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Updated on: 27 May, 2019 12:00 AM IST
बकरी पालन की शुरुआत कैसे करें, फोटो साभार: रोहित

How to Start Goat Farming: बकरी पालन एक बहुत लाभकारी बिजनेस है. इस बिजनेस को बेहद कम लागत में आसानी से शुरू किया जा सकता है और कई गुना मुनाफा कमाया जा सकता है. वही बकरियां आकार में छोटी होती हैं और इनके खानपान पर भी अधिक खर्च नहीं आता. इसलिए कोई भी आसानी से बकरी पालन/Goat Farming कर लेता है. यही वजह है कि देश में बकरियों को गरीबों की गाय भी कहा जाता है. इतना ही नहीं, बकरियों को बेचने के लिए स्थानीय स्तर पर बाजार भी आसानी से मिल जाता है जिस वजह से बकरी पालन करने वाले किसानों को मार्केटिंग में भी कोई दिक्कत नहीं होती है. यही वजह है कि देश के लगभग सभी इलाकों में बकरी पालन/Goat Farming किया जाता है. वही भारत में बकरियों की कई प्रकार की नस्लें/ Types of Goat Breeds in India पाई जाती हैं जिनमें से प्रत्येक की अपनी अलग-अलग अनूठी विशेषताएं होती हैं जो उन्हें देश की विभिन्न जलवायु परिस्थितियों और कृषि की जरूरतों के लिए उपयुक्त बनाती है.

ऐसे में आइए आज विस्तार से जानते हैं कि भारत में बकरियों की कितने प्रकार की नस्लें/Types of Goat Breeds in India पाई जाती हैं. यदि कोई किसान बकरी पालन करता है तो उसमें लागत कितनी आती है और कितना मुनाफा होता है. इसके अलावा किसानों को बकरियों की किन नस्लों का पालन करने पर ज्यादा मुनाफा होता है-

भारत में बकरियों की प्रजातियां/Types of Goat Breeds in India

भारत में बकरियों की 21 प्रजाति की नस्लें पाई जाती हैं. इन नस्लों की अपनी-अपनी खासियत होती है. वही बकरियों की इन नस्लों को उत्पादन के आधार पर तीन भागों में बांटा गया है. दरअसल, बकरियों की कुछ नस्लें ऐसी होती हैं जिन्हें खास तौर पर मांस उत्पादन के लिए पाला जाता है. जब आप बकरियां खरीद रहे हों तो यह ध्यान रखना जरूरी है कि कुछ नस्लें मांस उत्पादन में बेहतर होती हैं, जबकि कुछ नस्लें दूध या मोहायर (अंगोरा बकरियों से प्राप्त रेशा) उत्पादन में बेहतर होती हैं. फिर कुछ नस्लें ऐसी होती हैं जिन्हें दोहरे उद्देश्य वाली माना जाता है. दोहरे उद्देश्य वाली बकरियां ऐसी नस्लें होती हैं जो मांस और दूध दोनों उत्पादन में अच्छी होती हैं. जो पशुपालक बकरी पालन बिजनेस/Goat Farming Business शुरू करना चाहते हैं वो इन बकरियों की विशेषताओं को जानकार पालन कर सकते हैं और भारी मुनाफा कमा सकते हैं-

बकरियों की मांस उत्पादक नस्लें/ Breeds of Goats Best for Meat

बकरियों की मांस उत्पादक नस्लों में ब्लैक बंगाल, उस्मानाबादी, मारवाडी, मेहसाना, संगमनेरी, कच्छी और सिरोही आदि नस्लें शामिल हैं.

बकरियों की ऊन उत्पादक नस्लें/Wool Producing Breeds of Goats

बकरियों की ऊन उत्पादक नस्लों में कश्मीरी, चांगथांगी, गद्दी और चेगू आदि नस्लें शामिल हैं जिनसे पश्मीना शॉल की प्राप्ति होती है.

बकरियों की दूध उत्पादक नस्लें/Milk Producing Breeds of Goats

बकरियों की दूध उत्पादक नस्लों में जमुनापारी, सूरती, जखराना, बरबरी और बीटल आदि नस्लें शामिल हैं.

