हमारे देश में लाखों परिवार की जीविका पशुपालन पर आधारित है. पशुपालन का व्यवसाय कम लागत में ज्यादा आमदनी देता है. आधुनिक समय में किसान और पशुपालक, दोनों ही कई पशुओं का पालन कर रहे हैं. इनमें भेड़ पालन का नाम भी शामिल हैं. इसके पालन से ऊन, खाद, दूध और चमड़ा जैसे कई उत्पाद प्राप्त होते हैं. देश के लगभग सभी राज्यों में भेड़ पालन किया जाता है.भेड़ पालन के लिए कई नस्लों का चुनाव किया जाता है. इसमें भेड़ की गद्दी नस्ल भी शामिल है. कई पशुपालक गद्दी भेड़ का पालन करते हैं. यह एक ऐसी नस्ल है, जिसको मांस, ऊन और दूध के लिए व्यवसाय के लिए उपयुक्त माना जाता है.
कई बार गद्दी भेड़ मुंह पका-खुरपका रोग की चपेट में आ जाती हैं. इस रोग को रिकणु नाम से भी जाना जाता है. यह विषाणु जनित छूत का रोग है, जो कि बहुत जल्द एक जानवर से दूसरे जानवर में फैलता है. आइए आपको गद्दी भेड़ों में होने वाले खुर-मुंह रोग की पूरी जानकारी देते हैं.
खुर-मुंह रोग के लक्षण (Hoof-mouth disease symptoms)
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भेड़ का मुंह, जीभ, होंठ और खुरों के बीच की खाल में फफोले पड़ जाते हैं.
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भेड़ को तेज़ बुखार आता है.
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उनके मुंह से लार टपकती है.
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भेड़ लंगडी हो जाती है.
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मुंह और जीभ के अंदर छाले हो जाते हैं.
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भेड़ सही से घास नहीं खा पाती है और कमज़ोर हो जाती है.
मुंह पका-खुरपका रोग से बचाव (Prevention of mouth ulcer disease)
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अगर भेड़ इस रोग की चपेट में आ जाए, तो सबसे पहले रोग गस्त भेड़ को अन्य जानवरों से अलग कर देना चाहिए.
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भेड़ के मुंह में छालें होने पर वोरोग्लिसरिन लगा देना चाहिए.
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खुरों की सफाई लाल दवाई या नीले थोथे के घोल से कर देना चाहिए.
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पशु चिकित्सक से सलाह लेकर 4 से 5 दिन एन्टीवायोटिक इंजेक्शन लगवा लेना चाहिए.
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हर भेड़ पालक को 6 महीने के अन्तराल पर रोग से रोकथाम के लिए टीकाकरण करवाना चाहिए.