RFOI Award 2025: UP के सफल किसान मनोहर सिंह चौहान को मिला RFOI अवार्ड, अजय मिश्र टेनी ने किया सम्मानित RFOI - First Runner-Up: सफल किसान लेखराम यादव को MFOI Awards 2025 में मिला RFOI-फर्स्ट रनर-अप अवार्ड, अजय मिश्र टेनी ने किया सम्मानित RFOI Award 2025: केरल के मैथ्यूकुट्टी टॉम को मिला RFOI Second Runner-Up Award, 18.62 करोड़ की सालाना आय से रचा इतिहास! Success Story: आलू की खेती में बढ़ी उपज और सुधरी मिट्टी, किसानों की पहली पसंद बना जायडेक्स का जैविक समाधान किसानों के लिए साकाटा सीड्स की उन्नत किस्में बनीं कमाई का नया पार्टनर, फसल हुई सुरक्षित और लाभ में भी हुआ इजाफा! Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं
Updated on: 29 November, 2024 12:00 AM IST
स्ट्रॉबेरी की खेती (Image Source: Pinterest)

Strawberry: भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रही है क्योकि अन्य परम्परागत फसलों के मुक़ाबले इस फसल से अधिक लाभ प्राप्त किया जा रहा है. स्ट्रॉबेरी की खेती पॉलीहाउस, हाइड्रोपॉनिक्स और सामान्य तरीके से विभिन्न प्रकार की भूमि तथा जलवायु में की जा सकती है. संसार में स्ट्रॉबेरी की 600 किस्में मौजूद है. ये सभी अपने स्वाद रंग रूप में एक दूसरे से भिन्न होती है. लेकिन भारत में कुछ ही प्रजाति की स्ट्रॉबेरी उगाई जाती है. स्ट्रॉबेरी/Strawberry बहुत ही नरम फल होता है जोकि स्वाद में हल्का खट्टा और हल्का मीठा होता है. रंग चटक लाल होने के साथ इसका आकर हार्ट के समान होता है. स्ट्रॉबेरी/Strawberry मात्र एक ऐसा फल है जिसके बीज बाहर की ओर होते है. स्ट्रॉबेरी में अपनी एक अलग तरह की खुशबू होती है.

स्ट्रॉबेरी एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन सी एवं विटामिन ए और के, प्रोटीन और खनिजों का एक अच्छा प्राकृतिक स्रोतों है. जो रूप निखारने और चेहरे में कील मुंहासे, आँखों की रौशनी चमक के साथ दांतों की चमक बढ़ाने का काम आते है. इनके आलवा इसमें केल्सियम मैग्नीशियम फोलिक एसिड फास्फोरस पोटेशियम पाया जाता है.  उपरोक्त गुणों को देखते हुए हाल के वर्षो में बिहार में भी इसकी खेती औरंगाबाद एवं आस पास के क्षेत्रों में बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रही है. उसमे लगने वाले प्रमुख रोगों के बारे में किसान अनभिज्ञ है ,जिससे इसकी खेती प्रभावित हो रही है .आइए जानते है इसमें लगने वाले प्रमुख रोगों के बारे में एवं उसके प्रबंधन के बारे में.

पत्ती धब्बा रोग

लीफ स्पॉट स्ट्रॉबेरी की सबसे आम बीमारियों में से एक है, जो दुनिया भर में अधिकांश किस्मों में होती है. प्रारंभ में, छोटे, गहरे बैंगनी, गोल से अनियमित आकार के धब्बे पत्ती की ऊपरी सतह पर दिखाई देते हैं. ये व्यास में 3-6 मिमी के बीच बढ़ते हैं. वे एक गहरे लाल रंग का मार्जिन बनाए रखते हैं, लेकिन केंद्र भूरे, फिर भूरे और अंत में सफेद हो जाते हैं. धब्बे आपस में मिलकर बड़े धब्बे में परिवर्तित हो जाते है सकते और अंततः पत्ती मर जाती हैं. इस रोग का कवक पेटीओल्स, स्टोलन, फलों के डंठल और फलों पर उथले काले धब्बों के रूप में भी हमला करता है. वर्तमान और पिछली स्ट्रॉबेरी फसलों से संक्रमित पत्तियां बारिश और ऊपरी सिंचाई से पानी के छींटे की वजह से रोग फलता है.लंबे समय तक नम अवधि इस रोग को फैलाने में सहायक होता है. इस रोग के प्रबंधन के लिए आवश्यक है की हल्की हल्की सिंचाई की जाय ,रोगग्रस्त पौधों को खेत से बाहर करते रहना चाहिए. साफ सुथरी खेती पर ज्यादा जोर देना चाहिए. रोग की उग्र अवस्था में किसी फफुंदनाशी यथा मैंकोजेब,साफ या हेक्साकोनाजोल की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर 10 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करना चाहिए.

