बारिश के मौसम में पशुओं को कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं, इसलिए उन्हें इस मौसम में ज्यादा बाहर नहीं चराना चाहिए. बारिश में कई तरह के कीड़े ज़मीन से निकलते हैं और पशु घास पर बैठ जाते हैं औऱ उस घास को खा भी लेते हैं. इस कारण पशुओं को कई गंभीर बीमारियां हो जाती हैं. अगर इन बीमारियों का इलाज समय पर न कराया जाए, तो पशुओं की मृत्यु भी हो सकती है. बता दें कि दुधारू पशुओं में 2 प्रकार के परजीवी होते हैं.
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भीतरी परजीवी (पेट के कीड़े)
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बाहरी परजीवी (दाद या जूं और किलनी)
भीतरी परजीवी
पशुओं के पेट में कीड़े होने का समस्या ज्यादा होती है. अगर नवजात गाय या भैंस के बच्चों के पेट में कीड़े लग जाए, तो उनके मरने की संभावना भी रहती है. इसका बुरा प्रभाव बड़े दुधारू पशुओं पर बी पड़ती है. ऐसे में पशु चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें. इसके अलावा नवजात बच्चों को 15 दिन के अंदर कीड़े मारने की दवा ज़रूर देते रहें. बारिश शुरू होते ही दवा की एक-एक खुराक पिलाते रहे. अगर पशु बड़े हैं, तो 6 से 7 महीने के अन्तराल पर साल में 2 बार पेट के कीड़े मारने की दवाई दें.
बाहरी परजीवी
दुधारू पशुओं में दाद खाज, खुजली, लाइस और टिक इनफेक्शन जैसी बीमारियां देखी जाती है. आइए आपको इन बीमारियों के लक्षण औऱ रोकथाम के तरीके बताते हैं.
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स्कैबीज (खाज या खुजली)
इसमें पशुओं की त्वचा मोटी हो जाती है, साथ ही पपड़ी बन जाती है. इस कारण पशु बेचैन रहते हैं. इसकी रोकथाम के लिए खुजली वाली जगह को टेंटमासाल या नीको से साफ करके सुखा दे. इसके बाद लोरेक्सेन क्रीम या एस्केबियाल क्रीम लगाएं. यह प्रक्रिया लगातार 1 अंतर से करते हैं.
लाइस और टिक इनफेक्शन (जूं,किलनी लग जाना)
यह एक परजीवी रोग है, जो पशु में सबसे ज्यादा होता है. यह रोग चमड़ी में चिपक कर पशुओं का खून चूसते हैं. इससे पशुओं का शरीर कमजोर हो जाता है, साथ ही छूत की बीमारियां भी बढ़ती हैं. इसकी रोकथाम के लिए बर्ब आईएच के 2 कैप्सूल 7 दिन तक खिलाएं. इसके अलावा गैमक्सीन 5 प्रतिशत डब्लू.पी.डी.टी 10-12 प्रतिशत एक भाग और डंस ऐस का 8 भाग मिलाकर पशुओं को लगाएं.
अन्य बातों का रखें ध्यान
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पशुओं को घर में ही हरा चारा खिलाएं.
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हरे चारे में एक प्रतिशत लाल दवा (पोटेशियम परमैग्नेट) डालकर दें.
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बारिश में पशुओं के बाड़े की साफ-सफाई करते रहें.
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