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Updated on: 3 January, 2019 12:00 AM IST
mohan rakesh

मोहन राकेश वह नाम है पचास के दशक में अपनी लेखनी के बूते समाज से दूर होते हिंदी साहित्य को रंगमंच के करीब ला दिया और स्वयं को भारतेंदु हरिशचंद्र और जयशंकर प्रसाद के समकक्ष खड़ा कर दिया. आज मोहन राकेश के एक ऐसे ही नाटक के बारे में बात करेंगे, जो जब लिखा गया था तब भी प्रासंगिक था और आज भी समाज का आइना बना हुआ है. हमारी कोशिश होगी कि मोहन राकेश के जीवन के हर पहलू को छू-कर गुज़रा जाए.

आरंभिक जीवन

मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 में अमृतसर, पंजाब में हुआ था. पिताजी का पेशा वकालत था और वह साहित्य प्रेमी भी रहे सो, मोहन पर उसका प्रभाव पड़ा. मोहन की कोशोरावस्था में ही उनके पिता का देहांत हो गया. लेकिन मोहन राकेश ने अपनी पढ़ाई नहीं रोकी और पढ़ते चले गए. मोहन राकेश ने लाहौर के ओरियंटल कॉलेज से 'शास्त्री' की पढ़ाई पूरी करने के बाद पंजाब विश्वविघालय से हिंदी और अंग्रेज़ी में एम.ए किया. नौकरी के शुरुआती दौर में मोहन राकेश ने शिक्षक के रुप में शुरुआत की और फिर उनका झुकाव लघु कथाओं की ओर हो गया. उसके बाद उन्होनें नाटक और उपन्यास भी लिखे.

स्वतंत्र लेखन को समर्पित

मोहन राकेश का अध्यापन में अधिक दिनों तक मन नहीं लगा और वह लेखन करने लगे. उन्होनें लगभग एक वर्ष तक 'सारिका' पत्रिका का संपादन किया. लेकिन इस कार्य में भी उन्हें लगने लगा कि यह उनके लेखन में बाधा पहुंचा रहा है. बस फिर क्या था, मोहन ने वह नौकरी भी छोड़ दी और वह पूर्णत: स्वतंत्र लेखन को समर्पित हो गए और अंत तक स्वतंत्र लेखन ही करते रहे. यही उनकी जीविका का साधन बना.

क्या है 'आधे-अधूरे'

आधे-अधूरे मोहन राकेश का एक ऐसा नाटक है जिसने हमारे देश के मध्यम वर्ग को आइने की तरह दुनिया के सामने लाकर खड़ा कर दिया. इस नाटक के किरदारों को परिस्थितिओं के अनुकूल ऐसे ढाला गया कि वह इतिहास बन गए. एक मध्यमवर्गीय परिवार में किस प्रकार की सोच पलती रहती है और वहां के लोगों का रहन-सहन, रख-रखाव और जीवन को देखने का नज़रिया कैसा होता है, इस नाटक ने सब बंया किया है. इस नाटक की पृष्ठभूमि में एक परिवार है जिसमें पति-पत्नी और उनके दो बच्चे, एक बेटा और एक बेटी हैं. यह चार लोग एक होने के बावजूद भी एक दूसरे से इतर हैं. हर कोई अपने जीवन को बंदिशों के जकड़ाव में देख रहा है जिससे वह निकलना तो चाहता है परंतु उसमें धैर्य का नितांत अभाव है. मौन और शोर के बीच के अंतरकलह को यह नाटक बखूबी बंया करता है. इस नाटक की ख्याति ऐसी है कि आज देश के कोने-कोने में इस नाटक का मंचन किया जाता है. हाल ही में दिल्ली के श्रीफॉर्ट ऑडिटोरियम में इस नाटक का मंचन किया गया है.

आज मोहन राकेश की पुण्यतिथि पर कृषि जागरण की ओर से उनको भावपूर्ण श्रद्धांजलि.

English Summary: NOVALIST AND PLAYWRITER MOHAN RAKESH DEATH ANNIVERSARY
Published on: 03 January 2019, 02:17 IST

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