बकरी पालन की शुरुआत कैसे करें? How to Start Goat Farming

छोटे स्तर पर बकरी पालन शुरू करने के लिए अलग से किसी आश्रय स्थल की आश्यकता नहीं पड़ती. बकरियों को आप अपने घर पर आसानी से रख सकते हैं. बड़े पैमाने पर यदि बकरी पालन का कार्य किया जाएं, तब उसके लिए अलग से बाड़ा बनाने की जरुरत पड़ती है. साथ ही इनके लिए दाना-भूसा आदि की व्यवस्था भी करनी पड़ती है. लेकिन वह भी सस्ते में हो जाता है. दो से पांच बकरी तक एक परिवार बिना किसी अतिरिक्त व्यवस्था के आसानी से पाल सकता है. घर की महिलाएं बकरी की देख-रेख आसानी से कर सकती हैं और खाने के बाद बचे जूठन से इनके भूसा की सानी कर दी जाती है. ऊपर से थोड़ा बेझर का दाना मिलाने से इनका खाना स्वादिष्ट हो जाता है. बकरियों के रहने के लिए साफ-सुथरी एवं सूखी जगह की जरुरी होती है. इसलिए बकरी पालन की शुरुआत करने से पहले उक्त बातों का विशेष खयाल रखें. इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी गोट फार्म पर विजिट करें.

बकरियों की प्रजनन क्षमता/Fertility Capacity of Goat

आमतौर पर एक बकरी लगभग डेढ़ वर्ष की उम्र में बच्चा प्रजनन करने की स्थिति में आ जाती है और 6-7 माह में प्रजनन करती है. प्रायः एक बकरी एक बार में 3 से 4 बच्चों का प्रजनन करती है और एक साल में दो बार प्रजनन करने से इनकी संख्या में वृद्धि होती है. बच्चे को एक वर्ष तक पालने के बाद ही बेचा जाता है.

बकरियों को होने वाले प्रमुख रोग/Major Diseases in Goats

देशी बकरियों में मुख्यतः मुंहपका - खुरपका रोग के साथ पेट में कीड़ी और खुजली की समस्या होती हैं. ये समस्याएं प्रायः बरसात के मौसम में होती हैं. इसके अलावा भी कई ऐसी बीमारियां हैं जो बकरियों को होती हैं, तो आइए जानते हैं इन बीमारियों के बारें में...

कोकसीडियोसिस रोग/Coccidiosis Disease

इस बीमारी के प्रभाव में आने से बकरी के छोटे बच्चे बुखार, डायरिया, डीहाइड्रेशन आदि की समस्या के शिकार हो जाते हैं. इस बीमारी में बकरी के बच्चों का वजन भी तेजी से कम होने लगता है.

अफारा रोग/Flatulence Disease)

इस बीमारी में बकरियां तनाव में रहना शुरू कर देती हैं, वो लगातार अपने दांतों को पीसती रहती हैं  और मांसपेशियों को हिलाती हैं.

थनैला रोग/Mastitis Disease

इस बीमारी में बकरियां का लेवे गर्म और सख्त होने लगता है और भूख में भी कमी आनी शुरू हो जाती है. इस बीमारी के उपचार के लिए विभिन्न तरह के एंटीबायोटिक मौजूद हैं जैसे- सी डी पेंसीलिन, एंटीऑक्सिन, बेनामाइन, नुफ्लोर आदि.

दस्त रोग/Diarrhea Disease

इस बीमारी में बकरियों में थोड़े-थोड़े अंतराल से तरल रूप में मल का निकलना शुरू हो जाता है और  शरीर में बहुत कमजोरी आने लगती है.

निमोनिया रोग/Pneumonia Disease

इस बीमारी में बकरी को ठंड लगने लगती है, नाक से तरल पदार्थ का रिसाव होने लगता है, मुंह खोलकर सांस लेने में भी दिक्कत होती है और खांसी, बुखार आने लगता है. इससे बचाव के लिए ठंड के मौसम में जितना हो सके बकरियों को छत वाले बाड़े में ही रखें और नजदीकी पशु विशेषज्ञ से संपर्क करें.

बकरी पालन करने के फायदे (Benefits of Goat Farming)

सूखा प्रभावित क्षेत्र में खेती के साथ बकरी पालन/Bakari Palan आसानी से किया जा सकने वाला कम लागत का अच्छा बिजनेस है, इससे आमतौर पर कई लाभ होते हैं, जैसे-

  • जरूरत के समय बकरियों को बेचकर आसानी से नकद पैसा प्राप्त किया जा सकता है.
  • छोटे स्तर पर बकरी पालन करने के लिए किसी भी प्रकार की तकनीकी ज्ञान की जरुरत नहीं पड़ती.
  • बकरी पालन बहुत तेजी से बढ़ता है. इसलिए यह बिजनेस कम लागत में अधिक मुनाफा देना वाला है.
  • बकरियों को बेचने के लिए बाजार स्थानीय स्तर पर ही मिल जाता है. दरअसल, अधिकतर व्यवसायी गांव से ही आकर बकरी-बकरे को खरीदकर ले जाते हैं.
English Summary: how to start goat farming in india goat breeds and price goat farming profit
Published on: 27 May 2019, 04:59 IST

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