गर्मी के दिन जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं तापमान में वैसे-वैसे बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है. ऐसे में पशुपालकों को अपने पशुओं पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है, क्योंकि गर्मी के मौसम में पशु के बीमार होने की आशंका बढ़ने के साथ साथ दुग्ध उत्पादन मे भी कमी देखी जाती है. लेकिन यदि देखरेख व खान-पान संबंधी कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखा जाए, तो गर्मी में पशु को बीमार होने से बचाया जा सकता है.
बढ़ते तापमान का पशु पर प्रभाव
पशुओं में बाहरी गर्मी के अतिरिक्त आंतरिक गर्मी (मेटाबोलिक हीट) का भी प्रभाव होता है. बाहरी गर्मी का प्रमुख स्त्रोत सूर्य होता है तथा पशु की आंतरिक क्रिया जैसे की भोजन पाचन आदि से मेटाबोलिक हीट उत्पन होती है. जैसे-जैसे दुग्ध उत्पादन और पशु की खुराक बढ़ती है, उस स्थिति में मेटावालिज्म द्वारा उत्पन्न हीट में वृद्धि होती है. भैंसों एवं गायों के लिए थर्मोन्यूट्रल जोन 5 डिग्री सेंटीग्रेड से 25 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच होता है. थर्मोन्यूट्रल जोन में सामान्य मेटाबोलिक क्रियाओं से जितनी गर्मी उत्पन्न होती है, उतनी ही मात्रा में पशु पसीने के रूप में गर्मी को बाहर निकालकर शरीर का तापमान सामान्य बनाए रखते हैं.
गर्मी के मौसम में जब तापमान बढ़ने लगता है तब पशु अपना सामान्य तापक्रम बनाए रखने के लिए खानपान में कमी, दुग्ध उत्पादन में 10 से 25 फीसदी की गिरावट, दूध में वसा के प्रतिशत में कमी, प्रजनन क्षमता में कमी, प्रतिरक्षा प्रणाली में कमी आदि लक्षण दिखाने लगते है एवं पशुओं की शारीरिक क्रियाओं में कुछ बदलाव देखने को मिलते हैं. गर्मी के मौसम में पशुओं की स्वशन गति बढ़ जाती है, पशु हांपने लगते हैं, उनके मुंह से लार गिरने लगती है. त्वचा की ऊपरी सतह का रक्त प्रभाव बढ़ जाता है, जिसके कारण आंत्रिक ऊतकों का रक्त प्रभाव कम हो जाता है.
गर्मियों में होने वाली मुख्य बीमारियां व बचाव के तरीके
लू लगना
वातावरण में नमी और ठंडक की कमी, पशु आवास में हवा की निकासी की व्यवस्था ठीक न होना , कम स्थान में अधिक पशु रखना और गर्मी के मौसम में पशु को पर्याप्त मात्रा में पानी न पिलाना लू लगने के प्रमुख कारण हैं. लू अधिक लगने पर पशु मर भी सकता है. विदेशी या संकर नस्ल के पशु में लू गलने का खतरा ज्यादा होता है.