ग्रे मोल्ड

यह रोग स्ट्रॉबेरी सहित फूलों, सब्जियों और फलों की एक विस्तृत श्रृंखला पर होता है. इस रोग का कवक फूल, फल, डंठल, पत्तियों और तनों पर हमला करता है.फूल आने के दौरान संक्रमित फूल और फलों के डंठल तेजी से मर जाते हैं. हरे और पके फल भूरे रंग के गलन के रूप में विकसित हो जाते हैं. यह पूरे फल में फैल जाता है, जो सूखे, भूरे रंग के बीजाणुओं के समूह से आच्छादित हो जाता है. सड़न फल के किसी भी हिस्से पर शुरू हो सकती है, लेकिन सबसे अधिक बार कैलेक्स सिरे पर या अन्य सड़े हुए फलों को छूने वाले फल के किनारों पर पाई जाती है.

कवक पौधे के मलबे पर अधिक दिखाई देता है और फूलों के हिस्सों को संक्रमित करता है, जिसके बाद यह या तो फल सड़ जाता है या फल के आगे पकने तक निष्क्रिय रहता है. बीजाणु, जो पूरे फलने के मौसम में लगातार उत्पन्न होते हैं, पौधों को संक्रमित करने के लिए अंकुरित होते हैं.हवा और बारिश या ऊपरी सिंचाई से पानी के छींटे इस रोग के बढ़ने में सहायक होते है. इस रोग के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ है,कम तापमान, उच्च आर्द्रता और लगातार बारिश इत्यादि. पत्ती धब्बा रोग में बताए गए उपाय इस रोग में भी कारगर होते है.

रेड स्टेल/रेड कोर रोग

लाल स्टील से प्रभावित पौधे शुष्क मौसम में मुरझा जाते हैं.

पुराने पत्ते विशेष रूप से किनारे के साथ पीले या लाल हो जाते हैं.लाल स्टेल की पहचान करने में मदद करने वाला लक्षण जीवित सफेद जड़ों के केंद्र (स्टील) में ईंट लाल रंग का मलिनकिरण है.लाल रंग जड़ की लंबाई बढ़ा सकता है, या यह मृत जड़ की नोक के ऊपर केवल थोड़ी दूरी के लिए दिखाई दे सकता है.यह लक्षण केवल सर्दी और बसंत के दौरान ही स्पष्ट होता है.मलिनकिरण पौधे के मुकुट तक नहीं फैलता है.

संक्रमित पौधे आमतौर पर जून या जुलाई तक मर जाते हैं.

पौधों की वृद्धि धीमी हो जाएगी और वे सुस्त नीले हरे हो जाएंगे. वसंत में पौधे कुछ हद तक ठीक हो जाएंगे.

इस रोग से प्रभावित पौधा केवल कुछ फूल बनाएगा.

छोटे फल सूख जाएंगे. जड़ों की जड़-बालों की कमी हो जाती है.मुख्य जड़ों को काटते समय, ऐसा प्रतीत होगा कि केंद्रीय भाग का रंग लाल हो गया है. रोपण सामग्री के साथ या पिछली फसलों के कचरे से रोग का प्रसार होता है.जलवायु की एक विस्तृत श्रृंखला में पाया जाता है. रोग नमी के दबाव में खराब जल निकासी वाली मिट्टी, उच्च तापमान और पौधों की रोग रोधिता रोग के प्रसार को प्रभावित करते है.हेक्साकोनाजोल नामक फफूंद नाशक की 2ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल कर दो छिड़काव 10 दिन के अंतर पर करने से रोग की उग्रता में भारी कमी आती है.

