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Updated on: 21 February, 2019 12:00 AM IST
mahabharat

कर्ण - यह वह नाम है जिसके बिना महाभारत अधूरी है. सूर्य का कवच और कुंडल लिए जन्मे कुंती पुत्र कर्ण का पूरा जीवन मानो एक परीक्षा की भांति था. जन्म से लेकर मृत्यु तक सूर्यपुत्र कर्ण के आगे समय-समय पर जटिल परिस्थितियां आती रही. यह महाभारत के उन किरदारों में से एक था जो अधर्म के साथ होने पर भी सदैव याद रखे जाएंगे. कर्ण की कहानी किसी 70-80 के दशक की फिल्म की तरह है परंतु उसका जीवन एक प्रेरणा है, जिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है.

कैसे बना वीर से महावीर

कर्ण के वीर से महावीर बनने की गाथा इतनी बड़ी और विशाल है कि उसे एक लेख में समेटा नहीं जा सकता पर कुछ घटनाएं ऐसी हैं जिनके बारे में अवश्य बताया जा सकता है. कर्ण को गंगा में सौपने के बाद कुंती का विवाह हो जाता है और कर्ण मिलता है हस्तिनापुर के रथ बनाने वाले को, जिसे वह घर ले जाता है और उसे पालता है. चूंकि उस रथ वाले की पत्नी का नाम राधा होता है इसलिए कर्ण के बचपन का नाम राधेय पड़ जाता है. सूर्य की किरण चाहे कितनी भी कम क्यों न हो एक न एक दिन अंधकार की छाती चीर ही देती है. इसलिए कर्ण भी छुपने वाला कहां था. उसने अपने पिता से आग्रह किया कि वह गुरु द्रोणाचार्य से अस्त्र-शस्त्र सिखना चाहता है. परंतु गुरु द्रोण ने यह कहकर कि वह एक सूत पुत्र है उसे शिक्षा देने से इंकार कर दिया. फिर कर्ण ने यही शिक्षा गुरु परशुराम से ली और फिर जिस खेलभूमि में पांडव और कौरव राजकुमार अपनी शिक्षा का प्रदर्शन कर रहे थे, वहां जा पहुंचा और यह चुनौती देने लगा कि इस समय विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर वही है. कुलगुरु कृपाचार्य ने पूछा कि हे वीर तुम्हारा कुल क्या है ? क्योंकि यहां सिर्फ क्षत्रिय राजकुमार ही प्रदर्शन कर सकते हैं. यह सुनकर कर्म चुप हो जाता है तब दुर्योधन कर्ण को अंग देश देकर उसे भी राजा बना देता है और उसके सामने अपनी मित्रता का प्रस्ताव रखता है. बस ! उसी घड़ी से कर्ण दुर्योधन की ऐसी छाया बन जाता है कि वह उससे अलग ही नहीं होता. एक घड़ी ऐसी भी आती है जब कर्ण को यह पता होता है कि वह अधर्म के साथ है जहां उसकी हार निश्चित है, फिर भी वह दुर्योधन का साथ नहीं छोड़ता. इसीलिए जब कर्ण युद्ध में मारा जाता है तो कृष्ण उसे महावीर और महायोद्धा की उपाधि देते हैं और पांडवों को यह बताते हैं कि वह ज्येष्ठ कौंतेय था.

क्या सीख देता है 'कर्ण' किरदार

कर्ण की मृत्यु असंभव थी क्योंकि वह ऐसे कवच और कुंडल के साथ पैदा हुआ था जिसे स्वंय ब्रर्हास्त्र भी भेद नहीं सकता था और यह जानने के बावजूद भी कि देवता उससे यह कवच कुंडल लेने आएंगे, वह उन्हें यह दे देता है. इसके अलावा कर्ण की निष्ठा चाहे दुर्योधन के साथ ही थी परंतु वह निष्ठा पवित्र थी जिसकी आज हमारे समाज में बहुत आवश्यकता है. कर्ण दुर्योधन को समय-समय पर चेताते रहता है कि कि यदि पांडवों से लड़ना है तो छल से नहीं बल्कि वीरता से लड़ना चाहिए और इसी चलते वह मामा शकुनि से भी कभी सहमत नहीं हुआ, क्योंकि वह एक महावीर था. कर्ण का कहना था कि छल से शत्रु को मारने से बेहतर है लड़ते हुए रणभूमि में प्राण त्यागना. 

आज जब बेटा पिता को और मित्र मित्र के साथ विश्वासघात कर रहा है, ऐसे में कर्ण का किरदार प्रासंगिक हो उठा है. समाज में लोगों को कर्ण के जीवन से बहुत कुछ सीख मिलती है. शायद इतनी कि इस लेख में भी समा न सके

English Summary: why living with badness is also alive 'karna'
Published on: 21 February 2019, 04:41 IST

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