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Updated on: 20 November, 2022 12:00 AM IST
गोवंश में लंपी रोग का प्रकोप एवं उसका प्रबंधन

लंपी स्किन डिजीज (Lumpy Skin disease) या ढेलेदार त्वचा रोग है, जो गाय-भैंसों को संक्रमित करती है. इस रोग में शरीर पर गाँठे बनने लगती हैं, खासकर सिर, गर्दन, और जननांगों के आस-पास. धीरे-धीरे ये गांठे बड़ी होने लगती हैं फिर वे घाव में तब्दील हो जाते हैं. पशुओ को तेज भुखार के लक्षण देखने को मिलते हैं. दुधारू पशु दूध देना कम कर देते हैं और मादा पशुओं में गर्भपात भी देखने को मिलता है. कई बार तो पशुओ की मौत भी हो जाती है. लंपी स्किन डिजीज मच्छरों, जू, ततइया और मक्खियों जैसो कीटों से फैलता है. इसके साथ ही यह दूषित पानी, लार एवं चारे के माध्यम से भी पशुओं को संक्रमित करता है. इस रोग को फैलने के लिए गर्म एवं नमी वाला मौसम इसके लिए अनुकूल हैं ठंडा मौसम आने पर इस रोग का प्रकोप कम हो जाता है.

विश्व में यह बीमारी 93 साल पहले 1929 में अफ्रीकी देश जाम्बिया में मिली थी, उसके बाद यह बीमारी 1943-1945 के बीच जिम्बॉब्वे और साउथ अफ्रीका, 1949 में अफ्रीका में इस बीमारी के कारण 80 लाख मवेशी प्रभावित हुए थे. उसके बाद यह बीमारी अफ्रीका महाद्वीप के बाहर पहली बार इजराइल में सन् 1989 में फैली, 2019 में बांग्लादेश के साथ साउथ एशिया में फैली इसके बाद भारत में अगस्त 2019 में लंपी का पहला केस मिला.

भारत में यह रोग सर्वप्रथम पश्चिम बंगाल में वर्ष 2019 में देखा गया, तथा बाद में यह रोग तमिलनाडु, कर्नाटक, ओडिसा, केरल, आसाम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और अब राजस्थान राज्य में पशुओं में देखा गया है. राजस्थान में यह रोग जोधपुर संभाग में बहुत अधिक मात्रा में फैल रहा है. इस रोग की चपेट में लाखों की तादाद मवेशी आए और उनकी जिनमें से हाजारों की मौत हो गई. अब इस रोग को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा तेजी से फैलने वाले रोगों की सूची में रखा गया हैं.    

लंपी रोग का फैलाव

लंपी स्किन डिजीज प्रीपॉक्स वायरस से फैलता है. यह रोग एक पशु से दूसरे पशुओं में फैलता है. यह रोग मच्छरों, जू, ततइया, मक्खियों, पानी और चारे के द्वारा फैलता है. इस रोग का संक्रमण तेज गर्मी एवं पतझड़ के मौसम में अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि मक्खियां भी अधिक संख्या में बढ़ जाती है. वायरस नाक-स्राव, लार, रक्त और लेक्रिमल स्राव में स्रावित होता है. यह रोग गाय का दूध पीने से बछड़ों को भी संक्रमित कर सकता है. संक्रमण के 42 दिनों तक वीर्य में भी वायरस बना रहता है. जिसके कारण यह रोग मादा पशु के साथ आने वाली संतती में फैल सकता है.यह वायरस मनुष्य के संक्रमणीय नहीं है. अभी तक इस बीमारी से राजस्थान (3.10 लाख), गुजरात (72 हजार), पंजाब (27 हजार), हरियाणा (7100), हिमाचल प्रदेश (500) तथा उत्तराखंड (1025) मवेशी बीमार हो चुके हैं. जिनकी मृत्यु दर 5-10 प्रतिशत है.

