Banana Farming in Bihar: बिहार राज्य में केले की खेती का कुल क्षेत्रफल 42.92 हज़ार हेक्टेयर है, जिसमें 1968.21 हज़ार मीट्रिक टन उत्पादन होता है, जिससे प्रति हेक्टेयर 45.86 मीट्रिक टन उत्पादकता प्राप्त होती है. इसकी तुलना में पूरे भारत में केले की खेती/kele ki kheti का कुल क्षेत्रफल 962.64 हज़ार हेक्टेयर है, जिसमें 34,527.93 हज़ार मीट्रिक टन उत्पादन होता है, जिससे प्रति हेक्टेयर 35.87 मीट्रिक टन औसत उत्पादकता प्राप्त होती है.
1. बिहार में केला उत्पादन का महत्व
- बिहार भारत के शीर्ष केले उत्पादक राज्यों में से एक है.
- केले की खेती किसानों की आय में वृद्धि और रोजगार सृजन का मुख्य स्रोत है.
- वैशाली जिले को "केला हब" के रूप में जाना जाता है.
2. जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएं
जलवायु
- गर्म और आर्द्र जलवायु केला उत्पादन के लिए आदर्श है.
- सालाना 25-30°C तापमान और 100-150 सेमी वर्षा आवश्यक.
- ठंड और तेज़ हवाएँ फसल के लिए हानिकारक हो सकती हैं.
मिट्टी
- दोमट और बलुई दोमट मिट्टी, जिसमें जल निकासी अच्छी हो.
- pH स्तर 5-7.5 केला उत्पादन के लिए उपयुक्त.
- खेती की विधियाँ और तैयारी
- खेत को अच्छी तरह जुताई कर समतल बनाया जाता है.
- 2 x 2 मीटर की दूरी पर गड्ढे तैयार किए जाते हैं.
- जैविक खाद (गोबर की खाद, वर्मीकंपोस्ट) का उपयोग मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए किया जाता है.
4. केला की प्रमुख किस्में
- ग्रैंड नाइन (G-9), रोबस्टा, बसराई : सबसे लोकप्रिय किस्म, उच्च उत्पादन क्षमता.
- मालभोग, चिनिया , अलपान , चीनी चम्पा : स्वादिष्ट और क्षेत्रीय बाजार में लोकप्रिय.
5. रोपण का समय और विधि
समय
मानसून (जून-जुलाई) और बसंत (फरवरी-मार्च) में रोपण किया जाता है.
विधि
- पौधों को गड्ढों में रोपित किया जाता है.
- ऊतक संवर्धन (टिशू कल्चर) पौधों का उपयोग बेहतर गुणवत्ता और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए किया जाता है.
6. सिंचाई प्रबंधन
- केला की फसल को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है.
- ड्रिप इरिगेशन: जल बचाने और पौधों को सही मात्रा में नमी देने के लिए उपयुक्त.
- गर्मियों में 5-7 दिन और सर्दियों में 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई.
7. खाद और उर्वरक
- प्रति पौधा 10-15 किलो जैविक खाद का उपयोग.
- नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश (NPK) उर्वरक उचित अनुपात में उपयोग किए जाते हैं.
- उर्वरक का उपयोग पौधे की वृद्धि और फलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए.
8. बीमारियाँ और कीट प्रबंधन
प्रमुख बीमारियाँ:
फ्यूजेरियम विल्ट (TR-4), सिगाटोका रोग, और पनामा रोग.
रोग प्रबंधन
- जैविक उत्पाद जैसे No2wilt और AntTR4 का उपयोग.
- रोग-प्रतिरोधी किस्मों का चयन.
प्रमुख कीट
नेमाटोड्स और रूट बोरर.
कीट प्रबंधन
- जैविक और रासायनिक नियंत्रण.
- फेरोमोन ट्रैप्स और बायोपेस्टिसाइड्स का उपयोग.
9. उत्पादन और कटाई
- केला की फसल 12-14 महीने में तैयार हो जाती है.
- औसतन प्रति हेक्टेयर 50-60 टन उत्पादन.
- कटाई के बाद फलों को संभालने और भंडारण के लिए सावधानी बरती जाती है.
10. प्रसंस्करण और मूल्यवर्धन
- केले से चिप्स, पाउडर, जैम और जूस जैसे उत्पाद बनाए जाते हैं.
- बिहार में केले की प्रोसेसिंग इकाइयों की स्थापना से किसानों की आय में वृद्धि.
11. विपणन और निर्यात
- केले को स्थानीय बाजार, थोक बाजार और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेचा जाता है.
- वैशाली का केला देश के विभिन्न राज्यों और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में निर्यात किया जाता है.
12. सरकारी योजनाएँ और प्रोत्साहन
बिहार सरकार
- केला उत्पादन बढ़ाने के लिए सब्सिडी और अनुदान.
- BAMETI और कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से प्रशिक्षण.
राष्ट्रीय बागवानी मिशन
आधुनिक तकनीक अपनाने के लिए किसानों को सहायता.
- आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
- केला की खेती से किसानों की आय और जीवन स्तर में सुधार.
- ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार सृजन.
14. चुनौतियाँ और समाधान
चुनौतियां
- जलवायु परिवर्तन, बीमारियों का बढ़ता प्रभाव.
- विपणन और भंडारण की कमी.
समाधान
- उन्नत तकनीक और रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग.
- कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग इकाइयों की स्थापना.