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Updated on: 3 September, 2018 12:00 AM IST
Krishna Janmashtami

पूरा देश श्री कृष्ण जन्माष्टमी के उत्सव में डूबा हुआ है, हर साल की तरह इस बार भी पूरे देश में कान्हा का जन्म बहुत ही धूम-धाम से मनाया जा रहा है. मगर क्या आपने ये बात सोची है कि ये उत्सव कभी-कभी दो दिन क्यों मनाया जाता है ?जबकि हर साल की तरह इस बार भी ये भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को ही मनाया जा रहा है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी लेकिन कभी-कभी ये दो दिन मनाई जाती है इसके पीछे भी एक कारण होता है.इस साल 2 और 3 सितंबर को जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जा रहा है. जबकि कृष्ण जी का जन्म तो एक ही दिन हुआ था. इसकी वजह बताने से पहले हम आपको बता दें कि जब भी जन्माष्टमी का उत्सव दो दिन मनाया जाता है तो उसे पहले दिन स्मार्त सम्प्रदाय के लोग और दूसरे दिन वाली वैष्णव सम्प्रदाय के लोग मनाते हैं.

 दो दिन क्यों मनाते हैं जन्माष्टमी ?

2 सितंबर को स्मार्त यानि ऋषि मुनि मनाएंगे और 3 सितंबर को वैष्णव यानी गहस्थ जीवन वाले मनाएंगे. दरअसल ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये सब नक्षत्रों के चाल बदलने की वजह से किया जाता है.स्मार्त अनुयायियों के लिए हिंदू ग्रन्थ धर्मसिंधु और निर्णयसिंधु में जन्माष्टमी का दिन निर्धारित होता है और वैष्णव सम्प्रदाय के गृहस्थ वाले होते हैं तो उन्हें इसका अगला दिन निर्धारित किया गया है.
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि में बुधवार के दिन हुआ था इसलिए हर साल इसी तिथि और इसी नक्षत्र में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है. अगर वो तिथि दो दिन पड़ जाती है तो उसे दो दिन मनाया जाता है.श्रीकृष्ण की सिखाई गई बातें युवाओं के लिए इस युग में भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जितनी अर्जुन के लिए थीं. जानिए उनके दिए व्यवहारिक ज्ञान का सार कैसे आज के प्रतियोगी युग में भी सफलता की गारंटी देता है.
श्रीकृष्ण की सिखाई गई बातें युवाओं के लिए इस युग में भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जितनी अर्जुन के लिए रहीं. जानिए उनके दिए व्यवहारिक ज्ञान का सार, कैसे आज के प्रतियोगी युग में भी सफलता की गारंटी देता है.

कृष्ण हर मोर्चे पर क्रांतिकारी विचारों के धनी रहे हैं. उनका सबसे बड़ा आकर्षण यह है कि वह किसी बंधी-बंधाई लीक पर नहीं चले. मौके की जरूरत के हिसाब से उन्होंने अपनी भूमिका बदली और अर्जुन के सारथी तक बने.

भगवान कृष्ण ने पांडवों का साथ हर मुश्किल वक्त में देकर यह साबित कर दिया था कि दोस्त वही अच्छे होते हैं जो कठिन से कठिन परिस्थिति में आपका साथ देते हैं. दोस्ती में शर्तों के लिए कोई जगह नहीं है, इसलिए आपको भी ऐसे ही दोस्त अपने आस-पास रखने चाहिए जो हर मुश्किल परिस्थिति में आपका संबल बनें.

महाभारत के सबसे बड़े योद्धा अर्जुन ने ना केवल अपने गुरू से सीख लिया बल्कि वह अपने अनुभवों से हमेशा कुछ न कुछ सीखते रहे. यह सीख हर स्टूडेंट के लिए जरूरी है. स्टूडेंट को शिक्षक के अलावा अपनी गलतियों और असफलताओं से भी हमेशा सीखना चाहिए.

अगर पांडवों के पास भगवान कृष्ण की मास्टर स्ट्रेटजी ना होती तो शायद ही पांडव युद्ध में जीत पाते. इसलिए किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने के लिए स्ट्रैटजी बनाना आवश्यक है.

Don't worry, be happy. इस फंडे को कृष्ण ने गीता में सिखाया है. 'क्यों व्यर्थ चिंता करते हो? किससे व्यर्थ में डरते हो?'

कृष्ण से जुड़ी किसी भी कहानी को पढ़ें तो आपको ये बात साफतौर पर देखने को मिलेगी कि इंसान को दूरदर्शी होना चाहिए और उसे परिस्थि‍ति का आकलन करना आना चाहिए.

