मत्स्य आहार जलीय कृषि उद्योग का सबसे महंगा घटक है, जो उत्पादन की क्षमता के आधार पर परिचालन लागत का लगभग 40-60 प्रतिशत है. इसलिए सफलतापूर्वक मछली उत्पादन में सर्वोत्तम विकास दर और आहार क्षमता को सुनिश्चित करने के लिए रनिंग कॉस्ट और सर्वोत्तम मत्स्य आहार प्रणालियों की उपलब्धता अति आवश्यक होती है. तेजी से मछली पैदावार बढ़ाने और आपूर्ति किए गए आहार के कुशल उपयोग के बीच संतुलन बनाये रखने की आवश्यकता, मछली की खेती करने वालों के लिए एक बड़ी समस्या है. इसलिए, दिन-प्रतिदिन भूख में लयबद्ध भिन्नता के कारण, आहार प्रणाली से आहार क्षति और कम आहार रूपांतरण हो सकता है. जब मछली को सेल्फ फीडर का उपयोग करके खिलाया जाता है, तो विकास और आहार रूपांतरण में सुधार होने की उम्मीद होती है, क्योंकि मछली अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के अनुरूप उपयोग करती है.
मत्स्य पालन प्रणालिओं में सीमित आहार रणनीतियों का लाभ उठाकर, आहार लागत को व्यावहारिक तरीकों से कम किया जा सकता है. सामान्यतः सीमित आहार, प्रतिपूरक वृद्धि ¼compensatory growth½ का समर्थन करता है जो विभिन्न प्रकार के गर्म-पानी और ठंडे पानी की मछली प्रजातियों में प्रदर्शित किया गया है. विभिन्न प्रकार की शारीरिक प्रतिक्रियाओं के साथ अक्सर इन मछली प्रजातियों के बीच प्रतिपूरक विकास दर को व्यक्त करने के लिए विभिन्न आहार प्रतिबंध और रीफीडिंग प्रोटोकॉल का उपयोग किया गया है. सीमित आहार अवधि के उपरांत पुनः आहार देने पर कुछ मछली प्रतिक्रियाओं में हाइपरफैगिया, बढ़ी हुई आहार दक्षता और बेहतर विकास दर शामिल हैं.
इन प्रतिक्रियाओं ने मत्स्य पालन में प्रबंधन साधन के रूप में प्रतिपूरक विकास के अध्ययन में रुचि बढ़ाई है. इस तरह की आहार रणनीतियाँ कार्मिक समय, पानी की गुणवत्ता एवं मछली-पालन गतिविधि के प्रबंधन में सुधार कर सकती हैं. प्रतिपूरक चरण के दौरान लाभ की बेहतर दर की वजह से अतिरिक्त मेटाबोलिक ऊर्जा एवं अमीनो एसिड आवश्यकताओं में वृद्धि की सम्भावना रहेगी. इस प्रकार जलीय कृषि प्रणाली में आहार प्रबंधन एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण है जिसका उद्देश्य आहार लागत को कम करना एवं मुनाफा बढ़ाना है.
आहार प्रबंधन रणनीतियों में आहार आपूर्ति (फीड डिलीवरी) एवं आहार मांग (भूख और मछली की पोषण संबंधी आवश्यकताएं) से मेल खाना जैसेः आहार दर, आवृत्ति, अवधि और खिलाने का विकल्प जैसे कारकों को शामिल करना चाहिए. मत्स्य आहार में पाचन एंजाइमों को उपयोग करके, विकास दर में वृद्धि और भोजन की लागत को कम करने के प्रयास किए गए हैं. इसी प्रकार परीक्षण किए गए अन्य तरीकों में मिश्रित भोजन प्रणाली को अपनाया गया है जिसमे उच्च और निम्न प्रोटीन वाले आहार स्तर को अलग करके उपयोग में लाना शामिल है. आहार में प्रतिबंध लगाने और फिर से आहार आपूर्ति की इस तरह की रणनीति को अपनाकर उपयोग में लाये गए खिलाने के विकल्प को कई प्रजातियों में एक सरल, आसान, व्यावहारिक रूप से लागू किया गया है जो कि आहार लागत को कम करने में सार्थक साबित हुए है. सीमित आहार रणनीतियों के माध्यम से प्राप्त मछलियों में वृद्धि, मूलरूप से दोबारा आहार खिलाने से पहले लगाए गए सीमित आहार की अवधि से संबंधित थी. इस प्रकार, जलकृषि में उपयुक्त मत्स्य आहार प्रणाली को अपनाकर मछली के प्रतिपूरक विकास को प्राप्त किया जा सकता है जो की सभी मछली प्रजातियों में भिन्न होती है.
