हमारे देश की सामाजिक–आर्थिक प्रगति ग्रामीण भारत के विकास पर आधारित है. यही कारण है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और ग्रामीण बंधुओं के बेहतर भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार अनेक तरह की योजनाएं चला रहीं हैं. एक समय था जब दूध उत्पादन और वितरण ग्रामीण क्षेत्र की एक ऐसी आर्थिक क्रिया थी जो ना तो संगठित थी और ना प्रबंधित. इसी वजह से दूध उत्पादकों को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. जैसे- दूध का उचित मूल्य न मिलना, अधिक उत्पादन और बेचने के लिए बाज़ार न मिलना आदि.
ये सभी परेशानियां उत्पादकों में इस क्षेत्र को लेकर उदासीनता बढ़ाती थी. इसी को देखते हुए, 1965 में राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड की स्थापना की गयी. अपनी स्थापना के बाद से ही ये बोर्ड लाखों साधारण दूध उत्पादकों के जीवन में डेरी उद्योग को बेहतर भविष्य बना रही है. यह देश में डेरी विकास के लिए उत्पादन स्वामित्व,पेशेवर तरीके से प्रबंधित संस्थाओं को वित्तीय एवं तकनीकी सहयोग प्रदान करती है. झारखण्ड सरकार ने एनडीडीबी को नवगठित झारखण्ड दूध महासंघ को प्रबंधित करने की जिम्मेदारी दी है जिससे प्रदेश के दुग्ध उत्पादकों को संगठित दूध प्रसंस्करण क्षेत्र से जोड़ा जा सके एवं दूध उत्पादकों को एक पारदर्शी तथा गुणवत्ता पर आधारित दूध संकलन प्रणाली के साथ ही बेहतर मूल्य दिलाया जा सके .
इस बारे में एनडीडीबी के चेयरमैन दिलीप रथ ने बताया कि – “एनडीडीबी द्वारा प्रबंधित झारखंड मिल्क फेडरेशन (जेएमएफ) ने झारखंड के दुग्ध उत्पादकों को एक पारदर्शी और गुणवत्ता आधारित दूध खरीद प्रणाली प्रदान की है, ताकि संगठित दूध प्रसंस्करण क्षेत्र को अधिक से अधिक सुविधा मिल सके. डेयरी बोर्ड के प्रयासों से दुग्ध उत्पादकों के लिए मूल्य सुनिश्चित करने और बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मजबूती आई है.
एनडीडीबी द्वारा शुरू किए गए अभिनव उपायों ने यह गारंटी दी कि झारखंड के शहरी क्षेत्रों से पैसा ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानांतरित हो, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण सुधार होता है. सहकारी समितियों के सदस्यों के वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए गए हैं. वर्तमान में, 100% दुग्ध उत्पादकों को सीधे उनके बैंक खातों में भुगतान प्राप्त होता है.”
एनडीडीबी के मार्गदर्शन में वर्ष 2018-19 में जेएमएफ ने 2000 से अधिक गांवोंके 562 दूध संकलन स्थलों से 20,500 दूध दाताओं से औसतन लगभग 1.25 लाख कि॰ ग्राम दूध प्रतिदिन संकलित किया है . जुलाई 2019 के महीने में दूध विपणन 1.13 लाख लीटर के चिन्ह को पार कर गया है. वर्ष 2018-19 के दौरान किसानों को दिया गया औसत मूल्य लगभग 28.20 रू॰ प्रति किलो था तथा दूध मूल्य भुगतान की कुल राशि लगभग 127.54 करोड़रूपये थी. वार्षिक बिक्री जो वर्ष 2014-15 (जेएमएफ का पहला वर्ष) में लगभग 21 करोड़ रूपये थी वह वर्ष 2018-19 के दौरान बढ़कर लगभग 173 करोड़रूपये हो गई.
