Marigold Cultivation: भारत के लगभग सभी राज्यों में गेंदा की खेती की जाती है. देश में लगभग 50 से 60 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में इसकी खेती हो रही है, जिससे करीब 5 लाख मिट्रिक टन से अधिक फूलों का उत्पादन होता है. भारत में गेंदे की औसत उपज 9 मिट्रिक टन प्रति हेक्टेयर हैं. गेंदा नर्सरी से लेकर फूलों की तुड़ाई तक कई प्रकार के रोगजनको यथा कवक, जीवाणु और विषाणु जनित रोगों से ग्रसित रहता है, जिसकी वजह से फूलों की उपज में होने वाली कमी रोग के प्रकार, पौधों की संक्रमित होने की अवस्था एवं वातावरणीय कारकों पर निर्भर करता हैं. गेंदा अपने जीवंत, रंगीन फूलों और कई कीटों और बीमारियों के प्रति मजबूत प्रतिरोध के लिए पहचाना जाता है. गेंदा पूरी तरह से बीमारियों से प्रतिरक्षित नहीं है, उसके सामने आने वाली कुछ सबसे चुनौतीपूर्ण समस्याएं मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियां हैं.
यदि किसान प्रभावी ढंग से इनका प्रबंधित नहीं करते हैं, तो इससे होने वाली बीमारियां गेंदे की वृद्धि और फूलों के उत्पादन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती हैं.
गेंदा के सामान्य मृदा जनित रोग
- आर्द्र पतन या आर्द्र गलन (डेम्पिंग आफ) - प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह के मुताबिक, नर्सरी में गेंदा के नवजात पौधों को आर्द्र पतन बहुत ज्यादा प्रभावित करता है। यह एक मृदाजनित कवक रोग हैं, जो पिथियम प्रजाति, फाइटोफ्थोरा प्रजाति एवं राइजोक्टोनिया प्रजाति द्वारा होता हैं. इसके लक्षण 2 प्रकार के होते हैं, पहला पौधे के दिखाई देने के पहले बीज सड़न एवं पौध सड़न के रूप में दिखाई देता हैं, जबकि दूसरा लक्षण पौधे के उगने के बाद दिखाई देता हैं.
- जड़ सड़न - प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह के मुताबिक, जड़ सड़न गेंदे को प्रभावित करने वाली सबसे व्यापक मिट्टी जनित बीमारियों में से एक है. यह राइजोक्टोनिया, पाइथियम और फाइटोफ्थोरा सहित विभिन्न मिट्टी-जनित कवक के कारण होता है. संक्रमित पौधों की वृद्धि रुक जाती है, पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और मुरझा जाती हैं.
- फ्यूजेरियम विल्ट - प्रोफेसर के मुताबिक, गेंदा में उकठा रोग फ्युजेरियम ऑक्सीस्पोरम उपप्रजाति केलिस्टेफी नामक कवक द्वारा होता हैं. यह मैरीगोल्ड्स की संवहनी प्रणाली को प्रभावित करता है, जिससे पौधा मुरझा जाता है, पीला पड़ जाता है और मर भी जाता है. इसके लक्षण बुवाई के तीन सप्ताह बाद दिखाई देने शुरू होते हैं.
- साउदर्न ब्लाइट - प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह के मुताबिक, साउदर्न ब्लाइट, स्क्लेरोटियम रॉल्फसी कवक के कारण होता है, जो गेंदे के तने के आधार पर सफेद, रोएंदार विकास के रूप में प्रकट होता है. इससे पौधा मुरझा जाता है और मर जाता है.
- वर्टिसिलियम विल्ट - डॉ. एसके सिंह के अनुसार, वर्टिसिलियम विल्ट मिट्टी-जनित कवक वर्टिसिलियम डाहलिया के कारण होता है. संक्रमित गेंदे की पत्तियां पीली पड़कर मुरझाने लगती हैं. यह रोग विशेष रूप से ठंडी और नम स्थितियों में समस्याग्रस्त होता है.
- फाइटोफ्थोरा जड़ सड़न - फाइटोफ्थोरा जड़ सड़न रोग के लक्षणों में पौधे की जड़ों पर भूरे रंग के घाव, मुरझाना और खराब विकास शामिल हैं. यह रोग फाइटोफ्थोरा प्रजाति एवं पिथियम प्रजाति से होता हैं. इस रोग से नवजात गेंदा के पौधे अधिक प्रभावित होते हैं.
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गेंदा में मृदा जनित रोगों का प्रबंधन
- प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह के मुताबिक, गेंदे में मिट्टी से होने वाली बीमारियों के प्रभावी प्रबंधन में निवारक उपायों और कृषि कार्यों का संयोजन शामिल है. अधिकांश गेंदे के पौधे के मृदा जनित रोग कवक बीजाणुओं के कारण होते हैं, इसलिए सही मात्रा में पानी देना बेहद जरूरी होता है। संक्रमित पौधों को जलाने से मृदा जनित रोगों रोको जा सकता है। खूब अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट को मिट्टी में मिलाना चाहिए.