लंपी रोग के लक्षण 

इस रोग से ग्रसित पशुओं में 2-3 दिनों तक तेज बुखार रहता है. शुरुआत में गायों या भैसों की नाक भहने लगती है, आँखो में पानी बहता है और मुँह से लार गिरने लगती है.  इसके साथ ही पूरे शरीर पर 2-3 से.मी. की सख्त गाँठे उभर आती हैं. कई अन्य तरह के लक्षण जैसे की मुंह एवं साँस नली में जख्म, शारीरिक कमजोरी, लिम्फ़नोड (रक्षा परणाली का हिस्सा) की सूजन, पैरों में पानी भरना, दूध की मात्रा में कमी आना, गर्भपात, पशुओं में बांझपन मुख्यत: देखने को मिलता है. इस रोग से ज्यादातर मामलों में पशु 2-3 हफ्तों में ठीक हो जाते हैं, लेकिन मवेशी लंबे समय तक बीमार रहने पर दूध में कमी आ जाती है और पशु लंबे समय तक बीमार रहने पर उनकी मौत भी संभव है. जो की 2-5 प्रतिशत तक देखने को मिलती है.

पशुओं को लंपी रोग से बचाने के उपाय     

  • इस रोग से ग्रसित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए.

  • रोगी या रोग से ग्रसित पशु को नहीं खरीदना चाहिए.

  • इस बीमारी से ग्रसित पशुओं को एक महीने के लिए आइसोलेट (प्रथक) रखा जाना चाहिए.

  • फार्म पर रोग फैलाने वाले कीटों का प्रबंधन करना चाहिए.

  • पशु डॉक्टर की सलाह से फॉर्म पर उचित कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करना चाहिए.

  • फार्म की साफ सफाई का उचित प्रबंधन होना चाहिए.

  • फर्श एवं दीवारों को किटाणु रहित करना चाहिए. 

  • फर्श एवं दीवारों को किटाणु रहित करने के लिए फिनोल (2 प्रतिशत) या आयोडिनयुक्त कीटनाशक घोल (1:33) का उपयोग करना चाहिए.

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  • बर्तन एवं अन्य उपयोगी समान को रसायन से किटाणु रहित करना चाहिए. इसके लिए बर्तन साफ करने वाल डिटट पाउडर, सोडियम हाइपोक्लोराइड, (2-3 प्रतिशत) या कुआटर्नरी अमोनियम साल्ट (0.5 प्रतिशत) का इस्तेमाल करना चाहिए.

  • यदि किसी पशु की इस रोग के कारण मौत हो जाती है तो उस पशु को दूर ले जाकर गहरे गढ्डे में दबा देना चाहिए.

  • जो मवेशी इस रोग से ठीक हो गए हों, उनके खून, एवं वीर्य की जाँच प्रयोगशाला में करवानी चाहिए. यदि नतीजे ठीक आते हैं तो उसके बाद ही उनके वीर्य का उपयोग लेना चाहिए.

  • इस रोग के लिए राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार (हरियाणा),  भारतीय पशु चिक्तिसा अनुसंधान संस्था, इज्जतनगर (बरेली) की सहायता से एक टीका तैयार किया है. जिसका नाम लंपी-प्रो वैक-इंड है, जिसको केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लॉन्च किया है. 

  • बकरियों में होने वाले गोट पॉक्स की तरह ही इस टीके से उपचारित किया जा सकता है. गाय- भैंसों को भी गोट पॉक्स का टीका लगाया जा सकता है इसके परिणाम भी बहुत अच्छे मिल रहे हैं.

यह जानकारी कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर के सोमेंद्र मीणा, सुनीता शर्मा और सामराज सिंह चौहान द्वारा साझा की गई है. 

English Summary: Lumpy skin disease: Outbreak and management of Lumpy skin disease in cattle
Published on: 20 November 2022, 03:53 IST

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