भारत में केला और पपीता जैसे फलवाले पौधों की खेती लगातार बढ़ती जा रही है, परंतु इन फसलों की सफलता के लिए खेत की पूर्व तैयारी और उचित परिधि सुरक्षा अत्यंत आवश्यक है. एक सरल, प्राकृतिक और कम लागत वाला उपाय है – खेत के चारों ओर सुबबूल (Leucaena leucocephala) का रोपण करना. सुबबूल, जिसे 'बहुवर्षीय ढैचा' भी कहा जाता है, लेग्युमिनोसी कुल का सदस्य है. यह एक तेजी से बढ़ने वाला बहुवर्षीय वृक्ष है जो न्यूनतम सिंचाई और देखभाल में भी वर्ष भर हरा-भरा बना रहता है. इसकी खेती देश के विभिन्न भागों में – आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार आदि में सफलतापूर्वक की जा रही है.
सुबबूल के प्रमुख लाभ
- पशु चारे के लिए: - सुबबूल का हरा चारा सालभर उपलब्ध रहता है, विशेषकर गर्मियों में जब अन्य चारे की उपलब्धता कम होती है. इसकी पत्तियां प्रोटीनयुक्त होती हैं, जो मवेशियों के लिए पौष्टिक आहार का काम करती हैं.
- ईंधन हेतु लकड़ी: - सुबबूल की कटाई-छंटाई के दौरान प्राप्त लकड़ी जलावन के रूप में उपयोग की जा सकती है, जिससे किसानों को ईंधन की लागत में कमी आती है.
- मृदा उर्वरता में वृद्धि: - लेग्युमिनोसी कुल का सदस्य होने के कारण यह वायुमंडलीय नत्रजन को मृदा में स्थिर करता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और रासायनिक खाद की आवश्यकता कम होती है.
सुबबूल को बॉर्डर फसल के रूप में लगाने के लाभ
- तेज हवा से फसलों की रक्षा: - केला और पपीता जैसे फलों की फसलें कोमल होती हैं और तेज हवा से आसानी से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं. सुबबूल का घना झाड़ीनुमा स्वरूप इन फसलों के लिए एक प्राकृतिक वायु अवरोधक का कार्य करता है.
- पशुओं से सुरक्षा: - सुबबूल का घना किनारा छोटे और बड़े जानवरों को खेत में प्रवेश करने से रोकता है, जिससे फसलों की रक्षा होती है.
- सौंदर्य एवं पर्यावरणीय संतुलन: - सुबबूल की हरियाली खेत की सुंदरता में वृद्धि करती है और आसपास के पर्यावरण को भी शुद्ध एवं संतुलित बनाये रखती है.
सुबबूल की रोपण विधि
सुबबूल की बुवाई केला या पपीता लगाने से कम से कम एक माह पूर्व कर लेनी चाहिए. खेत के चारों ओर लगभग 6 से 8 इंच चौड़ी क्यारी बनाकर बीजों की कतार में बुवाई की जा सकती है. यदि खेत में इस समय पर्याप्त नमी हो, तो बुवाई का यह समय उपयुक्त होता है.
प्रबंधन सुझाव
इस पौधे की नियमित कटाई-छटाई आवश्यक है ताकि यह सुनियोजित ढंग से एक घना बॉर्डर बनाता रहे. यदि इसे अनियंत्रित छोड़ दिया जाए, तो इसकी उपस्थिति अव्यवस्थित लग सकती है.
पपीता में रिंग स्पॉट वायरस रोग के नियंत्रण में सहायक
पपीता की खेती में एक बड़ी समस्या है – पपाया रिंग स्पॉट वायरस. यह रोग फंखधारी एफिड (aphid) द्वारा फैलता है, जो लगभग 4-5 फीट की ऊँचाई तक उड़ने में सक्षम होता है. जब खेत के चारों तरफ सुबबूल की घनी जैविक दीवार होती है, तो एफिड का उड़ना बाधित होता है, जिससे रोग का प्रसार काफी हद तक रुक जाता है. यह तकनीक पपाया रिंग स्पॉट रोग प्रबंधन की एक महत्वपूर्ण जैविक रणनीति है, जो किसानों को विषाणुजनित रोगों से प्राकृतिक ढंग से बचाव का अवसर देती है.