एकड़ में पॉलीहाउस लगाने में लगभग 25 लाख रुपए का खर्चा आता है. उन्होंने बताया कि हो 2024 तक सरकार इस तकनीक पर सब्सिडी देना शुरू कर दें. फिर भी खर्च को कम करने के लिए पॉलीहाउस पर सरकारी सब्सिडी का लाभ उठाया जा सकता है.
शिमला मिर्च से साल भर में लाखों की कमाई (Capsicum earns lakhs in a year)
कमाई को लेकर राहुल बताते हैं कि अगर एक एकड़ के सेटअप में शिमला मिर्च की खेती की जाए तो लगभग 11 हजार प्लांट लगते हैं. प्रत्येक प्लांट से 5 किलो तक उत्पादन मिलता है. वहीं 8 महीने का पूरा फसल चक्र होता है. यानी 8 महीने में लगभग 50 से 55 टन का उत्पादन लिया जा सकता है. 12 महीने के समय चक्र में 80 से 82 टन तक उत्पादन लिया जा सकता है. वहीं थोक मंडियों में शिमला मिर्च का औसत भाव 100 से 120 रूपए किलो तक मिलता है. इस तरह सालभर में लगभग 80 लाख रुपए की आमदानी होती है. जिसमें लगभग 20 फीसदी तक लागत आती है, जिसमें बीज,न्यूट्रिएंट्स, लेबर, मेंटेनेंस आदि खर्चें शामिल हैं. इस तरह सालभर में 16 से 20 लाख रुपए की लागत आती है. ऐसे में सालभर में 50 से 60 लाख रुपए की कमाई हो जाती है.