यदि अमरूद के पौधों को बिना सधाई या कटाई - छंटाई के यूं ही छोड़ दिया जाये तो वह कुछ वर्षो के बाद बहुत बड़े हो जाते हैं जिनका प्रबंधन करना काफी मुश्किल होता है. इस तरह से पौधों का फलन श्रेत्र घट जाता है और अंदर के हिस्से में कराई फल नहीं लगते. रोपण के दो तीन माह बाद जमीन से 60-70 से.मी. की ऊंचाई पर पौधे को काट दिया जाता ताकि कटे हुए स्थान के नीचे वृद्धि उत्पन्न हो सके.
तीन - चार समान दूरी वाले प्ररोहों को तने के चारों ओर छोड़ दिया जाता है जिससे पौधे की मुख्य संरचनात्मक शाखा का निर्माण हो सके. कटाई (टांपिंग) के बाद, इन प्ररोहों को 4-5 महीने तक बढ़ने दिया जाता है जब तक की ये 40-50 से.मी. के नहीं हो जाते.
इन चुनिंदा प्ररोहो को इनकी लम्बाई के 50 प्रतिशत तक काटा जाता है, जिससे कटे हिस्से के ठीक नीचे से कल्लों का पुनः सृजन हो सके. नये सृजित कल्लों को 40-50 से.मी.लम्बाई तक बढ़ने देने के 4-5 माह बाद उनकी पुनः कटाई-छंटाई की जाती है. इसे मुख्य रूप से पौधों के वांछित आकार की प्राप्ति के लिये किया जाता है.
कटाई - छंटाई का कार्य पौध रोपण के दूसरे वर्ष के दौरान भी जारी रखा जाता है. दो वर्षों के बाद, कैनॉपी के परिधि के भीतर वाली छोटी शाखायें सघन तथा सशक्त ढ़ांचे का निर्माण करती है. सही तरीके से सधाई तथा छंटाई द्वारा तैयार किये गये पौधे का व्यास दो मीटर तथा ऊंचाई 2.5 मी. तक सीमित रखने हेतु प्रत्येक वर्ष जनवरी - फरवरी तथा मई - जून में कल्लों की कटाई की जाती है.
इसके अन्तर्गत 2 मी. (पंक्ति से पंक्ति ) ग मी. (पौध से पौध) की दूरी पर प्रति हेक्टेयर 5000 पौधों का रोपण किया जाता है. प्रारंम्भ में पौधों को बौना आकार एवं बेहतर कैनॉपी देने के लिये कटाई-छटाई कर उनकी सधाई की जाती है ताकि पहले वर्ष से ही गुणयुक्त फलों की अधिकतम उपज ली जा सकें.
एक एकल तना, जिस पर जमीन से 30-40 से.मी. तक कोई भी अवरोधी शाखायें न ही वांछित आकार के छोटे वृक्षों की संरचना के लिये जरूरी होता है. पौध रोपण के 1-2 महीने के पश्चात सभी पौधों की जमीन से 30-40 से.मी. की उॅचाई पर सामान रूप से काट दिया जाता है ताकि काटे गये भाग के नीचे से नये कल्ले निकल सकें.
कटाई-छटाई के पश्चात तने के अगल-बगल में कोई प्ररोह या शाखा नहीं होनी चाहिये. ऐसे पौधे को 40 से.मी. की ऊंचाई तक एक तना वाला पेड़ बनाने के लिये किया जाता है. कटाई (टॉपिंग) के 15-20 दिनों के पश्चात नये कल्ले निकलने लगते है. सामान्यतः टॉपिंग के पश्चात कटे हुये स्थान पर तीन या चार प्ररोहों को छोड़ दिया जाता है.
कटाई के पश्चात आमतौर पर तीन से चार माह की अवधि में प्ररोह परिपक्व हो जाता है, तो इनके लम्बाई के आधे भाग (50प्रतिशत) तक काट दिया जाता है ताकि कटे हुए स्थान के नीचे से नये प्ररोह निकल सकें. यह कार्य अपेक्षित कैनॉपी तथा सशक्त वृक्ष संरचना प्राप्त करने के लिये किया जाता है.निकले हुए प्ररोहों को तीन चार माह तक बढ़ने देने के बाद पुनः उनकी लम्बाई के 50 प्रतिशत तक छंटाई की जाती है. छंटाई के बाद नये प्ररोह निकलते हैं जिन पर फूल लगते हैं.