मछलियों में वृद्धि विकास प्रदर्शन, पोषक तत्वों के उपयोग और शरीर की संरचना पर सीमित आहार व्यवस्था का प्रभाव
मत्स्य शोधकर्ताओ ने प्रदर्शित किया है कि सीमित आहार व्यवस्था अवधि की प्रतिक्रिया में वृद्धि दर में सुधार उतना ही सरल हो सकता है जितना की ज्यादा आहार उपभोग में वृद्धि के दौरान होता है. विभिन्न प्रकार की शारीरिक प्रतिक्रियाओं के साथ अक्सर मछली प्रजातियों के बीच प्रतिपूरक विकास की व्यवस्था को व्यक्त करने के लिए विभिन्न फीड प्रतिबंध और फिर से खिलाने के विकल्प (रीफीडिंग प्रोटोकॉल) का उपयोग किया गया है. प्रतिपूरक विकास दर को बढ़ाने में इस तरह की आहार रणनीतियाँ वाणिज्यिक जलीय कृषि में फायदेमंद हो सकती हैं जिसका वर्णन निम्न मछलियों जैसे - Cyprinids, Gadoids, Pleuronectids, Molatids, Cichlids, Ictalurids, Salmonids और Clariids में किया गया है.
इसके अलावा, किसानों के तालाबों में आहार परीक्षण के परिणामों ने स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया कि एक निम्न प्रोटीन स्तर ¼L P ½ के साथ एक वैकल्पिक अधिक प्रोटीन स्तर ¼H P½ वाले आहार के मिश्रित भोजन प्रणाली ¼1 L P / 1 H P½ के परिणामस्वरूप अधिक प्रोटीन स्तर ¼ H P ½ वाले आहार खिलाने की तुलना में सबसे अच्छी वृद्धि, सरल आहार उपयोग और उत्पादन हुआ. यह आहार लागत को कम करने का एक संभावित तरीका माना गया है. ये परीक्षण कैटफिश और सिल्वर कार्प में किये गए हैं. इसी तरह एक दूसरे तिलापिया प्रजाति परीक्षण में यह पाया गया कि मिश्रित भोजन प्रणाली में निम्न और उच्च-प्रोटीन वाले आहारों का उपयोग करके, तिलपिया की वृद्धि से समझौता किए बिना आहार लागत को कम करने में कारगार साबित हुए है.
निष्कर्ष
विभिन्न अध्ययनों से यह स्पष्ट है कि, सीमित आहार प्रणाली को अपनाने से मत्स्य किसानों को प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे कि आहार की कमी एवं उच्च लागत वाले आहार आपूर्ति को बढ़ाने के अवसर प्रदान करता है तथा इसके साथ साथ यह रणनीति मत्स्य किसानों को उत्पादन की लागत को कम करने के अवसर भी प्रदान करती है. मछली के उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के लिए सीमित आहार व्यवस्था प्रणाली आशाजनक हो सकती हैं. सर्दियों के दौरान आहार न खिलाकर या सीमित करके, मत्स्य पालक, आहार और श्रम लागत को कम करके और संभवतः बीमारी के नुकसान को कम करके पैसे बचा सकते हैं. इसी क्रम में प्रतिपूरक विकास के प्रभावों को अधिकतम करने और प्रतिरोधक क्षमता को अनुकूलित करने के लिए मछलियों में शोध करने की आवश्यकता है. इसके अलावा, यह प्रणाली पानी की गुणवत्ता को बनाये रखने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं.
लेखक: डॉ. पंकज कुमार, एआरएस, पीएचडी, एम.एफ.एससी.
वैज्ञानिक (मछली पोषण),
आईसीएआर-केंद्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान (CIFE),
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