इन दिनों हिमाचल समेत देश के कई क्षेत्रों में बागवानों ने सेब के बाग लगा रखे हैं. ऐसे में सेब बगीचों में चूरण फफूंद रोग यानी पाउडरी मिलडयू ने हमला बोल दिया है. बता दें कि अप्रैल और मई में नमी की कमी से यह रोग सेब के पेड़ की नई पत्तियों को चपेट में ले लेता है. इस तरह सेब के पेड़ों में आने वाले फलों की पैदावार कम हो जाती है.
बागवान विशेषज्ञों के मुताबिक...
इन दिनों हिमाचल प्रदेश के बागवानों के बगीचों में चूरण फूफंद रोग का ज्यादा प्रकोप हो रहा है. इसके लिए बागवानी विभाग की ओर से सलाह दी गई है कि अगर बागवान समय रहते अपने बगीचों में दवा का छिड़काव नहीं करेंगे, तो सेब के पेड़ों का अच्छा विकास नहीं हो पाएगा. इसके साथ ही पेड़ों में नए बीमे भी नहीं आएगें. इस तरह सेब की फसल भी काफी प्रभावित होगी.
सेब की इन किस्मों पर होता है ज्यादा प्रकोप
बागवान विशेषज्ञों का कहना है कि इस रोग का प्रकोप गोल्डन, डिलिशियस, रेड गोल्डन, ग्रेमी स्मिथ और गाला किस्मों के सेब के पेड़ों पर ज्यादा पड़ता है. इस रोग के प्रकोप से सेब के पेड़ों की नई पत्तियां मुरझाने लगती हैं. अगर बागवान समय पर इस रोग का उपचार कर लें, तो वह अपनी फसल को खराब होने से बचा सकते हैं.
ऐसे करें सेब के पेड़ों का बचाव
बादवान सेब के पेड़ों को बचाने के लिए आवश्कयतानुसार कंटाप को पानी में घोलकर छिड़क सकते हैं. इसके अलावा स्कोर या रोको को पानी में घोलकर छिड़क सकते हैं. ध्यान दें कि इस तरह का कोई एक घोल छिड़ककर सेब के पेड़ों को चूरण फूफंद रोग से बचाया जा सकता है.
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