Mango Farming: बिहार और उत्तर प्रदेश के आम के बागवान विगत कई सालों एक नई समस्या से दो चार हो रहे हैं. इस रोग में सर्वप्रथम आम की सभी पत्तियां या कोई डाल विशेष की सभी पत्तियां मुरझाई सी दिखाई देती है और देखते-देखते पूरा पेड़ या पेड़ की कोई डाली सुख जाती है. यह रोग बरसात के समय या बरसात के बाद ज्यादा देखने को मिलता है. इस रोग का प्रमुख लक्षण है की सुखी हुई पत्तियां पेड़ पर महीनों लगी रहती है. यह रोग आम के बागों को भारी नुकसान पहुंचा रहा है. बिहार एवं उत्तर प्रदेश में किसानों द्वारा आम के मुरझाने की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई. चूंकि, पूर्व में आम के मुरझाने के संबंध में कोई व्यवस्थित अध्ययन नहीं किया गया था, इसलिए बिहार एवं उत्तर प्रदेश के प्रमुख आम उत्पादक क्षेत्रों में बीमारी को समझने में कठिनाई हो रही है.
भारत से आम के मुरझाने का रोग अभी हाल के वर्षो में ही रिपोर्ट किया गया है, जबकि यह रोग पाकिस्तान और ओमान से पहले ही रिपोर्ट किया जा चुका है.
आम का सेराटोसिस्टिस विल्ट रोग बिहार और उत्तर प्रदेश में आम उत्पादक किसानों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन कर उभर रहा है. जिस बाग में इस रोग से कोई पेड़ सुख गया है, तो कुछ दिन के बाद फिर कोई दूसरा पेड़ सूखेगा और इस प्रकार से बाग के दूसरे तीसरे पेड़ सूखेंगे. इसलिए आवश्यक है की आक्रांत पेड़ के साथ साथ उसके आसपास के सभी पेड़ों को उपचारित किया जाए अन्यथा एक-एक करके बाग के सभी पेड़ इसी तरह से सूख जाएंगे.
आम का उखठा (मैंगो विल्ट) रोग, मुख्य रूप से कवक सेराटोसिस्टिस मैंगिनेकन्स के कारण होता है. यह एक विनाशकारी बीमारी है, जो दुनिया भर में आम के पेड़ों को प्रभावित करती है. यह संवहनी रोग आम के उत्पादन को प्रभावित करके महत्वपूर्ण आर्थिक नुकसान का कारण बनता है, जो कई उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण फल फसल है. आम के विल्ट के एटियोलॉजी, लक्षण और प्रबंधन रणनीतियों को समझना इसके प्रसार को नियंत्रित करने और इसके प्रभाव को कम करने के लिए आवश्यक है.
एटियोलॉजी और लक्षण
सेराटोसिस्टिस मैंगिनेकन्स आम के पेड़ों की संवहनी प्रणाली में घुसपैठ करता है, जिससे पानी और पोषक तत्वों के परिवहन में रुकावट आती है, जिससे विशिष्ट विल्टिंग होती है. इस रोग का रोगकारक कवक कीटों, कटाई छंटाई या यांत्रिक चोटों के कारण हुए घावों के माध्यम से प्रवेश करता है.
आम का उखठा (मैंगो विल्ट) रोग का प्रमुख लक्षण
पत्तियों का मुरझाना (विल्ट) और भूरापन
शुरुआती लक्षण पत्तियों का मुरझाना और भूरा होना है, जो आमतौर पर एक ही शाखा से शुरू होकर पूरे पेड़ में फैल जाता है. पेड़ के सूख जाने के बाद भी पत्तियां आम के पेड़ पर महीनों लगी रहती है.
गमोसिस - छाल से गोंद का निकलना एक आम लक्षण है, जो तने और शाखाओं पर काली धारियों के रूप में दिखाई देता है.
संवहनी मलिनकिरण - संक्रमित शाखाओं को काटने पर, संवहनी ऊतकों में गहरे भूरे से काले रंग की धारियां देखी जा सकती हैं.
पेड़ों का क्षय और मृत्यु - जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, पूरा पेड़ कुछ महीनों के भीतर मुरझा जाता है और मर जाता है.
आम का उखठा (मैंगो विल्ट) का रोग चक्र
आम के मुरझाने के रोग चक्र में निम्नलिखित चरण शामिल हैं:
कवक का पेड़ के अंदर प्रवेश करना: कवक घावों के माध्यम से प्रवेश करता है और मेजबान ऊतक में खुद को स्थापित करता है.
जाइलम वाहिकाओं को संक्रमित करना: यह जाइलम वाहिकाओं को संक्रमित करता है, माइसेलियम और बीजाणु बनाता है, जो जल परिवहन को अवरुद्ध करते हैं.
लक्षण विकास: जल प्रवाह में बाधा के कारण मुरझाना, पत्ती का पीला पड़ना और अंततः पेड़ की मृत्यु हो जाती है.