विल्ट

यह रोग विश्व के समशीतोष्ण क्षेत्रों में होता है. यह टमाटर, आलू और कपास जैसी फसलों की एक विस्तृत श्रृंखला को प्रभावित करता है. अधिकांश स्ट्रॉबेरी किस्में अतिसंवेदनशील होती हैं . इस रोग में पौधे अचानक मुरझा जाते हैं, आमतौर पर देर से वसंत या गर्मियों में गर्म दिन में.एक सप्ताह के भीतर आक्रांत पौधे मर जाते हैं.जीवित पौधों में, पुराने पत्ते झुलसे हुए दिखाई देते हैं जबकि छोटे पत्ते पीले रंग के और मुरझाए रहते हैं जब तक कि वे भी मर नहीं जाते.प्रभावित पौधों पर फल परिपक्व नहीं होते हैं, छोटे रहते हैं और उनका रंग पीला होता है.मिट्टी जिसमें अतिसंवेदनशील फसलें उगाई गई है रोगज़नक़ नम मिट्टी में कई वर्षों तक जीवित रह सकता है.  पानी से, अतिसंवेदनशील फसलों से कचरा, खरपतवार, पौधों, मिट्टी और कृषि मशीनरी के बीच जड़ संपर्क से रोग का प्रसार होता है. हेक्साकोनाजोल या कार्बेंडाजिम नामक फफुंदनाशक की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल कर आस पास की मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भीगा देना चाहिए. 10 दिन के अंतर पर इक बार पुनः आस पास की मिट्टी को भीगा देना चाहिए ,ऐसा करने से रोग की उग्रता में भारी कमी आती है.

पाउडर रूपी फफूंद

यह रोग दुनिया भर में खेती की जाने वाली सभी स्ट्रॉबेरी को प्रभावित करता है. कोई भी किस्म प्रतिरोधी नहीं है, लेकिन प्रत्येक की संवेदनशीलता अलग है.रोग का प्रारंभिक लक्षण पत्तियों के किनारों का ऊपर की ओर मुड़ जाना है.

इसके बाद ऊपरी पत्ती की सतहों पर अनियमित, बैंगनी रंग का धब्बा होता है, अक्सर प्रमुख शिराओं के साथ. पत्तियां भंगुर महसूस होती हैं.यह रोग अन्य फसलों पर भूरे रंग के सफेद बीजाणुओं का निर्माण नहीं करता है, जो पाउडर फफूंदी के विशिष्ट होते हैं.फफूंदी किसी भी स्तर पर फलों पर हमला कर सकती है. इस रोग के प्रबंधन के लिए घुलनशील सल्फर युक्त पाउडर फफूंदनाशक की 2 ग्राम मात्रा को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से रोग की उग्रता में कमी आती है. रोग की उग्रता में कमी नहीं आने की अवस्था में इसी घोल से एक छिड़काव पुनः करें. या छिड़काव धूप में नही करना चाहिए, सायं 4 बजे के बाद करना चाहिए. तरल सल्फर फफूंदनाशक की अवस्था में दवा की मात्रा 1मिली लीटर प्रति लीटर कर देना चाहिए.

अल्टरनेरिया स्पॉट रोग

ऊपरी पत्ती की सतहों पर घाव या "धब्बे" अधिक होते हैं और आकार में अनियमित से गोलाकार दिखाई देते हैं.

इन घावों में अक्सर निश्चित लाल-बैंगनी से लेकर जंग लगे-भूरे रंग की सीमाएँ होती हैं जो एक परिगलित क्षेत्र को घेरती हैं.

घाव का आकार और रूप अक्सर किस्म और तापमान से प्रभावित होता है.पत्ती के धब्बे कभी-कभी गंभीर समस्याएं पैदा करते हैं. देर से गर्मियों तक संवेदनशील किस्मों को आंशिक रूप से या पूरी तरह से हटा दिया जा सकता है. उन वर्षों में जो रोग के विकास के लिए विशेष रूप से अनुकूल हैं, वे गंभीर रूप से कमजोर हो सकते हैं. पत्ती धब्बा रोग के प्रबंधन हेतु बताए गए उपाय करने से इस रोग की भी उग्रता में कमी आती है.

काली जड़ सड़न रोग के लक्षण

सामान्य स्ट्रॉबेरी की जड़ें सफेद होती हैं, लेकिन उम्र के साथ सतह पर स्वाभाविक रूप से काली पड़ जाती हैं. काली जड़ सड़न से प्रभावित पौधे की जड़ प्रणाली छोटी होती है जिसमें काले घाव होते हैं या जड़ें पूरी तरह काली होती हैं. ऐसे पौधे बौने हो जाते हैं. विल्ट रोग के प्रबंधन हेतु बताए गए उपाय करने से इस रोग की भी उग्रता में कमी आती है.

