1. Home
  2. खेती-बाड़ी

बेल की खेती के लिए अपनाएं ये तरीका, किसानों को मिलेगी अच्छी पैदावार

पोषक तत्वों से भरपूर बेल एक अहम फल है, देश में बेल फल धार्मिक रूप से भी बहुत अहम है बेल से तैयार औषधि दस्त, पेट दर्द, मरोड़ आदि के लिए प्रयोग की जाती है यह एक कांटे वाला पेड़ है, जिसकी ऊंचाई 6-10 मीटर होती है और इसके फूल हरे लंबाकार होते हैं, जो ऊपर से पतले और नीचे से मोटे होते हैं, किसान अब इसकी खेती कर अच्छी कमाई कर रहे हैं.

राशि श्रीवास्तव
किसान
किसान

बेल एक बागबानी फसल है, जिसके फलों की खेती औषधीय रूप में भी की जाती है. इसकी जड़ें, पत्ते, छाल और फलों को औषधीय रूप से इस्तेमाल करते हैं. बेल को प्राचीन काल से ही ‘श्रीफल’ के नाम से भी जाना जाता है. इसे शैलपत्र, सदाफल, पतिवात, बिल्व, लक्ष्मीपुत्र और शिवेष्ट के नाम से भी जाना जाता है. वैदिक संस्कृत साहित्य में इसे दिव्य वृक्ष का दर्जा दिया है. ऐसा कहा जाता है, कि इसकी जड़ों में महादेव शिव निवास करते हैं जिस वजह से इस पेड़ को शिव का रूप भी कहते हैं. बेल का फल पोषक तत्व और औषधीय गुणों से भरपूर होता है. इसमें विटामिन ए, बी, सी, कार्बोहाइड्रेट और खनिज तत्व की पर्याप्त मात्रा होती है. इसलिए किसान बेल की खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं, आइये जानते हैं खेती का तरीका...

अनुकूल जलवायु- बेल का पौधा शुष्क और अर्धशुष्क जलवायु वाला होता है. सामान्य सर्दी और गर्मी वाले मौसम में पौधे अच्छे से विकास करते हैं. लेकिन ज्यादा समय तक सर्दी का मौसम बने रहने और गिरने वाला पाला पौधों को कुछ हानि पहुंचाता है.  

उपयुक्त मिट्टी- बेल की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में हो सकती है. फसल को पठारी, कंकरीली, बंजर, कठोर, रेतीली सभी तरह की भूमि में उगा सकते हैं. लेकिन बलुई दोमट मिट्टी में पैदावार अधिक मात्रा में होती है. खेती में भूमि उचित जल-निकासी वाली होनी चाहिए, क्योंकि जलभराव में पौधों में कई रोग लग जाते हैं. भूमि का पीएच मान 5 से 8 के बीच होना चाहिए.

पौधों की रोपाई का सही समय- बेल के पौधों की रोपाई कभी भी कर सकते हैं लेकिन सर्दियों का मौसम पौध रोपाई के लिए उपयुक्त नहीं होता. यदि किसान बेल की खेती व्यापारिक तौर पर कर रहे हैं, तो उन्हें पौधों की रोपाई मई और जून के महीने में करनी चाहिए. सिंचित जगहों पर पौधों की रोपाई मार्च के महीने में कर सकते हैं. 

पौधों की रोपाई का तरीका- बेल के बीज की रोपाई पौध के रूप में की जाती है. पौधों को खेत में तैयार करते हैं  या किसी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से खरीद लेते हैं फिर पौधों को खेत में एक महीने पहले तैयार गड्डो में लगाते हैं. पौधा रोपाई से पहले तैयार गड्डों के बीच में एक छोटे आकार का गड्डा बनाते हैं इसी छोटे गड्डे में पौधों की रोपाई कर उसे चारों तरफ अच्छे से मिट्टी से ढक देते हैं. पौध रोपाई से पहले बाविस्टीन या गोमूत्र की उचित मात्रा से गड्डों को उपचारित करते हैं. पौधों को रोग लगने का खतरा कम होने के साथ ही पैदावार अच्छी होती है. 

ये भी पढ़ेंः धान में कल्ले ही कल्ले बढ़ाने के लिए अपनाएं ये 5 जबरदस्त तरीके, मिलेगी तीव्र पैदावार

सिंचाई- नये पौधों को एक-दो साल सिंचाई की जरूरत पड़ती है, स्थापित पौधे बिना सिंचाई के भी अच्छी तरह से रह सकते हैं, यह सूखे को भी सहन कर सकता है सिंचाई की सुविधा होने पर मई-जून में नई पत्तियां आने के बाद दो सिंचाई 20-30 दिनों के अंतराल पर कर देनी चाहिए.

English Summary: Follow this method for vine cultivation, farmers will get good yield Published on: 11 February 2023, 05:33 PM IST

Like this article?

Hey! I am राशि श्रीवास्तव. Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News