कृष्ण हमें यह भी सिखाते हैं कि मुसीबत के समय या सफलता न मिलने पर हिम्मत नहीं हारनी चाहिए. इसकी बजाय हार की वजहों को जानकर आगे बढ़ना चाहिए. समस्याओं का सामना करें. एक बार डर को पार कर लिया तो फि‍र जीत आपके कदमों में होगी.

मैनेजमेंट के सबसे बड़े गुरु हैं भगवान कृष्ण. उन्होंने अनुशासन में जीने,व्यर्थ चिंता न करने और भविष्य की बजाय वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने का मंत्र दिया.

भगवान कृष्ण ने अपने मित्र सुदामा की गरीबी देखी तो उसके घर पंहुचने से पहले ही उसकी झोंपड़ी की जगह महल बना दिया. इसलिए कहते हैं कि दोस्ती, कृष्ण से सीखनी चा‍हिए और रिश्तों में कभी ओहदे को बीच में नहीं लाना चा‍हिए.

सीधे रास्ते से सब पाना आसान नहीं होता. खासतौर पर तब जब आपको विरोधि‍यों का पलड़ा भारी हो. ऐसे में कूटनीति का रास्ते अपनाएं.  श्री कृष्ण को सबसे बड़ा कूटनीतज्ञ भी माना जाता है.

 

सड़क के एक ठिकाने से की गई शुरुआत ने कृष्णा यादव को कृष्णा पिकल्स का मालिक बना दिया है. आज कृष्णा के नाम से उनका अचार बिकता है. लेकिन ये कामयाबी चुनौतियों और संघर्ष की हर राह से गुजर कर यहां तक पहुंची है.
ईमानदार कोशिश हो तो फिर किसी शिक्षा और पूंजी की जरुरत नहीं पड़ सकती. यही साबित किया है दिल्ली के नज़फगढ़ की अनपढ़ कृष्णा यादव ने जो कि आज चार-चार अचार फैक्ट्री की मालकिन हैं.
छोटी सी जमीन के हिस्से पर कृष्णा सब्जियां उगाया करती थीं. लेकिन मंडी में सब्जी के दाम कम मिलते थे. ऐसे में कृष्णा ने सब्जी से अचार बनाने के बारे में सोचा.

कभी रेहड़ी-पटरी पर अचार बेचने वाली एक महिला आज 400 लोगों को रोजगार दे रही है. कभी दोस्त से 500 रुपाए उधार लेकर अपना कारोबार शुरु करने वाली इस महिला का आज 7 करोड़ सालाना का टर्नओवर है.
मजबूत हौसलों के साथ अगर ईमानदार कोशिश हो तो फिर किसी शिक्षा और पूंजी की जरुरत नहीं पड़ सकती. यही साबित किया है दिल्ली के नज़फगढ़ की अनपढ़ कृष्णा यादव ने जो कि आज चार-चार अचार फैक्ट्री की मालकिन हैं. सड़क के एक ठिकाने से की गई शुरुआत ने कृष्णा यादव को कृष्णा पिकल्स का मालिक बना दिया है. आज कृष्णा के नाम से उनका अचार बिकता है. लेकिन ये कामयाबी चुनौतियों और संघर्ष की हर राह से गुजर कर यहां तक पहुंची है.
छोटी सी जमीन के हिस्से पर कृष्णा सब्जियां उगाया करती थीं. लेकिन मंडी में सब्जी के दाम कम मिलते थे. ऐसे में कृष्णा ने सब्जी से अचार बनाने के बारे में सोचा.
लोगों ने कृष्णा को कृषि विज्ञान की अचार बनाने की ट्रेनिंग के बारे में बताया. कृष्णा ने वहां से 3 महीने की ट्रेनिंग ली और अचार की कई किस्में बनाना सीखा. इसके बाद कृष्णा ने दो महिलाओं के साथ अचार बनाने का काम शुरु किया.
नज़फगढ़ में सड़क के कोने पर टेबल लगा कर कृष्णा ने अचार बेचना शुरू किया. इसके बाद वक्त ने ऐसी पलटी खाई कि कृष्णा के अचार का स्वाद लोगों की जुबान पर जायका बन गया. कृष्णा यादव को राष्ट्रपति से सम्मान भी मिल चुका है.

English Summary: Why can Shri Krishna Janmashtami and youth learn?
Published on: 03 September 2018, 09:52 IST

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