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Updated on: 23 October, 2024 12:00 AM IST
पपीता की खेती (Image Source: Pinterest)

किसान पपीता की खेती के प्रति आकर्षित हो रहे है उन्हे लगता है की इसकी खेती में फायदे ही फायदे है लेकिन ऐसा नहीं है. यदि इसकी पूरी जानकारी के बगैर आपने पपीता की खेती शुरू कर दी फायदे की जगह नुकसान भी हो सकता है. पपीता की मार्केटिंग में कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि हर कोई इसके औषधीय एवं पौष्टिक गुणों से परिचित है. इसके विपरीत अन्य फसलों के मार्केटिंग में दिक्कत आती है.

गेहूं-धान जैसी परंपरागत फसलों की बजाय फल-फूल और सब्जी की खेती करने पर विचार करना चाहिए. पपीते की खेती/Papaya Cultivation ऐसा ही एक उपाय है जिसके माध्यम से किसान प्रति हेक्टेयर दो से तीन लाख रुपये प्रति वर्ष (सभी लागत खर्च निकालने के बाद) की शुद्ध कमाई कर सकते हैं. वैसे तो पपीता की बहुत सारी प्रजातियां है लेकिन सलाह दी जाती है की रेड लेडी पपीता की खेती/Cultivation of Red Lady Papaya करें.

पपीता की ही खेती क्यों?

पपीता आम के बाद विटामिन ए का सबसे अच्छा स्रोत है. यह कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज और वजन घटाने में भी मदद करता है, यही कारण है कि डॉक्टर भी इसे खाने की सलाह देते हैं. यह आंखों की रोशनी बढ़ाता है और महिलाओं के पीरियड्स के दौरान दर्द कम करता है. पपीते में पाया जाने वाला एन्जाइम ‘पपेन’ औषधीय गुणों से भरपूर होता है. यही कारण है कि पपीते की मांग लगातार बढ़ रही है. बढ़ते बाज़ार की मांग को देखते हुए लोगों ने इसकी खेती की तरफ ध्यान दिया है.पपीते की फसल साल भर के अंदर ही फल देने लगती है, इसलिए इसे नकदी फसल समझा जा सकता है. इसको बेचने के लिए (कच्चे से लेकर पक्के होने तक) किसान भाइयों के पास लंबा समय होता है. इसलिए फसलों के उचित दाम मिलते हैं. पपीता को 1.8X1.8 मीटर की दूरी पर पौधे लगाने के तरीके से खेती करने पर प्रति हेक्टेयर तकरीबन एक लाख रुपये तक की लागत आती है, जबकि 1.25X1.25 मीटर की दूरी पर पेड़ लगाकर सघन तरीके से खेती करने पर 1.5 लाख रुपये तक की लागत आती है. लेकिन इससे लगभग दो से तीन लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक की शुद्ध कमाई की जा सकती है.

पपीते लगाने का सर्वोत्तम समय

पपीता उष्णकटिबंधीय फल है. इसकी अलग-अलग किस्मों को साल में तीन बार यथा जून-जुलाई अक्टूबर-नवंबर एवं मार्च अप्रैल में रोपाई किया जा सकता है. लेकिन बिहार में पपीता को जून जुलाई में लगाने की सलाह नहीं दी जाती है ,क्योंकि उस समय मानसून सक्रिय रहता है एवं पपीते की फसल पानी को लेकर बहुत संवेदनशील होती है. यदि खेत में 24 घंटे से ज्यादा पानी लग गया तो पपीता की फसल को बचा पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है. पपीता की रोपाई से लेकर फल आने तक उचित मात्रा में पानी चाहिए. पानी की कमी से पौधों और फलों की बढ़त पर असर पड़ता है, जबकि जल की अधिकता होने से पौधा नष्ट हो जाता है. यही कारण है कि इसकी खेती उन्हीं खेतों में की जानी चाहिए जहां पानी एकत्र न होता हो. गर्मी में हर हफ्ते तो ठंड में दो हफ्ते के बीच इनकी सिंचाई की व्यवस्था होनी चाहिए. अक्टूबर नवंबर में पपीता की खेती/Papaya Cultivation बहुत तेजी से प्रचलित हो रही है क्योंकि इसमें तुलनात्मक रूप से कम बीमारियां लगती है. पपीते की खेती के लिए उन्नत किस्म के बीजों को अधिकतर जगहों से ही लेना चाहिए. बीजों को अच्छे जुताई किए हुए खेतों में एक सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए. बीजों को नुकसान से बचाने के लिए कीटनाशक-फफूंदनाशक दवाइयों से उपचारित करने के बाद ही लगाना चाहिए. पपीते का पौधा लगाने के लिए 60X60X60 सेंटीमीटर का गड्ढा बनाया जाना चाहिए. इसमें उचित मात्रा में नाइट्रोजन, फोस्फोरस और पोटाश और देशी खादों को रोपाई से 1 माह पूर्व डालने के बाद 15 से 20 सेंटीमीटर की ऊंचाई का तैयार पौधा इनमें रोपना चाहिए. पपीते के बेहतर उत्पादन के लिए 20 डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 30 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान सबसे उपयुक्त होता है. इसके लिए सामान्य पीएच मान वाली बलुई दोमट मिट्टी बेहतर मानी जाती है. पपीते के पौधे/Papaya Plants में सफेद मक्खी से फैलने वाला वायरस के द्वारा होने वाला पर्ण संकुचन रोग और एफीड से रिंग स्पॉट रोग लगता है. बिना इन रोगों को प्रबंधित किए पपीता की खेती से लाभ नहीं प्राप्त किया जा सकता है.

