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Updated on: 4 June, 2018 12:00 AM IST
करेले का स्वाद कड़वा ज़रूर है, लेकिन यह कड़वे स्वाद वाला प्रसिद्ध भारतीय शाक है

करेला ऐसी सब्ज़ी है जो अपने गुणों के कारण जानी जाती हैं. करेले का स्वाद कड़वा ज़रूर है, लेकिन यह कड़वे स्वाद वाला प्रसिद्ध भारतीय फल शाक है. करेला स्वास्थय के लिए बहुत ही फायदेमंद होता हैं. इसे कारवेल्लक, कारवेल्लिका, करेल, करेली तथा काँरले आदि नामों से भी जाना जाता है.

खेती का उचित समय :  करेले की खेती भारत में सदियों से की जा रहे हैं. इसके अलावा इससे किसी भी मौसम में उगाया जा सकता हैं.

खेती के लिए उचित भूमि एवं जलवायु : करेला लगभग किसी भी भूमि पर उगाया जा सकता हैं. लेकिन करेला उगाने के लिए दोमट मिटटी अच्छी मनी जाती हैं. करेला की खेती के लिए ठाम एवं आर्द्र जलवायु की जरूरत पड़ती है.

किस्में : करेले की कई किस्में होती हैं. पूसा 2 मौसमी, कोयम्बूर लौंग, अर्का हरित, कल्याण पुर बारह मासी, हिसार सेलेक्शन, सी 16, पूसा विशेष, फैजाबादी बारह मासी, आर.एच.बी.बी.जी. 4, के.बी.जी.16, पूसा संकर 1, पी.वी.आई.जी. 1.

बीज की मात्रा और समय : 5-7 किलो ग्राम बीज प्रति हे. पर्याप्त होता है एक स्थान पर से 2-3 बीज 2.5-5. मि. की गहराई पर बोने चाहिए बीज को बोने से पूर्व 24 घंटे तक पानी में भिगो लेना चाहिए इससे अंकुरण जल्दी, अच्छा होता है. करेले की बुवाई 15 फरवरी से 30 फरवरी (ग्रीष्म ऋतु) तथा 15 जुलाई से 30 जुलाई (वर्षा ऋतु)

बीज की बुवाई 2 प्रकार से की जाती है (Sowing of seeds is done in 2 ways)

(1) सीधे बीज रोपण  द्वारा

(2) पौध रोपण द्वारा

खाद : करेले की फसल में अच्छी पैदावार के लिए उसमे आर्गनिक खाद, कम्पोस्ट खाद का होना बहुत ज़रूरी है. खेत तैयार करते समय 40-50 क्विंटल गोबर की खाद खेत तैयार करते समय डालें. 125 किलोग्राम अमोनियम सल्फेट या किसान खाद, 150 किलोग्राम सुपरफॉस्फेट तथा 50 किलोग्राम म्युरेट आॅफ पोटाश तथा फॉलीडाल चूर्ण 3 प्रतिशत 15 किलोग्राम का मिश्रण 500 ग्राम प्रति गड्ढे की दर से बीज बोने से पूर्व मिला लेते हैं. 125 किलोग्राम अमोनियम सल्फेट या अन्य खाद फूल आने के समय पौधों के पास मिट्टी अच्छी तरह से मिलाते हैं.

जब फसल 25-30 दिन नीम का काढ़ा  को गौमूत्र के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर छिडकाव करें की हर 15 व 20 दिन के अंतर से छिडकाव करें. फसल में सफ़ेद ग्रब पौधों को काफी हानि पहुचाती हैं.

यह जमीन के अन्दर पाई जाती है और पौधों की जड़ों को खा जाती है जिसके करण पौधे सुख जाते है | इसकी रोकथाम के लिए खेतों में नीम की खाद का प्रयोग करें. रासायनिक कीटनाशी दवाएं जहरीली होती हैं. प्रयोग सावधानीपूर्वक करें. फल तोड़ने के 10 से 15 दिन पूर्व दवाओं का प्रयोग बंद कर देना चाहिए.

सिंचाई : करेले की अच्छी उपज के लिए सिंचाई बहुत हि जरुरी हैं. फसल की सिंचाई वर्षा पर भी आधारित हैं.  समय समय पर करेले की निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए.  जब भी खेतो में नमी की कमी हो जए तब खेतों की सिंचाई करें. खरपतवार को खेत से बाहर निकाल दे ताकि फल और फूल ज्यादा मात्रा में लगे.

तुड़ाई : तुड़ाई हमेशा फसल के नरम होने पर हि की जानी चाहिए ज़्यादा दिन फसल को रखने पर वह सख्त हो जाती हैं. और बाजार में जाने के बाद लोग उससे खरीदना भी पसंद नहीं करते आमतौर पर फल बोने के 70-90 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती हैं. फसल की तुड़ाई हफ्ते में 2 से 3 बार की जानी चाहिए.

English Summary: Selection of these advanced varieties in the cultivation of bitter gourd ...
Published on: 04 June 2018, 04:11 IST

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