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Updated on: 15 February, 2022 12:00 AM IST
भेड़ पालन के लिए उन्नत नस्लें

भारत में किसान भाई अपनी आय को बढ़ाने के लिए कृषि कार्यों के अलावा पशुपालन भी करते है. जो उनकी आय का एक अतिरिक्त स्रोत होता है. वैसे तो हमारे देश में अधिकांश किसान गाय, भैंस और बकरी पालन का व्यवसाय करते हैं. लेकिन देश के कई राज्यों में भेड़ पालन का व्यवसाय बड़े पैमाने पर किया जाता है.

अधिकतर हिमाचल के जनजातीय क्षेत्रों के निवासी भेड़ पालन का व्यवसाय करते है, लेकिन जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी इस व्यवसाय को किया जाता है, क्योंकि इस राज्यों की जलवायु भेड़ पालन के लिए उपयुक्त मानी जाती है. देश के छोटे और सीमांत किसानों के लिए यह एक बेहतरीन व्यवसाय हैं.

तो इस लेख में भेड़ पालन को करीब से जानते हैं.

भेड़ पालन के लिए उन्नत नस्लें (Improved breeds for sheep rearing)

देखा जाए तो भारत में लगभग 50 तरह की नस्लें पाई जाती है, लेकिन इनमें से बस 14 नस्लें ही भेड़ पालन के व्यवसाय के लिए उत्तम मानी जाती हैं. तो चलिए कुछ किस्मों की भेड़ के बारे में विस्तार से जानते हैं.

मालपुरा (Malpura)

यह नस्ल राजस्थान में पाई जाती है. इस भेड़ों के लंबे पैर होते है और दिखने में ये बहुत ही सुंदर दिखाई देते है. इन भेड़ों से पशुपालकों को 6 महीने में लगभग 500 ग्राम तक ऊन प्राप्त होता है और सालभर में इनका वजन भी 26 किलो तक पहुंच जाता है.

चोकला (Chokla)

भेड़ की यह नस्ल भी राजस्थान की है. यह भेड़ बेहतर किस्म के ऊन के लिए उत्तम मानी जाती है. इसी कारण से इस भेड़ को व्यवसाय के लिए लोग अधिक पालते है. सालभर में इसका कुल वजन लगभग 24 किलो तक होता है.

मेचेरी (mecheri)

मेचेरी नस्ल की भेड़ तमिलनाडु के कोयंबटूर इलाके में अधिक पाई जाती है. इस नस्ल की भेड़ की मांग बाजार में अधिक होती है. क्योंकि इसकी मास बहुत उच्च स्तर का होता है और उसमें कई तरह के प्रोटीन पाए जाते है. इसलिए इसका मांस बाजार में महंगे दामों पर बिकता है.

मारवाड़ी (Marwari)

इस नस्ल की भेड़ के नाम से पता चलता है, कि यह राजस्थान की भेड़ है, लेकिन इस नस्ल की भेड़ गुजरात में अधिक देखी जाती है. व्यापारियों के लिए यह भेड़ बहुत अच्छी है. क्योंकि यह हर 6 महीने में लगभग 650 ग्राम तक ऊन देती है.

मुजफ्फरनगरी (Muzaffarnagari)

इस नस्ल की भेड़ को व्यापारियों को लिए उत्तम माना जाता है. क्योंकि इसे ऊन और मांस होने के लिए पालना जाती है. यह नस्ल उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, हरियाणा, दिल्ली और उत्तराखंड में पाई जाती है. इस भेड़ से भी हर 6 महीने में लगभग 600 ग्राम तक ऊन प्राप्त होता है. और यह भेड़ 32 किलो वजन तक होती है.

पाटन वाड़ी (Patan Wadi)

इस नस्ल की भेड़ को कई नामों से जाना जाता है. जैसे कि कुटची, वधियारी चारोतरी और इसे देसी भेड़ भी कहते है. इस भेड़ से भी आपको हर 6 महीने में लगभग 600 ग्राम तक ऊन प्राप्त होता है.

डेक्कनी (Deccani)

यह नस्ले भारत के कई राज्यों में पाई जाती है और अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे कि सोलापुरी, कोलापुरी, संगामनरी और लोनंद कहा जाता है. इन भेड़ों का रंग काला होता है. यह भेड़ मुख्यता मांस उत्पादन के लिए पाली जाती है.

नेल्लौरी (Nellauri)

इस भेड़ का वजन लगभग 3 किलो का होता है और यह साल भर में 27 किलो तक हो जाती है. यह भेड़ आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में देखने को मिलती है.

गद्दी (Cushion)

इस नस्ल की भेड़ पहाड़ी इलाकों में पाई जाती है. इस भेड़ का वजन किलो 17 किलो तक होता है. और यह हर 6 महीने में 450 ग्राम तक ऊन देती है.

English Summary: Know here about the improved breeds of sheep rearing
Published on: 15 February 2022, 11:53 IST

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