पपीता में लगने वाले विषाणु जनित रोगों को प्रबंधित करने की डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय एवं आईसीएआर एआईसीआरपी (फ्रूट्स) द्वारा विकसित तकनीक का प्रयोग करके पपीता में लगने वाली अधिकांश बीमारियों को प्रबंधित किया जा सकता है जो निम्नवत है.

पपीता रिंग स्पाट विषाणु रोग से सहिष्णु पपीता की प्रजातियों को उगाना चाहिए. राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय में पपीता की विभिन्न प्रजातियों का परीक्षण इस बीमारी के विरूद्ध किया गया एवं पाया गया कि पपीता की रेड लेडी प्रजाति सभी प्रजातियों में सर्वश्रेष्ठ है. बीमारी के बावजूद उन्नत कृषि के द्वारा प्रथम वर्ष 65-85 कि0ग्रा0/ पौधा बाजार योग्य फल लिया जा सकता है. इस तकनीक का विस्तृत ब्यौरा निम्नवत है

नेट हाउस/पाली हाउस में बिचड़ा उगाना चाहिए जो इस रोग से मुक्त हो. क्योंकि नेट हाउस/ पाली हाउस में एफिड को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है. बिचड़ों की रोपाई ऐसे समय करनी चाहिए जब पंख वाले एफिड न हों या बहुत कम हो क्योंकि इन्हीं के द्वारा इस रोग का फैलाव होता है. प्रयोगों द्वारा पाया गया है कि बिहार में मार्च अप्रैल एवं सितम्बर-अक्टूबर रोपाई हेतु सर्वोत्तम है.

पपीता को छोटी-छोटी क्यारियों में लगाना चाहिए एवं क्यारियों के मेंड़ पर ज्वार, बाजड़ा, मक्का या ढैंचा इत्यादि लगाना चाहिए ऐसा करने से एफिड को एक क्यारी से दूसरे क्यारी में जाने में बाधा उत्पन्न होता है इसी क्रम में एफिड के मूंह में पड़ा विषाणु का कण के अन्दर रोग उत्पन्न करने की क्षमता में कमी आती है या समाप्त हो जाती है.

जैसे-ही कहीं भी रोगग्रस्त पौधा दिखाई दे तुरन्त उसे उखाड़ कर जला दें या गाड़ दें, नहीं तो यह रोग उत्पन्न करने में स्रोत का कार्य करेगा. एफिड को नियंत्रित करना अति आवश्यक है क्योंकि एफिड के द्वारा ही इस रोग का फैलाव होता है. इसके लिए आवश्यक है कि इमीडाक्लोप्रीड 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर निश्चित अन्तराल पर छिड़काव करते रहना चाहिए.

पपीता को वार्षिक फसल के तौर पर उगाना चाहिए. ऐसा करने से इस रोग के निवेश द्रव्य में कमी आती है तथा रोगचक्र टूटता है. बहुवर्षीय रूप में पपीता की खेती नहीं करनी चाहिए. पपीता की खेती उच्च कार्बनिक मृदा में करने से भी इस रोग की उग्रता में कमी आती है. मृदा का परीक्षण कराने के उपरान्त जिंक एवं बोरान की कमी को अवश्य दूर करना चाहिए. ऐसा करने से फल सामान्य एवं सुडौल प्राप्त होते हैं.