रोग का प्रसार - संक्रमित पौधे की सामग्री, मिट्टी और दूषित उपकरण रोगज़नक़ के प्रसार को सुविधाजनक बनाते हैं.
आम का उखठा (मैंगो विल्ट) रोग को कैसे करें प्रबंधित?
आम के मुरझाने के प्रभावी प्रबंधन में कल्चरल, जैविक, रासायनिक और नियामक उपायों को मिलाकर एक एकीकृत दृष्टिकोण शामिल है जैसे...
1. कल्चरल उपाय
स्वच्छता: इनोकुलम स्रोतों को कम करने के लिए संक्रमित पेड़ों और पौधों के मलबे को हटाएं और नष्ट करें.
घाव प्रबंधन: कटाई छंटाई और अन्य कल्चरल कार्यों के दौरान चोटों को कम करें. सुरक्षात्मक कवकनाशी के साथ घावों का इलाज करें.
मृदा स्वास्थ्य: पौधे की शक्ति बढ़ाने और तनाव को कम करने के लिए मिट्टी की जल निकासी और कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में सुधार करें.
संगरोध: रोग-मुक्त क्षेत्रों में रोगज़नक़ के प्रवेश को रोकने के लिए संगरोध उपायों को लागू करें.
2. जैविक नियंत्रण
विरोधी सूक्ष्मजीव: ट्राइकोडर्मा जैसे लाभकारी सूक्ष्मजीवों का उपयोग करें, जो प्रतिस्पर्धा, परजीवीवाद और एंटीफंगल यौगिकों के उत्पादन के माध्यम से रोगज़नक़ का विरोध करते हैं.
माइकोराइजा: आर्बस्कुलर माइकोराइजल कवक पोषक तत्वों के अवशोषण में सुधार करके और प्रणालीगत प्रतिरोध को प्रेरित करके पौधे की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं.
3. रासायनिक नियंत्रण
इस रोग के प्रबंधन के लिए आवश्यक है की रोग से आक्रांत आम के पेड़ के आसपास की मिट्टी को रोको एम (थियोफानेट मिथाइल) नामक फफुंदनाशक की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी घोलकर इसी घोल से आम के पेड़ के आसपास की मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भिगो दें. एक वयस्क पेड़ की मिट्टी को भीगाने के लिए कम से कम 25 से 30 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता पड़ती है. दस दिनों के बाद उपरोक्त प्रक्रिया को पुनः दोहराएं. बाग में सभी आम के पेड़ के आस पास के सभी पेड़ों को इस घोल से भीगना अत्यावश्यक है, अन्यथा कुछ दिन के बाद दूसरे आम के पेड़ मरना प्रारंभ करेंगे. आम का पेड़ जब भी किसी प्रकार की मुसीबत में पड़ता है, तो उसके तने से गोंद जैसा स्राव निकलता है जो इस बात की तरफ इशारा करता है की पेड़ किसी मुसीबत में है. बागवान को तुरंत सक्रिय होकर देखना चाहिए की कारण क्या है, विल्ट में भी पेड़ से गोंद निकलता है.
आम में गामोसिस से बचाव के लिए आवश्यक है कि पेड़ के चारो तरफ, जमीन की सतह से 5 से 5.30 फीट की ऊंचाई तक बोर्डों पेस्ट से पुताई करनी चाहिए. यदि बोर्डों पेस्ट से साल में दो बार प्रथम जुलाई- अगस्त एवम् दुबारा फरवरी- मार्च में पुताई कर दी जाय तो अधिकांश फफूंद जनित बीमारियों से बाग को बचा लेते है. इस रोग के साथ साथ शीर्ष मरण, आम के छिल्को का फटना इत्यादि विभिन्न फफूंद जनित बीमारियों से आम को बचाया जा सकता है.
4. प्रतिरोधी किस्में
प्रजनन कार्यक्रम: पारंपरिक प्रजनन और जैव प्रौद्योगिकी दृष्टिकोणों के माध्यम से प्रतिरोधी या सहनशील आम की किस्मों की खेती को विकसित और बढ़ावा दें.
5. एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम)
स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप एक समग्र आईपीएम कार्यक्रम में कल्चरल, जैविक और रासायनिक विधियों को मिलाएं.
क्षेत्र सर्वेक्षण के माध्यम से नियमित निगरानी और प्रारंभिक पहचान समय पर हस्तक्षेप के लिए महत्वपूर्ण है.
6. विस्तार और प्रशिक्षण
किसान शिक्षा: प्रसार कार्यक्रमों और प्रशिक्षण कार्यशालाओं के माध्यम से किसानों को आम के मुरझाने की पहचान, प्रसार और प्रबंधन के बारे में शिक्षित करें.
सहयोग: प्रभावी रोग प्रबंधन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए शोधकर्ताओं, विस्तार कार्यकर्ताओं और किसानों के बीच सहयोग को बढ़ावा दे.