Mango flowering challenges: भारत में आम को ‘फलों का राजा’ कहा जाता है, और बिहार आम उत्पादन में एक महत्वपूर्ण राज्य है. आम का पुष्पन (मंजर आना) जलवायु परिस्थितियों पर अत्यधिक निर्भर करता है, और हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण इसमें गंभीर परिवर्तन देखे जा रहे हैं. तापमान में अस्थिरता, आर्द्रता में बदलाव, हवा की तेज़ गति और वर्षा की अनिश्चितता के कारण आम के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. यह लेख बिहार की कृषि जलवायु में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का विश्लेषण करते हुए आम के मंजर आने पर इसके प्रभावों और संभावित समाधान पर केंद्रित है.
बिहार की कृषि जलवायु और जलवायु परिवर्तन के संकेत
बिहार की जलवायु मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु से प्रभावित है, जहाँ ग्रीष्म, शरद, और जाड़े के मौसम में स्पष्ट भिन्नता देखी जाती है. आम का पुष्पन मुख्यतः जाड़े के अंत और वसंत ऋतु की शुरुआत में (जनवरी-फरवरी) होता है, जब न्यूनतम तापमान 10-15°C और अधिकतम तापमान 25-30°C के बीच होता है.
जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र
डॉ० राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर, बिहार से प्राप्त जलवायु संबंधित आंकड़ों के अनुसार हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण फरवरी माह के दौरान तापमान में अनियमित वृद्धि और गिरावट दर्ज की गई है. फरवरी 2025 की मौसम रिपोर्ट इस अस्थिरता को दर्शाती है जैसे.....
- 5 फरवरी 2025: अधिकतम तापमान 27.0°C और न्यूनतम तापमान 11.5°C रहा, जो सामान्य से अधिक था.
- 10 फरवरी 2025: न्यूनतम तापमान गिरकर 9.2°C हो गया, जिससे पुष्पन के आने की प्रक्रिया बुरी तरह से प्रभावित हुआ.
- 12 फरवरी 2025: तापमान फिर से बढ़कर अधिकतम 27.6°C और न्यूनतम 9.6°C हो गया, जिससे मंजर आने की प्रक्रिया अस्थिर हो गई.
इसके अतिरिक्त, सापेक्ष आर्द्रता में भी भारी उतार-चढ़ाव देखा गया, जिससे आम की परागण और फल बनने की प्रक्रिया प्रभावित हुई.
आम के मंजर आने पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रभाव आम की पुष्पन प्रक्रिया पर देखा जा सकता है. आम के मंजर आने पर पड़ने वाले प्रभाव निम्नलिखित हैं:
1. तापमान में अस्थिरता का प्रभाव
- आम के पुष्पन के लिए अनुकूल न्यूनतम तापमान 10-15°C और अधिकतम 25-30°C होना चाहिए. जब तापमान इससे अधिक या कम होता है, तो इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है:
- अत्यधिक उच्च तापमान (27-30°C से अधिक) से मंजर जल्दी परिपक्व हो जाते हैं, जिससे फूलों की गुणवत्ता खराब हो जाती है और समय से पहले झड़ने लगते हैं.
- अत्यधिक कम तापमान (10°C से कम) पर पुष्पन धीमा हो जाता है, जिससे मंजर की संख्या और गुणवत्ता प्रभावित होती है.
2. सापेक्ष आर्द्रता का प्रभाव
- सामान्यत: पुष्पन के लिए 60-80% आर्द्रता उपयुक्त होती है, लेकिन हाल के वर्षों में सुबह की आर्द्रता 97-99% और दोपहर की आर्द्रता 50-55% तक गिर रही है.
- अत्यधिक आर्द्रता एन्थ्रेक्नोज (Colletotrichum gloeosporioides) और पाउडरी मिल्ड्यू (Oidium mangiferae) जैसी फफूंदजनित बीमारियों को बढ़ावा देती है.
- कम आर्द्रता से फूलों की परागण दर कम हो जाती है, जिससे फलों की संख्या घट जाती है.
3. पछिया हवा की तीव्र गति का प्रभाव
- पछिया हवा की गति अधिक होने से मंजर की फूलों और छोटे फलों की गिरावट बढ़ जाती है.
- तेज़ हवा पराग को उड़ा सकती है, जिससे निषेचन की प्रक्रिया प्रभावित होती है.
- हवा की कम गति होने पर परागण में देरी हो सकती है, जिससे फल बनने की संभावना कम हो जाती है.
4. वर्षा की कमी का प्रभाव
- फरवरी-मार्च के दौरान हल्की बारिश पुष्पन को समर्थन देती है, लेकिन हाल के वर्षों में इस अवधि में वर्षा की कमी देखी गई है.
- मिट्टी की नमी कम होने से फूल जल्दी सूख जाते हैं और गिरने लगते हैं.
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के उपाय
जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं जैसे जैविक मल्च (गन्ने की पत्तियाँ, सूखी घास, भूसा आदि) से मिट्टी की नमी संरक्षित रखी जा सकती है और तापमान नियंत्रित किया जा सकता है. तेज़ हवा से बचाव के लिए कटहल, बाँस, नीम जैसे पेड़ लगाए जा सकते हैं. बोरॉन और जिंक स्प्रे से फूलों की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है. आम्रपाली, मल्लिका, लंगड़ा, दशहरी जैसी किस्में जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक सहनशील होती हैं. पुष्पन के दौरान रासायनिक दवाओं के प्रयोग से बचना चाहिए, ताकि परागण प्रभावित न हो.