नवजात पौधों को सिल्वर एवं काले रंग के प्लास्टिक फिल्म से मल्चिंग करने से पंख वाले एफिड पलायन कर जाते हैं जिससे खेत में लगा पपीता इस रोग से आक्रान्त होने से बच जाता है. उपरोक्त सभी उपाय अस्थाई हैं इससे इस रोग की उग्रता को केवल कम किया जा सकता है समाप्त नहीं किया जा सकता है. इन उपायों को करने से रोग, देर से दिखाई देता है. फसल जितनी देर से इस रोग से आक्रान्त होगी उपज उतनी ही अच्छी प्राप्त होगी.

इस रोग का स्थाई उपाय ट्रांसजेनिक पौधों का विकास है. इस दिशा में देश में कार्य आरम्भ हो चुका है. विदेशों में विकसित ट्रांसजेनिक पौधों को यहां पर ला कर उगाया गया, तब ये पौधे रोग रोधिता प्रदर्शित नहीं कर सकें.

किस्में और उत्पादन तकनीक

पपीता की देशी और विदेशी अनेक किस्में उपलब्ध हैं. देशी किस्मों में राची, बारवानी और मधु बिंदु लोकप्रिय हैं. विदेशी किस्मों में सोलों, सनराइज, सिन्टा और रेड लेडी प्रमुख हैं. रेड लेडी के एक पौधे से 70 से 80 किलोग्राम तक पपीता पैदा होता है. पूसा संस्थान द्वारा विकसित की गई पूसा नन्हा पपीते की सबसे बौनी प्रजाति है. यह केवल 30 सेंटीमीटर की ऊंचाई से ही फल देना शुरू कर देता है, जबकि को-7 गायनोडायोसिस प्रजाति का पौधा है जो जमीन से 52.2 सेंटीमीटर की ऊंचाई से फल देता है. इसके एक पेड़ से 115 से ज्यादा फल प्रतिवर्ष मिलते हैं. इस प्रकार यह 340 टन प्रति हेक्टेयर तक की उपज देता है. अलग-अलग फलों की साइज़ 800 ग्राम से लेकर दो किलोग्राम तक होता है. आज के बाज़ार में पपीता 25 से 50 रूपये में बिकता है, लेकिन थोक बाज़ार में 15 से 20 रूपये प्रति किलो की दर से बेचने पर भी यह उपज तीन से साढ़े तीन लाख रुपये के बीच होती है. इस तरह सभी खर्चे काटने के बाद भी किसानों को दो से तीन लाख रुपये तक का लाभ हो जाता है.

पपीते के दो पौधों के बीच पर्याप्त जगह होती है. इसलिए इनके बीच छोटे आकर के पौधे वाली सब्जियां किसान को अतिरिक्त आय देती हैं. इनके पेड़ों के बीच प्याज, पालक, मेथी, मटर या बीन की खेती की जा सकती है. केवल इन फसलों के माध्यम से भी किसान को अच्छा लाभ हो जाता है. इसे पपीते की खेती के साथ बोनस के रूप में देखा जा सकता है. पपीते की फसल के सावधानी यह रखनी चाहिए कि एक बार फसल लेने के बाद उसी खेत में तीन साल तक पपीते की खेती करने से बचना चाहिए क्योंकि एक ही जगह पर लगातार खेती करने से फलों का आकार छोटा होने लगता है.

नोट : अगर आप बागवानी से जुड़ी फसलों की खेती करते हैं और इससे सालाना 10 लाख से अधिक की कमाई कर रहे हैं, तो कृषि जागरण आपके लिए MFOI (Millionaire Farmer of India Awards) 2024 अवार्ड लेकर आया है. यह अवार्ड उन किसानों को पहचानने और सम्मानित करने के लिए है जो अपनी मेहनत और नवीन तकनीकों का उपयोग करके कृषि में उच्चतम स्तर की सफलता प्राप्त कर रहे हैं. इससे जुड़ी अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर विजिट करें.

English Summary: Adopt these methods to get more yield from papaya cultivation in November
Published on: 23 October 2024, 11:27 IST

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