आज जेएमएफ के पास 300 से अधिक डाटा प्रोसेसर पर आधारित दूध संकलन इकाइयों (डीपीएमसीयू) तथा लगभग 80 स्वचालित दूध संकलन इकाइयों (एएमसीयू) का नेटवर्क है. इसने रांची, लातेहार, देवघर तथा कोडरमा के आसपास के चार डेरी संयंत्रों में 80 बल्क मिल्क कूलर स्थापित किए हैं. रांची में स्थित होटवार संयंत्र जिसकी 1 लाख लीटर प्रतिदिन प्रसंस्करण क्षमता है वह धनबाद, हजारीबाग, रांची, जमशेदपुर, चत्रा तथा बोकारो की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है. कोडरमा डेरी संयंत्र प्रति दिन 10 हजार लीटर दूध का प्रसंस्करण करता है तथा कोडरमा, गिरीडीहतथा नवादा (बिहार) की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है. देवधर डेरी संयंत्र जिसकी प्रसंस्करण क्षमता 25 हजार लीटर प्रतिदिन है वह भागलपुर, देवघर, डुमका, गोडा, जामतारा, जमुई तथा बांका (बिहार) की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है.
लातेहार डेरी जिसकी प्रसंस्करण क्षमता 10 हजार लीटर प्रतिदिन है वह लोहारडगा, लातेहार, पलामू तथा गरवा की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है. तीन और डेरी संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं जो साहेबगंज, सारथ तथा पलामू में होंगे. प्रत्येक संयंत्र की क्षमता प्रतिदिन 50,000 लीटर होगी जिसका विस्तार 1 लाख लीटर प्रतिदिन तक किया जा सकेगा. साहेबगंज तथा सारथ संयंत्र छ: महीने में तैयार हो जाएँगे. पलामू संयंत्र एक वर्ष का समय लेगा. जेएमएफ द्वारा मेधा ब्रांड के अंतर्गत विपणन किए जा रहे सभी दूध तथा दूध उत्पाद सारे गुणवत्ता मानकों का पालन कराते हैं.
रांची में एक आधुनिक पशु आहार संयंत्र स्थापित किया गया है जो प्रतिदिन 50 मीट्रिक टन मिश्रित पशु आहार पेलेट का उत्पादन कर सकता है. इस संयंत्र का पशु आहार बायपासप्रोटीन का अच्छा स्रोत है तथा यह 100 प्रतिशत यूरिया रहित है. इसमें चीलेटेड खनिज मिश्रण होते हैं जिसमें अधिक जैविक, वृहत तथा सूक्ष्म, तत्व उपलब्ध होते हैं. इस पशु आहार से पशुओं में पोषक तत्वों की कमी से निपटा जाएगा तथा दूध की गुणवत्ता सुनिश्चित होगी.
दूध उत्पादकों को जनधन योजना के अंतर्गत बैंक खाता खोलने के लिए प्रोत्साहित किया गया. वर्तमान में 100% दूध उत्पादकों को सीधे उनके बैंक खाते में भुगतान मिलता है. हाल ही में झारखण्ड दूध महासंघ ने ‘मेधा गर्भवती तथा मातृत्व पोषण योजना’ को आरंभ किया है जिसमें दूध देने वाले सदस्यों के परिवार की गर्भवती / दूध पिलाने वाली महिला को गर्भावस्था के पहले तथा गर्भावस्था के बाद 6 कि॰ग्राम घी नि:शुल्क दिया जाता है जिससे नवजात शिशु / दूध पिलाने वाली माता को उचित पोषण देने में सहायता मिल सके .
परामर्श सेवाएँ : दूध संकलन,प्रसंस्करण तथा विपणन के अतिरिक्त जेएमएफ ने विभिन्न इनपुट गतिविधियों जैसे कि पी ई कैम्प,टीकाकरण, पशु उपचार, पशु आहार के माध्यम से डेरी पशुओं में उत्पादकता वृद्धि में पहल आरंभ की है. वर्ष 2018-19 के दौरान उत्पादकता वृद्धि सेवाओं के अंतर्गत 5 हजार से अधिक दूध उत्पादकों के 32387 पशु लाभान्वित हुए हैं. 614 उत्पादकता वृद्धि कैम्प आयोजित किए गए. 366 गावों में पशु चिकित्सा कैम्प आयोजित किए गए तथा 18523 टीकाकरण किए गए . 3587 मी॰टन पशु आहार तथा 10.74 मी॰टन चारा बीज की बिक्री के दौरान 562 दूध संकलन केन्द्रों को सम्मिलित किया गया.