- प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह के मुताबिक, गेंदा लगाने से पहले रोगजनक मुक्त पॉटिंग मिक्स का उपयोग करें। गर्मियों के दिनों में मिट्टी पलट हल से गहरी जुताई करें, ताकि रोगजनक सूक्ष्मजीवों के निष्क्रिय एवं प्राथमिक निवेशद्रव्य (प्राइमरी इनाकुलम) तेज धूप से नष्ट हो जायें. अनेक अखाद्य खलियों, जैसे करंज, नीम, महुआ, सरसों और अरण्ड आदि के प्रयोग द्वारा मृदा जनित रोगों की व्यापकता कम हो जाती हैं. बुवाई के लिए हमेशा स्वस्थ बीजों का चुनाव करें. नर्सरी में लंबे समय तक एक ही फसल या एक ही फसल की एक ही किस्म न उगायें. सिंचाई का पानी खेत में अधिक समय तक जमा न होने दें.
- गहरी जुताई करने के बाद मृदा का सौर ऊर्जीकरण (सॉइल सोलराइजेशन) करें. इसके लिये 105 से 120 गेज के पारदर्शी पॉलीथिन को नर्सरी बेड के ऊपर फैलाकर 5 से 6 सप्ताह के लिए छोड़ दें. मृदा को ढंकने के पूर्व सिंचाई कर नम कर लें. नम मृदा में रोगजनकों तथा की सुसुप्त अवस्थायें हो जाती हैं, जिससे उच्च तापमान का प्रभाव उनके विनाश के लिये आसान हो जाता हैं. रोगग्रसित पौधों को उखाड़कर जला दें या मिट्टी में गाड़ दें. नर्सरी बेड की मिट्टी का रोगाणुनाशन करने की एक सस्ती विधि यह हैं कि पशुओं अथवा फसलों के अवशेष की एक से डेढ़ फीट मोटी ढ़ेर लगाकर उसे जला दें.
गेंदे के पौधे की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित उपाय
1. साइट चयन
प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह के मुताबिक, जल जमाव वाली मिट्टी को रोकने के लिए एक अच्छी जल निकासी वाली रोपण साइट चुनें, जो जड़ रोगों के विकास को बढ़ावा दे सकती है. मिट्टी के दूषित होने के खतरे को कम करने के लिए उन क्षेत्रों में गेंदे के पौधे लगाने से बचें जहां हाल ही में अन्य अतिसंवेदनशील पौधे उग आए हैं.
2. मिट्टी की तैयारी
मिट्टी में खाद जैसे कार्बनिक पदार्थ मिलाकर मिट्टी की जल निकासी में सुधार करें. उचित पीएच स्तर (लगभग 6.0 से 7.0) सुनिश्चित करने के लिए मिट्टी का परीक्षण करें, क्योंकि कुछ मिट्टी-जनित रोगजनक अम्लीय या क्षारीय स्थितियों में पनपते हैं.
3. फसल चक्र
प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह के मुताबिक, लगातार वर्षों तक एक ही स्थान पर गेंदा लगाने से बचकर फसल चक्र अपनाएं. इससे रोग चक्र को तोड़ने में मदद मिलती है.
4. प्रतिरोधी किस्में
गेंदे की ऐसी किस्में चुनें जो विशिष्ट मृदा जनित रोगों के प्रति प्रतिरोधी हों. कुछ किस्मों को अधिक रोग-प्रतिरोधी बनाने के लिए पाला गया है.
5. स्वच्छता
रोगजनकों के प्रसार को रोकने के लिए संक्रमित पौधों को तुरंत हटा दें और नष्ट कर दें. रोगजनकों को एक पौधे से दूसरे पौधे में स्थानांतरित होने से बचाने के लिए बागवानी उपकरणों और उपकरणों को साफ करें.
6. कवकनाशी का प्रयोग
रोग की उग्र अवस्था में कार्बेंडाजिम या क्लॉरोथैनोनिल @2ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर खूब अच्छी तरह से मिट्टी को भीगा दे, जिससे रोग की उग्रता में काफी कमी आयेगी.
7. जैविक नियंत्रण
बीजों को बोने से पहले ट्राइकोडर्मा विरिडी से उपचारित कर ले, इसके लिये ट्राइकोडर्मा विरिडी के 5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें अथवा स्युडोमोनास फ्लोरसेन्स का 1.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मृदा में अनुप्रयोग करने से पद-गलन रोग के प्रकोप को काफी हद तक कम किया जा सकता हैं.
8. मृदा सौरीकरण
प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह के मुताबिक, सोलराइजेशन में गर्मी के महीनों में मिट्टी का तापमान बढ़ाने और मिट्टी से पैदा होने वाले रोगजनकों को मारने के लिए मिट्टी को पारदर्शी प्लास्टिक से ढंकना शामिल है. रोग नियंत्रण के लिए यह एक प्रभावी तरीका हो सकता है.
9. जल प्रबंधन
अत्यधिक पानी देने से बचें, क्योंकि अत्यधिक गीली मिट्टी जड़ रोगों के विकास को बढ़ावा दे सकती है. पौधों के आधार तक सीधे पानी पहुंचाने और पत्तियों पर मिट्टी के छींटे कम करने के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग करें.
10. सतर्क निगरानी
रोग के लक्षणों के लिए गेंदे के पौधों का नियमित निरीक्षण करें. शीघ्र पता लगाने से त्वरित कार्रवाई और बेहतर रोग प्रबंधन की अनुमति मिलती है.