Carica Papaya: पपीता बिहार की कृषि में एक महत्वपूर्ण फसल है. इसकी व्यापक खेती किसानों की आय बढ़ाने में मदद करती है. यह पोषण से भरपूर, जल्दी फल देने वाला और आर्थिक रूप से लाभदायक फसल है. बिहार में पपीते की खेती को बढ़ावा देने की भरपूर संभावनाएं हैं, लेकिन रोगों का प्रकोप, विशेष रूप से विषाणु और कवक जनित रोग, किसानों के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है.
पपीते में रोगों की समस्या और समाधान
पपीते में 25 से अधिक रोग पाए जाते हैं, जिनमें प्रमुखतः कवक और विषाणु जनित रोग शामिल हैं. बिहार राज्य में सबसे गंभीर समस्या विषाणु जनित रोगों की है, जो फसल उत्पादन को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. इस कारण किसान पपीते की खेती में रुचि खोते जा रहे हैं. इन रोगों का प्रभावी प्रबंधन करके न केवल उत्पादन बढ़ाया जा सकता है, बल्कि किसानों को इस फसल की ओर आकर्षित भी किया जा सकता है.
1. आर्द्र गलन रोग (Damping Off)
यह पौधशाला में लगने वाला गंभीर रोग है, जो Pythium Aphanidermatum कवक के कारण होता है. इसका असर नए अंकुरित पौधों पर होता है, जिससे तना गल जाता है और पौधा मुरझा कर गिर जाता है.
नियंत्रण के उपाय: पौधशाला में जल निकास का उचित प्रबंध करें. पौधशाला की ऊँचाई आसपास की सतह से अधिक होनी चाहिए. नर्सरी की मिट्टी का उपचार 2.5% फार्मेल्डिहाइड घोल से करें और 48 घंटे तक पॉलीथिन शीट से ढक दें. बीज उपचार के लिए कार्बेन्डाजिम या मेटालैक्सिल + मेन्कोजेब का मिश्रण 2 ग्राम/किलो बीज पर प्रयोग करें. लक्षण दिखते ही मेटालैक्सिल+मेन्कोजेब (@2 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करें.
2. तना व जड़ सड़न रोग (Collar Rot)
यह रोग पपीते के तने और जड़ों को प्रभावित करता है. तने के निचले हिस्से पर जलीय चकत्ते बनते हैं, जो बाद में पूरी तरह से तने को घेर लेते हैं. पत्तियां पीली होकर गिरने लगती हैं और पौधे की मृत्यु हो जाती है.
नियंत्रण: बगीचे में जल निकास का सही प्रबंध करें. रोगग्रस्त पौधों को जड़ सहित उखाड़ कर जला दें. तने पर जमीन की सतह से ऊपर 50 सेमी ऊँचाई तक बोर्डो मिश्रण लगाएँ. तने के पास मिट्टी में मेटालैक्सिल+मेन्कोजेब का @ 2 ग्राम/लीटर पानी का घोल डालें.
3. फल सड़न रोग (Fruit Rot)
यह रोग Colletotrichum Gloeosporioides कवक के कारण होता है. अधपके और पके फल प्रभावित होते हैं. फल पर गीले धब्बे बनते हैं, जो बाद में काले पड़ जाते हैं. यह रोग पपीता की खेती को 20 से लेकर 70 प्रतिशत तक प्रभावित करता है यदि इसे सही समय पर प्रबंधित नहीं किया गया तो.
नियंत्रण: कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (@2 ग्राम/लीटर) या मेन्कोजेब (@2.5 ग्राम/लीटर) का छिड़काव करें. रोगग्रस्त फलों को नष्ट करें. बगीचे में जल निकास को सुनिश्चित करें.
4. कली और फल का तना सड़न (Bud and Fruit Stem Rot)
यह रोग Fusarium Solani कवक के कारण होता है. फल और कली के पास तना पीला होकर सड़ने लगता है. फल सिकुड़कर झड़ जाते हैं. यह रोग भी उत्तर भारत के पपीता के बागों में कभी कभी ही देखने को मिलता है.
नियंत्रण: कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (@2 ग्राम/लीटर) का छिड़काव करें.रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला दें. बगीचे के आसपास कद्दू कुल के पौधे न लगाएं.
5. चूर्णी फफूंद (Powdery Mildew)
यह रोग Oidium Caricae के कारण होता है. पत्तियों पर सफेद चूर्ण जैसे धब्बे बनते हैं, जो सूख जाती हैं. यह रोग उत्तर भारत के पपीता के बगीचों में देखने को नहीं मिलता है.
नियंत्रण: घुलनशील सल्फर (@2 ग्राम/लीटर) का छिड़काव करें. रोगग्रस्त पत्तियों को हटा दें.
6. रिंग स्पॉट वायरस रोग (Ringspot Virus)
यह रोग पपीते की पत्तियों, तने और फलों पर गोलाकार धब्बे बनाता है. पौधे की वृद्धि रुक जाती है और उत्पादन कम हो जाता है.
नियंत्रण: रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला दें. नीम का तेल और खली का उपयोग करें. खेत में सितंबर में नर्सरी लगाएँ और अक्टूबर-नवंबर में पौध रोपाई करें.
7. पर्ण कुंचन रोग (Leaf Curl Virus)
यह एक गंभीर विषाणु रोग है. पत्तियां सिकुड़ जाती हैं और पौधों में फूल या फल नहीं लगते.
नियंत्रण: सफेद मक्खी नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट (1 मिली/लीटर) का छिड़काव करें.रोगग्रस्त पौधों को नष्ट करें.