देशी नस्ल : राठी (राजस्थान) तथा गिर (गुजरात) जैसी देशी नस्लों को बढ़ावा देने के लिए होटवार में एक देशी मवेशी फार्म की स्थापना की गई है. एक आधुनिक चारा प्रदर्शन फार्म विकसित किया गया है जिसमें प्रदर्शन हेतु हरा चारा, बारहमासी तथा मौसमी, दोनों उगाने का प्रावधान है.
एनडीपी : झारखण्ड, अब राष्ट्रीय डेयरी योजना चरण 1 (एनडीपी1), भारत सरकार की एक केन्द्रीय क्षेत्र योजना, के अंतर्गत शामिल कर लिया गया है . यह योजना 2011-12 से 2018-19 के दौरान 18 राज्यों में 169 अंतिम कार्यान्वयन एजेंसियों के माध्यम से चलाई जा रही है . एनडीडीबी की एनडीपी1 के अंतर्गत रू॰ 4.91 करोड़ की कुल अनुदान सहायता से झारखण्ड दूध महासंघ द्वारा दो उप परियोजनाएँ कार्यान्वित की जा रही हैं . झारखण्ड में एनडीपी1 के अंतर्गत कार्यान्वित की जा रही परियोजनाएँ इस प्रकार हैं : दुधारू पशुओं को संतुलित आहार उपलब्ध कराने के लिए न्यूनतम कीमत पर स्थानीय तौर पर उपलब्ध आहार संसाधनों का प्रयोग करते हुए स्थानीय जानकार व्यक्तियों (एलआरपी) के माध्यम से आहार संतुलन कार्यक्रम; दूध उत्पादकों को उचित तथा पारदर्शी दूध संकलन प्रणाली उपलब्ध कराने के लिए गाँव आधारित दूध संकलन प्रणाली (वीबीएमपीएस) उप परियोजना.
दूध के माध्यम से शिशु विकास में मदद करना : एनडीडीबी फाउंडेशन फॉर न्यूट्रिशन (एनएफएन) सुरक्षित दूध तथा दूध उत्पाद उपलब्ध करवाकर स्कूली बच्चों में कुपोषण की समस्या का उन्मूलन करने में योगदान दे रहा है . एनएफएन का ‘गिफ़्टमिल्क’ कार्यक्रम एनडीडीबी की सहायक कंपनियों तथा पीएसयू की कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) वचनबद्धता के अंतर्गत दान एकत्र कर सरकारी स्कूल में बच्चों को सप्ताह में पाँच दिन नि:शुल्क फोर्टिफाइड पाश्चरीकृत / स्टरलाइज्ड फ्लेवर्ड दूध उपलब्ध करता है . एनएफएन का ‘गिफ़्टमिल्क’ कार्यक्रम लातेहार तथाबोकारो के सरकारी स्कूल के बच्चों के लिए 2017-18 में आरंभ हुआ था. इस पहल के परिणाम को ध्यान में रखते हुए झारखण्ड सरकार इस कार्यक्रम को झारखण्ड के अन्य जिलों में भी पहुचाना चाहती है .झारखण्ड सरकार की कान्हा योजना के अंतर्गत जेएमएफ को गिफ़्टमिल्क पहल की ज़िम्मेदारी दी गई है तथा लातेहार,रांची,गुमला,हजारीबाग,सिमडेगा, खूंटी,लोहारडागा तथा रामगढ़ में 1 लाख बच्चों को शामिल करने का उत्तरदायित्व दिया गया है . भारत के माननीय प्रधानमंत्री ने 17 फरवरी 2019 को इस योजना का उद्घाटन किया . इसके पश्चात रांची,लातेहार तथा हजारीबाग के स्कूली छात्रों को इस योजना के अंतर्गत दूध मिल रहा है .
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