भारत में लगभग 92 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती होती है, जिससे प्रतिवर्ष 686 हजार मीट्रिक टन लीची का उत्पादन होता है. बिहार इस उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देता है, जहाँ 32 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती की जाती है और लगभग 300 हजार मीट्रिक टन लीची का उत्पादन होता है. बिहार में लीची की औसत उत्पादकता 8 टन प्रति हेक्टेयर है, जो कि राष्ट्रीय औसत 7.4 टन प्रति हेक्टेयर से अधिक है. बिहार को "प्राइड ऑफ बिहार" के रूप में जाना जाता है क्योंकि यहाँ भारत के कुल लीची उत्पादन का 80 प्रतिशत होता है.
फरवरी का दूसरा सप्ताह चल रहा है और इस समय लीची उत्पादक किसान यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि उन्हें अपने बाग में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए. इसी उद्देश्य से, यह विस्तृत मार्गदर्शिका प्रस्तुत की जा रही है ताकि किसान सही समय पर सही कृषि प्रबंधन कर सकें और अधिकतम उत्पादन व बेहतर गुणवत्ता प्राप्त कर सकें.
क्या करें?
1. मंजर (फूल) आने से पहले
यदि अभी तक आपके लीची के बाग में मंजर नहीं आए हैं या 2% से कम फूल आए हैं, तो निम्नलिखित उपाय करें:
- इमिडाक्लोप्राइड @1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
- घुलनशील गंधक @2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें.
- बाग में हल्की गुड़ाई करें ताकि साफ-सफाई बनी रहे, लेकिन सिंचाई बिल्कुल न करें, क्योंकि इससे फूलन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
- माइट प्रभावित शाखाओं को पहचानकर उन्हें बाग से हटा दें और जला दें ताकि संक्रमण न फैले.
- बेहतर फलन और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए मंजर आने के संभावित समय से तीन महीने पहले बाग की सिंचाई पूरी तरह से रोक दें और अंतरफसल (इंटरक्रॉपिंग) न करें.
- मंजर आने के 30 दिन पहले लीची के पेड़ों पर जिंक सल्फेट (ZnSO₄) @2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. इसके 15-20 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें. इससे मंजर और फूलों की संख्या तथा गुणवत्ता में वृद्धि होगी.
2. फूल आने के समय
- मधुमक्खियों की मदद से परागण बढ़ाएं: फूल आने के समय लीची के बाग में 15-20 मधुमक्खी के छत्ते प्रति हेक्टेयर रखें, इससे परागण में सुधार होगा, फल कम झड़ेंगे, उनकी गुणवत्ता बढ़ेगी और बागवान को अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त होगी.
- सिंचाई से बचें: फूल आने के दौरान अधिक पानी देने से फूल झड़ सकते हैं और फलन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.
- रसायनों से परहेज करें: फूल आने के समय किसी भी प्रकार के कीटनाशकों का छिड़काव न करें, क्योंकि इससे परागण प्रभावित हो सकता है और फूल झड़ सकते हैं.
3. फल बनने के बाद (लौंग के आकार तक)
- फल झड़ने से बचाव करें: फल बनने के एक सप्ताह बाद, प्लैनोफिक्स @1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें, यह फलों को झड़ने से रोकने में सहायक होगा.
- बोरेक्स का प्रयोग करें: फल बनने के 15 दिन बाद, बोरेक्स @5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें, यह प्रक्रिया 15 दिनों के अंतराल पर दो या तीन बार करें.
- इससे निम्नलिखित लाभ होंगे:
- फल झड़ना कम होगा.
- फल की मिठास में वृद्धि होगी.
- फल का आकार और रंग सुधरेगा.
- फल फटने की समस्या कम होगी.
क्या न करें?
- फूल आने से पहले और आने के दौरान बाग की सिंचाई न करें.
- इंटरक्रॉपिंग (अंतरफसल) न लें, क्योंकि यह फूलन और फलन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है.
- फूल आने के समय किसी भी प्रकार का कीटनाशक या रासायनिक स्प्रे न करें.
- माइट से प्रभावित शाखाओं को अनदेखा न करें, इन्हें तुरंत हटा दें और नष्ट कर दें.
- फूल आने के समय बाग में ज्यादा हलचल या छेड़छाड़ न करें, क्योंकि इससे परागण प्रभावित हो सकता है.