इस बात पर जोर दिया जाता है कि प्ररोह की कटाई-छंटाई वर्ष में तीन बार की जाये. यह अपेक्षित कैनॉपी (छत्र) विकास के लिये जरूरी है हालांकि, फल लगना उसी वर्ष से आरम्भ हो जाता है पर यह आशा नही कि जा सकती है कि प्रत्येक परोह पर फल लगेगें. पौधे के छोटे आकार को बनाये रखने के लिये कटाई-छटांई जारी रखी जानी चाहिये.
एक वर्ष के बाद प्ररोह की कटाई विशेष रूप से मई-जून सितम्बर-अक्टूबर तथा जनवरी-फरवरी में की जाती है. जनवरी-फरवरी के दौरान परोह की छंटाई के बाद नये प्ररोहों का सृजन होता है. इन्ही प्ररोहों पर फूल खिलते हैं तथा जुलाई-सितम्बर में फल लगने लगते हैं. दूसरी बार प्ररोह की छंटाई मई-जून में करते हैं. छंटाई के पश्चात नये कल्ले निकलते है तथा इन्ही कल्लों पर फूल आते हैं. इसमें फलन नवम्बर से फरवरी माह में होती हैं. इन प्ररोहां को फिर से तीसरी बार सितम्बर-अक्टूबर में छांटा जाता है. इस कार्य को प्रमुख रूप से बेहतर कैनॉपी विकास के लिये किया जाता है. अक्टूबर में की गई छंटाई से मार्च-अप्रैल में फल प्राप्त होते हैं उपरोक्त तकनीक अनूकूलतम पैदावार तथा बौने आकार के पौधों के लिये मीडो बायवानी को कायम रखने हेतु उपयुक्त है.
पुराने बागों का जीर्णोद्धार (Restoration of old gardens)
जीर्णोद्धार तकनीक के तहत अपनी उत्पादकता खो चुके वृक्षों (वार्षिक उपज में स्पष्ट कमी प्रदर्शित करने वाले) को जमीन से 1-1.5 मी. की ऊॅचाई पर मई-जून अथवा दिसम्बर-फरवरी मं इस उद्देश्य से काट देते हैं ताकि उनमें नये कल्लों का सृजन तथा स्वस्थ कल्लों से नई कैनॉपी विकसित हो सके. जीर्णोद्धार हेतु की गई कटाई-छंटाई के 4-5 माह पश्चात तक इन नये कल्लों को 40 से 50 से.मी. लम्बाई तक बढ़ने दिया जाता है.
दोबारा इन नये कल्लों को इनकी कुल लम्बाई के लगभग 50 प्रतिशत भाग तक काट देते हैं ताकि कटाई बिन्दु के नीचे अत्यधिक मात्रा में नये कल्लों का सृजन हो सके. यह कार्य मुख्य रूप से पौधे के आकार को संशोधित करने तथा उचित कैनॉपी आकार को बनाये रखने हेतु किया जाता है. कटाई-छंटाई के बाद विकसित बहु-प्ररोह, वर्षाकाल की फसल में कलियों के विकास में सक्षम होते हैं. वर्षा ऋतू में फसल लेने के इच्छुक किसान फल प्राप्ति हेतु इन प्ररोहों को बढ़ने दे सकते हैं क्योंकि सर्दी की सफल अपनी गुणवत्ता व स्वाद के कारण अधिक लाभप्रद और कीमती होती है तथा नाशीजीव प्रकोप न होने के कारण फलों से अच्छा मूल्य मिलता हैं, अतः शीतकालीन फलन को बढ़ाया देना चाहिए. वर्षा ऋतु में फलन से बचने के लिये मई-जून माह में 50 प्रतिशत कल्लों की पुनः कटाई-छंटाई करते हैं.
मई-जून में प्ररोह (कल्ले) की कटाई-छंटाई के पश्चात् प्रस्फुटित नये कल्लों में शरद ऋतु (सर्दी) में फलत की अपार क्षमता होती है. पौधे के कैनॉपी को उचित आकार देने तथा सर्दी में गुणयुक्त फलों की प्राप्ति के लिये क्रमिक एवं निश्चित अंतराल पर कटाई-छंटाई, प्रतिवर्ष करनी चाहिए.
सोनू दिवाकर, ललित कुमार वर्मा, हेमन्त साहू, सुमीत विश्वास
पं. किशोरी लाल शुक्ला उद्यानिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र राजनांदगांव (छ.ग.)