आज की कहानी ये है कि किसान का बेटा किसान नहीं बनना चाहता. अपने खेतों और ज़मीनों पर खेती करने के बजाय किसान उन्हें बेच रहा है क्योंकि वो जानता है कि उसकी आने वाली पीढ़ी कभी खेती नहीं करेगी. यहां तक कि उनकी कृषि और खेती-बाड़ी में कोई रुचि नहीं है. लेकिन आज इस लेख में आपको पता चलेगा कि अगर किसान पहले जैसा नहीं रहा तो अब कृषि भी पहले जैसी नहीं रही. बस, ज़रुरत है तो इस क्षेत्र की ओर रुचि लेने की.
ये बात कुछ 7 साल पुरानी है. उत्तर प्रदेश में एक किसान भोलाश्याम के पास 9 एकड़ ज़मीन थी. उसने अपनी सारी जिंदगी खेती करते-करते गुज़ार दी. पत्नी के देहांत के बाद तो भोलाश्याम ने घर और खेत, दोनों की जिम्मेदारी ले ली. उसके तीन लड़के हैं. एक दिल्ली में सरकारी अफसर है, एक विदेश में है और एक भोलाश्याम के साथ रहता है जो बायोटेक्नोलॉजी में एमएससी कर रहा है. भोलाश्याम बताते हैं कि तीनों बेटे गुणवान और समझदार हैं लेकिन तीनों में से एक की भी रुचि कृषि में नहीं है. ये बात भोलाश्याम को बहुत घटकती थी. लेकिन पिछले महीने जब मैं उनके घर गया तो वह घर पर नहीं मिले.
उनके रिश्तेदार ने बताया कि वह खेत की ओर गए हैं. मैनें सोचा खेत में ही मुलाकात कर ली जाए, सो मैं खेतों की ओर चल पड़ा. वहां पहुंचकर जो मैने देखा उसपर मुझे यकीन नहीं आया. भोलाश्याम जी का सबसे छोटा बेटा ट्रैक्टर चला रहा था और विदेश में रहने वाला बेटा पॉलीहाउस में पिता का हाथ बटा रहा था. मुझे बहुत खुशी हुई लेकिन सच यही है कि उससे ज्यादा आश्चर्य हुआ. मैने भोलाश्याम जी से नमस्ते तक नहीं किया और सीधे पूछा - कि ये सब कैसे ?
भोलाश्याम जी ईश्वर को धन्यवाद देते हैं और फिर कहते हैं कि मुझे भी ये किसी सपने जैसा ही लगता है लेकिन ये सच है. आज से 2 साल पहले मेरा विदेश वाला बेटा अचानक घर आ गया. मैं तो डर ही गया कि न जाने क्या हो गया. वो मुझे सीधे खेत ले गया और कहा कि आज से मैं यहीं रहुंगा और खेती करुंगा पर शर्त इतनी है कि आप मेरे काम के बीच नहीं आएंगे. भोलाश्याम जी ने कहा कि मेरे लिए तो यही बड़ी बात थी कि बेटा वापस आ गया सो, मैने कह दिया - ठीक है. लेकिन परेशान था कि पता नहीं ये क्या कर दे. क्या पता किसी विदेशी कंपनी को ज़मीन बेच दे. लेकिन जब इसने काम करना शुरु किया तो मुझे समझ आया कि ये क्या करना चाहता है.
इसने अत्याधुनिक मशीनें और तकनीक को इस्तेमाल करने की ठानी है और उसी के द्वारा खेती करना चाहता है. छोटू की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और वह नौकरी ढ़ूंढ रहा था. पहले तो नौकरी मिली नहीं और फिर जब मिली तो वह किसी काम की नहीं थी. महीने के महज़ 16 हजार रुपए मिलते थे. बड़े बेटे ने छोटे वाले को भी समझाया कुछ विडियो दिखाई और बताया कि हमें बाहर नौकरी करने की ज़रुरत नहीं है. हमारे पास 9 एकड़ ज़मीन है जिससे हम हर महीने 60 से 70 लाख कमा सकते हैं. छोटा मान गया और अब दोनों मिलकर खेती कर रहे है. 9 एकड़ में इन्होनें कुछ फल लगाए हैं, कुछ सब्जियां और कुछ फूल. बड़े वाले ने कुछ देसी और विदेशी कंपनियों से बात कर रखी है जो एक अच्छी रकम देने को तैयार है. आज भोलाश्याम जी को जहां इस बात की खुशी है कि बेटे उनके साथ रहते हैं वहीं इस बात पर गर्व है कि वह तकनीक को समझकर आधुनिक कृषि कर रहे हैं.