लक्षण
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शरीर का तापमान बढ़ जाना
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पशु का बेचैन हो जाना
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पशु में पसीने व लार का स्रावण बढ़ जाना
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मुंह के आसपास झाग आ जाना
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आंख व नाक लाल होना
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नाक से खून बहना
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पतला दस्त होना
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श्वास कमजोर पड़ जाना
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उसकी हृदय की धड़कन तेज होना
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भोजन लेना कम कर देना या बंद कर देना
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पशु का अत्यधिक पानी पीना एवं ठन्डे स्थान की तलाश आदि लू-लगने के प्रमुख लक्षण है
उपचार एवं सावधानियां
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डेरी को इस प्रकार बनाये की सभी जानवरों के लिए उचित स्थान हो ताकि हवा को आने जाने के लिए जगह मिले, ध्यान रहे की पशुओं का शेड खुला हवादार हो
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लू लगने पर पशु को ठण्डे स्थान पर बांधे तथा माथे पर बर्फ या ठण्डे पानी की पट्टियां बांधे, जिससे पशु को तुरंत आराम मिले
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पशु को दाना कम तथा हरा चारा अधिक दें. पशु को बर्फ के टुकड़े चाटने के लिए उपलब्ध करवाएं
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पशु को हवा के सीधे संर्पक बचाना चाहिए
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पशु को प्रतिदिन 1-2 बार ठंडे पानी से नहलाना चाहिए तथा पीने के पानी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए
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मवेशियों को गर्मी से बचाने के लिए पशुपालक उनके आवास में पंखे, कूलर और फव्वारा सिस्टम लगा सकते हैं
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दिन के समय में पशुओं को अन्दर बांध कर रखें
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लू की चपेट में आने और ठीक नहीं होने पर पशु को तुरंत पशुचिकित्सक को दिखाएं
अपच होना
गर्मियों में अधिकतर पशु चारा खाना कम कर देता है, खाने में अरुचि दिखता है तथा पशु को बदहजमी हो जाती है. इस समय पशु को पौष्टिक आहार न देने पर अपच व कब्ज लगने की संभावना होती है.
कारण
अधिक गर्मी होने पर कई बार पशु मुंह खोलकर सांस लेता है, जिससे उसकी जीभ बाहर निकलती है. साथ ही पशु शरीर को ठंडा रखने हेतु शरीर को चाटता है, जिससे शरीर में लार कम हो जाती है. एक स्वस्थ पशु में प्रतिदिन 100-150 लीटर लार का स्त्रवण होता है, जो पेट में जाकर चारे को पचाने में मदद करती है. लार के बाहर निकल जाने पर पेट में चारे का पाचन प्रभावित होता है एवं गर्मी के मौसम में पशुओं के पेट में भोज्य पदार्थों के पचने की गति कम हो जाती है, जिससे पाच्य पदार्थों के आगे बढ़ने की दर में कम हो जाती है और पेट की फर्मेन्टेशन क्रिया में बदलाव आ जाता है. जिससे गर्मियों में अधिकतर पशु अपच का शिकार हो जाते हैं.
लक्षण
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पशु का कम राशन लेना या बिलकुल बंद कर देना
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पशु का सुस्त हो जाना
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गोबर में दाने आना
उपचार
100 ग्राम प्याज, 10 लहसुन की कली, 10 ग्राम जीरा, 10 ग्राम हल्दी, 100 ग्राम गुड़ तथा 100 ग्राम अदरक का पेस्ट बना कर छोटे छोटे हिस्सों में दिन में 3-4 बार लगातार 3-4 दिन तक पशु को दे. एक बाल्टी पानी में 50 ग्राम मीठा सोडा घोल कर पशु को दिन में 2 बार दे. यदि 1-2 दिन बाद भी पशु राशन लेना न शुरू करे तो पशु चिकित्सक की मदद लेकर उचित उपचार करवाना चाहिए.
संक्रामक रोग तथा बचाव
मुख्यतर संक्रामक संक्रामक रोग बारिश के मौसम में फैलते हैं. लेकिन अधिक गर्मी के कारण पैदा हुए ऑक्सीकरण तनाव की वजह से पशुओं की बीमारियों से लड़नें की अंदरूनी क्षमता पर बुरा असर पड़ता है और आगे आने वाले बरसात के मौसम में वे विभिन्न बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. इसलिए पशुओं का इस मौसम में गल-घोंटू, खुर-पका मुंह-पका, लंगड़ी बुखार आदि बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण जरूर कराना चाहिये. जिससे वे आगे आने वाली बरसात में इन बीमारियों से बचे रहें.