एन्थ्रेक्नोज (ब्लैक स्पॉट) रोग

पत्तियों पर गोल काले या हल्के भूरे रंग के घाव बनते है. कई धब्बे विकसित हो सकते हैं लेकिन पत्तियां मरती नहीं हैं. तने, रनर और पेटी ओल्स पर गहरे भूरे या काले धँसे हुए धब्बे बनते है और पौधे बौने और पीले हो जाते हैं. पौधे मुरझाकर गिर भी सकते हैं,आंतरिक ऊतकों का रंग लाल हो जाता है. इस रोग के प्रबंधन के लिए आवश्यक है की हल्की हल्की सिंचाई की जाय ,रोगग्रस्त पौधों को खेत से बाहर करते रहना चाहिए. साफ सुथरी खेती पर ज्यादा जोर देना चाहिए. रोग की उग्र अवस्था में किसी फफुंदनाशी यथा मैंकोजेब,साफ या हेक्साकोनाजोल की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर 10 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करना चाहिए.

क्राउन रोग

सबसे छोटा पौधा दोपहर के समय पानी की कमी के दौरान मुरझा जाता है और शाम को ठीक हो जाता है. विल्टिंग पूरे पौधे की ओर बढ़ती है . इस रोग की वजह से पौधे की मृत्यु हो जाती है. जब क्राउन (ताज ) को लंबा काट दिया जाता है तो लाल-भूरे रंग की सड़ांध या लकीर दिखाई देती है.विल्ट रोग के प्रबंधन हेतु बताए गए उपाय करने से इस रोग की भी उग्रता में कमी आती है.

बड रोग

नम, सख्त गहरे भूरे से काले रंग की कलियों पर सड़ांध. एकल कलियों वाले पौधे मर सकते हैं. रोग बढ़ने पर कई मुकुट वाले पौधे मुरझा सकते हैं.विल्ट रोग के प्रबंधन हेतु बताए गए उपाय करने से इस रोग की भी उग्रता में कमी आती है.

फल का सड़ना

पकने वाले फलों पर हल्के भूरे रंग के पानी से लथपथ धब्बे जो गहरे भूरे या काले गोल घावों में विकसित हो जाते हैं. यह स्ट्रॉबेरी का एक प्रमुख रोग है, जो पौधे के अधिकांश भागों को प्रभावित करता है. यह पूरे सीजन में गंभीर नुकसान का कारण बन सकता है. संक्रमित मिट्टी में लगाए गए पौधे पानी और मिट्टी के छींटे मारने से संक्रमित हो जाते हैं.कवक मिट्टी में 9 महीने तक जीवित रहता है. यह रोग गर्म गीले मौसम में ज्यादा फैलता है.इस रोग के प्रबंधन के लिए आवश्यक है की हल्की हल्की सिंचाई की जाय ,रोगग्रस्त पौधों को खेत से बाहर करते रहना चाहिए . साफ सुथरी खेती पर ज्यादा जोर देना चाहिए. रोग की उग्र अवस्था में मैंकोजेब या साफ की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर 10 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करना चाहिए. फल की तुड़ाई के 15 दिन पहले किसी भी प्रकार का कोई भी कृषि रसायन के प्रयोग से बचना चाहिए ,क्योंकि स्ट्रॉबेरी के पूरे फल को खाते है.

एंगुलर लीफ स्पॉट रोग के लक्षण

पत्तियों की निचली सतहों पर बहुत छोटे पानी से भरे घाव जो बड़े होकर गहरे हरे या पारभासी कोणीय धब्बे बन जाते हैं जो बैक्टीरिया को छोड़ते हैं.घाव एक क्लोरोटिक प्रभामंडल के साथ लाल धब्बे बनाने के लिए मिलते हैं. फसल के मलबे में जीवाणु जीवित रहते हैं और अधिक सर्दी वाले पौधे पौधे के मलबे पर लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं लेकिन मिट्टी में मुक्त नहीं रह सकते.पानी के छींटे मारने से बैक्टीरिया फैल सकते हैं. वसंत ऋतु इन रोगों के विकास के लिए अनुकूल है.पत्ती धब्बा रोग के प्रबंधन हेतु बताए गए उपाय करने से इस रोग की भी उग्रता में कमी आती है.

English Summary: disease management in time for strawberry cultivation
Published on: 29 November 2024, 05:57 IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now