Maize Farming: रबी सीजन में इन विधियों के साथ करें मक्का की खेती, मिलेगी 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार! पौधों की बीमारियों को प्राकृतिक रूप से प्रबंधित करने के लिए अपनाएं ये विधि, पढ़ें पूरी डिटेल अगले 48 घंटों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में घने कोहरे का अलर्ट, इन राज्यों में जमकर बरसेंगे बादल! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक घर पर प्याज उगाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके, कुछ ही दिन में मिलेगी उपज!
Updated on: 27 December, 2018 12:00 AM IST
Mirza Galib

गालिब की दिल्ली कहूं या दिल्ली के गालिब, बात एक जैसी ही है. शायरों में एक ऐसा शायर जिसके नाम से दिल्ली जानी गई. गालिब की पैदाइश और इंतकाल के बारे में आपको इंटरनेट वेबसाइट और किताब से जानकारी मिल जाएगी, इसलिए आज हम आपको गालिब की जिंदगी से जुड़े दूसरे पहलुओं के बारे में बताएंगें.

ऊर्दू शायरी दो सौ साल से भी ज़्यादा पूरानी है, बहुत मुश्किल है इसमें अच्छी शायरी कहना और यदि कुछ अच्छा कह दिया जाए तो फिर क्या कहने. गालिब इसी दर्जे के शायर हैं. इनकी शायरी में शराब से लेकर कोठे तक और सियासत से लेकर इश्क तक सब मौजूद है.

क्यों अलग है 'गालिब'

'यूं तो बहुत हैं सुख़नवर दुनिया में, कहते हैं गालिब का अंदाज़-ए-बयां कुछ और है' यह शेर गालिब ने खुद के लिए लिखा. गालिब अपने हुनर से वाकिफ़ नहीं थे, ऐसा तो बिल्कुल नहीं था परंतु उन्हें कभी इसका गुमान नहीं हुआ. गालिब जब तक जिंदा रहे, फकीर की तरह रहे. उनकी हर अदा में शायरी थी और यही वह खूबी थी जिसने गालिब को दूसरे शायरों से न केवल अलग खड़ा किया बल्कि ऊर्दू शायरी का सबसे नायाब शायर बना दिया.

आ ही जाता वो राह पर 'ग़ालिब'

कोई दिन और भी जिए होते

शेर कहने का यह अंदाज गालिब का है. बातचीत के लिहाज़ में शेर कह देना ही गालिब की अज़ीम शख्सियत में शुमार था.

गालिब की दिवाली

ऐसा नहीं था कि गालिब अपने वक्त के बारे में मुक्तलिफ़ जानकारी नहीं रखते थे. वह एक शायर के लिहाज़ से अपने आस-पास हो रही हर चहलकदमी से वाकिफ़ थे. एक किस्सा गालिब के बारे में यह कहा जाता है कि - दिवाली के दिन गालिब के यहां कुछ हिन्दू दिवाली की मिठाई दे गए और गालिब उनका शुक्रिया अदा करने बाहर आए तो पास बैठे एक मौलाना ने उनसे कहा कि- क्या गालिब दिवाली की बरफ़ी खाएंगें ? बरफ़ी तो हिंदू होती है, इसपर गालिब ने जवाब दिया कि अच्छा ! तो रबड़ी क्या है ? और कलाकंद ? यह कहकर वो हंसते हुए चल दिए. गालिब ने अपनी शायरी में जहां एक और मज़हब के ठेकेदारों पर तंज कसा वहीं दूसरी और सारी इंसानियत को यह एहसास कराय कि खुदा कहीं नहीं, इंसान के अंदर मौजूद है. उसके लिए मंदिर,मस्जिद,गुरुद्धारा और चर्च की आवश्यकता नहीं हैं.

English Summary: Know about Mirza Galib
Published on: 27 December 2018, 03:57 IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now