अगर आप पुष्पीय पौधों की खेती करना चाहते हैं, तो आपके लिए ग्लेडियोलस की खेती फायदेमंद साबित हो सकती है. जी हां, बहुत ही महत्वपूर्ण एवं लोकप्रिय पुष्पीय पौधों में से एक ग्लेडियोलस, घरेलु और अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में अपनी खास पहचान रखता है.
वानस्पतिक पौधों की श्रेणी में आता है ग्लेडियोलस
ग्लेडियोलस से होने वाले लाभ के कारण ही इसे क्वीन (फूलों की रानी) भी कहा जाता है. यूरोपीय देशों में तो शरद ऋतु के समय इसकी मांग और भी बढ़ जाती है. अगर वानस्पतिक संबंधों की बात करें तो ये पौधा ग्लेडियोलस हाइब्रिड्स एवं इरिडेसी कुल के परिवार से आता है.
सप्ताह भर ताजे रहते हैं फूल
इसको पसंद करने की एक खास वजह यह भी है कि इसका पुष्प एक सप्ताह तक कटने के बाद भी तरोताजा रह सकता है. शायद यही कारण है कि प्रायः हर तरह के बड़े और लंबे समारोह में इसका उपयोग होता ही है.
इन क्षेत्रों में होती है खेती
एक जमाना था जब ग्लेडियोलस को पर्वतों का पौधा कहा जाता था, लेकिन आज के समय में इसकी खेती मैदानी क्षेत्रों में भी होती है. उत्तरी-पूर्वी राज्यों में कभी उगने वाला ये पौधा आज नए तकनीक और अच्छे प्रबंध के कारण दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में भी उग रहा है. चलिए इस लेख के माध्यम से हम इसकी खेती और प्रबंधन के बारे में आपको विस्तार से बताते हैं.
मुख्य उपयोग
इस पौधे का मुख्य उपयोग समारोह जैसे सामाजिक, सांस्कृतिक आयोजनों, कार्यक्रमों आदि में होता है. बदलते हुए समय के साथ आज नव वर्ष, बड़ा दिन, मदर्स डे, वेलिनटाइन डे आदि पर भी इसकी मांग खूब होती है. सजावट के साथ-साथ इसे कई तरह के आयुर्वेदिक दवाओं में भी उपयोग किया जाता है.
मिट्टी
ग्लेडियोलस की खेती उन सभी क्षेत्रों में हो सकती है, जहां दिन में धूप रहता हो. इसके लिए खुला स्थान उत्तम है. इस पौधे को बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती, इसलिए खेत में जल निकासी का प्रबन्ध करें.
जलवायु
ग्लेडियोलस की खेती वैसे तो लगभग हर तरह के जलवायु में हो सकती है, लेकिन मैदानी भागों में इसकी खेती सर्दी के मौसम में होना ही अधिक फायदेमंद ही. हालांकि पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी खेती ऊँचाई के आधार पर वर्षा को ध्यान में रखते हुए की जा सकती है.
प्रमुख रोग
इस पौधे को पाले से बचाना चाहिए, पालों के प्रभाव में इसके पुष्पों फफूंदी रोग पनप सकते हैं. पौधों की अच्छी पैदावार में तापमान, प्रकाश, आर्द्रता एवं कार्बन डाइऑक्साइड का बड़ा योगदान है, इसलिए इनका बैलेंस मात्रा में होना जरूरी है.
रोगों की बात करें तो इस पौधे पर लाल मकड़ी का आक्रमण सबसे अधिक होता है. इस कीड़े के प्रभाव में आकर पौधों की पत्तियां खराब होकर चित्तकवरी हो जाती हैं. इसके रोकथाम के लिए डाइकोफॉल का उपयोग किया जा सकता है.
प्रमुख किस्में
ग्लेडियोलस की अनेक प्रकार की किस्में है, लेकिन यहां हम आपको उन किस्मों के बारे में बताएंगें, जिनकी मांग सबसे अधिक है. आपके लिए भी फायदेमंद यही है कि आप उन किस्मों का ही चुनाव करें जो आपके क्षेत्रीय जलवायु के अनुकूल हो. अगर आप जल्दी फूल देने वाले किस्मों की खेती करना चाहते हैं तो सुप्रीम, स्नो प्रिंस, सूर्य किरण, मार्निग किस आदि को चुन सकते हैं.
इसी तरह अगर आप मध्यम समय में फूल देने वाली किस्मों की खेती करना चाहते हैं तो पैट्रिसिया, बिस-बिस, सुचित्रा, येलो स्टोन, नीलम और ब्यूटी आदि को चुन सकते हैं.
इसके अलावा आप अधिक समय में फूल देने वाली किस्मों को भी चुन सकते हैं, इनकी मार्केट में अच्छी मांग है. इन किस्मों में मयूर, पूसा सुहागिन, हंटिंग साँग, पंजाब फ्लेम और व्हाइट फ्रेंडशिप आदि का नाम प्रमुख है.
रोपण से पहले ध्यान दें
अगर मिट्टी में कीड़ों की समस्या है तो उसके रोकथाम के लिए थाईमेट 10 जी का प्रयोग करें. इनके क्यारियों से क्यारियों की दूरी 20 सेंटीमीटर और आपसी दूरी 15 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए.
रोपण
ग्लेडियोलस पौधे का रोपण कार्य वैसे तो पूरा साल चलता है, यही कारण है कि साल के किसी भी माह में इसका मार्केट कम नहीं होता. हालांकि लोग इसके रोपण का कार्य अपने-अपने क्षेत्रीय जलवायु को ध्यान में रखते हुए ही करते हैं. फिर भी आम तौर पर देखा जाए तो सितम्बर से फरवरी तक घनकन्दों का रोपण कर लिया जाता है. वहीं पर्वतीय क्षेत्रों में सितम्बर-जून तक घनकन्दों के रोपाई का काम किया जाता है.
सिंचाई प्रबंधन
रोपाई से पहले क्यारियां बनाते समय खेत की हल्की सिंचाई करनी चाहिए. घनकन्दों में फुटाव आने पर या उनके जमीन से बाहर आने पर पहली सिंचाई करनी चाहिए. मिट्टी में हल्की नमी का रहना फायदेमंद है.
फूलों की कटाई
90 से 100 दिनों में पुष्प डंडियां कटाई के लायक हो जाती है. हालांकि इनको पूरी तरह से उगने में कुछ समय अधिक भी लग सकता है. डंडियों को काटने का काम निचली कलियों में रंग दिखाई देने के बाद शुरु करना चाहिए.
पुष्प डंडियों को सुबह के समय धारदार चाकू से काटना बेहतर है. काटने के बाद इन्हें बाल्टी या किसी बड़े बर्तन में पानी में रखना चाहिए. काटने की क्रिय में इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि पौधों पर कम से कम 4 से 5 पत्तियां बनी रहे.