'सच' - ये वो शब्द है जो आज सुनने को बहुत कम मिलता है. यूं तो सच के नाम से हरिशचंद्र ही याद किए जाते हैं लेकिन एक नाम और है जिसकी चर्चा नहीं होती. आज के दौर में भले ही कोई विदुर को याद नहीं करता लेकिन सच यही है कि करना चाहिए.
कौन थे विदुर
जब हस्तिनापुर पर वंश संकट गहराया तो रानी सत्यवती ने अपने पुत्र वेदव्यास के द्वारा दोनों रानियों - अंबिका और अंबालिका से पुत्रों की प्राप्ति की. परंतु जब रानी अंबालिका ने अपने स्थान पर अपनी प्रमुख दासी को भेज दिया तो उस दासी से जिस पुत्र की प्राप्ति हुई, उसका नाम विदुर रखा गया. विदुर की शिक्षा और बचपन राजकुमारों की तरह गुरुकुल में ही बीता परंतु विदुर ज्ञानी थे, इसलिए वह खुद को हमेशा दासीपुत्र ही कहलवाते रहे. उनका मानना था कि व्यक्ति को कभी अपनी ज़मीन, अपनी पृष्टभूमि नहीं भुलनी चाहिए. विदुर आगे चलकर हस्तिनापुर के महामंत्री के रुप में कार्यरत रहे.
जहां विदुर है वहां सत्य है
विदुर के जन्म से पहले वेदव्यास जी द्वारा की गई भविष्यवाणी सत्य निकली. विदुर परम ज्ञानी और मुनि स्वभाव के महापुरुष निकले. विदुर में वैसे तो गुणों की कोई कमी नहीं थी परंतु उनका सबसे बड़ा गुण राजनीति का था. विदुर राजनीति में कुशल थे. बड़े-बड़े राजा-महाराजा और मंत्री उनसे राजनीति के गुन सिखने आते थे. वजह एक ही थी - विदुर मानते थे कि एक मंत्री को हर स्थिति में अपने राजा से और हर राजा को अपनी प्रजा से सच बोलना चाहिए. क्योंकि यदि ऐसा नहीं हुआ तो कुछ समय बाद उस राष्ट्र का पतन निश्चित है. विदुर की इस सत्य नीति के सब महापुरुष कायल थे. परंतु धूर्त, कपटी और चापलूस लोगों को वो खलते थे या यूं कहें कि उनका सत्य खलता था.
विदुर की कमी
आज हर कोई भीष्म होना चाहता है, अर्जुन या भीम होना चाहता है परंतु कोई विदुर नहीं होना चाहता. क्योंकि न तो कोई सत्य बोलना चाहता है और न ही कोई बोल पाएगा.
उसका कारण यह है कि एक झूठ को झुपाने के लिए इतने झूठ बोले जाते हैं कि फिर वापस सच के पास आना मुश्किल हो जाता हैं और सच कोसों दूर निकल जाता है. ये तो हुई आम जिंदगी की बात परंतु वर्तमान राजनीति में झूठ आज कमी नहीं बल्कि हथियार है. आज नेता या सियासतदान, जिनके कंधों पर राष्ट्र का बोझ है या पड़ने वाला है वो झूठ के आगोश में है
और यह खतरा अधिक गंभीर इसलिए हो गया है कि जिनको सच और झूठ में फर्क करना था उन्होंने आंखों पर पट्टीयां बांध ली हैं और वह बेसूद हुए घूम रहे हैं. सच का दूर-दूर तक पता नहीं. किसी शायर ने अपने अंदाज़ में कहा है कि -
अपने रहनुमाओं की अदा पर फिदा है ये दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारों
खैर, विदुर तो अब आने से रहे परंतु यदि हम कैलाश सत्यार्थी, मदर टेरेसा और उस्ताद बिस्मिल्लाह खां जैसा आचरण भी कर लें तो शायद सत्य हमको और हम सत्य को तलाश सकें