गर्मीं में पशुओं के चारे की व्यवस्था
गर्मी के मौसम में दुग्ध उत्पादन एवं पशु की शारीरिक क्षमता बनाये रखने की दृष्टि से पशु आहार का भी महत्वपूर्ण योगदान है. गर्मी में पशुपालन करते समय पशुओं को हरे चारे की अधिक मात्रा उपलब्ध कराना चाहिए. इसके दो लाभ हैं, एक पशु अधिक चाव से स्वादिष्ट एवं पौष्टिक चारा खाकर अपनी उदरपूर्ति करता है, तथा दूसरा हरे चारे में 70-90 प्रतिशत तक पानी की मात्रा होती है, जो समय-समय पर जल की पूर्ति करता है. प्राय: गर्मी में मौसम में हरे चारे का अभाव रहता है, इसलिए पशुपालक को चाहिए कि गर्मी के मौसम में हरे चारे के लिए मार्च, अप्रैल माह में मूंग , मक्का, काऊपी, बरबटी आदि की बुवाई कर दें. जिससे गर्मी के मौसम में पशुओं को हरा चारा उपलब्ध हो सके. ऐसे पशुपालन जिनके पास सिंचित भूमि नहीं है, उन्हें समय से पहले हरी घास काटकर एवं सुखाकर तैयार कर लेना चाहिए. यह घास प्रोटीन युक्त, हल्की व पौष्टिक होती है. इस मौसम में पशुओं को भूख कम व प्यास अधिक लगती है. इसके लिए गर्मी में पशुओं को स्वच्छ पानी आवश्यकतानुसार अथवा दिन में कम से कम तीन बार अवश्य पिलाएं. इससे पशु शरीर के तापमान को नियंत्रित बनाये रखने में मदद मिलती है.
इसके अलावा पानी में थोड़ी मात्रा में नमक मिलाकर पिलाना भी अधिक उपयुक्त है. इससे अधिक समय तक पशु के शरीर में पानी की आपूर्ति बनी रहती है, जो शुष्क मौसम में लाभकारी भी हैं. पर्याप्त मात्रा में साफ सुथरा ताजा पीने का पानी हमेशा उपलब्ध होना चहिए. पीने के पानी को छाया में रखना चाहिए. पशुओं से दूध निकालनें के बाद उन्हें यदि संभव हो सके तो ठंडा पानी पिलाना चाहिए. गर्मी में 3-4 बार पशुओं को अवश्य ताजा ठंडा पानी पिलाना चहिए. पशु को प्रतिदिन ठण्डे पानी से भी नहलाने की सलाह दी जाती है. भैंसों को गर्मी में 3-4 बार और गायों को कम से कम 2 बार नहलाना चाहिए. कार्बोहाइड्रेट की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ जैसे: आटा, रोटी, चावल आदि पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए. पशुओं के संतुलित आहार में दाना एवं चारे का अनुपात 40 और 60 का रखना चहिए. गर्मियों के मौसम में पैदा की गई ज्वार में जहरीला पदर्थ हो सकता है, जो पशुओं के लिए हानिकारक होता है. अतः इस मौसम में यदि बारिश नहीं हुई है, तो ज्वार खिलाने के पहले खेत में 2-3 बार पानी लगाने के बाद ही ज्वार चरी खिलाना चहिए.
आहार में खनिज सामग्री का संशोधिकरण
क्षेत्र विशिष्ट संतुलित खनिज मिश्रण जानवरों को दैनिक रूप से प्रदान किया जाना चाहिए. इससे गर्मी के तनाव के दौरान प्रतिरक्षा को बनाए रखने में मदद मिलेगी और फीड सेवन में वृद्धि करने में भी मदद मिलेगी. उष्मागत तनाव से ग्रस्त डेयरी गायों में पसीना अधिक मात्रा में आता है और पसीने में सोडियम एवं पोटेश्यिम जैसे तत्व उच्च मात्र में पाए जाते हैं. जिसके कारण उनके शरीर में इन तत्वों की जरूरत बढ़ जाती है. इस कमी को पूरा करने के लिए अतिरिक्त मात्रा में सोडियम बाईकार्बोनेट एवं पोटेश्यिम बाईकार्बोनेट फीड में मिला कर दिया जाना चाहिए.
निष्कर्ष
गर्मी के मौसम में डेयरी पशुओं में होने वाले गर्मी तनाव के कारण भारतीय डेयरी पशुओं में उत्पादन एवं प्रजनन में कमी आती है। कुछ गर्मी तनाव अपरिहार्य हैं लेकिन निश्चित प्रथाओं का पालन करके तनाव के प्रभाव को कम किया जा सकता है।