खुरपका रोग, जिसे अंग्रेजी में "Hoof Disease (HD)" भी कहा जाता है, पशुओं में एक संक्रामक रोग है. यह रोग खुर वाले पशुओं को प्रभावित करता है, जैसे गाय, भैंस, सूअर, भेड़-बकरी, छोटे पशु, जंगली पशु और अन्य चारपायी पशु. खुरपका रोग का कारण खुर के संपर्क में आने वाला विषाणु होता है, जिसे "एफएमडी वायरस" (FMDV) कहा जाता है. यह वायरस ट्रांसमिशन रोग है और आसानी से एक पशु से दूसरे पशु में फैल सकता है.
किन कारणों से हो सकता है यह रोग
संक्रमित पशु या संक्रमित तत्वों से संपर्क करने से खुरपका रोग फैल सकता है. खुरपका रोग के वायरस हवा के माध्यम से दूसरे पशुओं तक फैल सकते हैं. संक्रमित पशु के खून, रस, दूध और अन्य तत्वों के सेवन से भी खुरपका रोग फैल सकता है. इसलिए, संक्रमित पशु के साथ संपर्क करने वाले अन्य पशुओं को भी संक्रमित होने का खतरा होता है.
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खुरपका रोग से कैसे करें बचाव
पशुओं के आसपास के स्थानों को नियमित रूप से सफाई करें और उन्हें स्वच्छ और सुखी रखें. यदि किसी पशु में खुरपका रोग पाया जाता है, तो उसे अन्य पशुओं से अलग रखें ताकि रोग फैलने का खतरा कम हो. पशु के स्वास्थ्य की नियमित जांच और चेकअप कराने से भी इस रोग से बचाव किया जा सकता है. खुरपका रोग से बचाव के लिए पशुओं का वैक्सीनेशन भी करवाना चाहिए.
खुरपका रोग में करते हैं इन दवाओं का प्रयोग
आइवरमेक्टिन: यह एक एंटीपैराजिटिक दवा है जिसका उपयोग पशुओं में क्रिप्टोस्पोरिडियोसिस और अन्य पैराजिटिक संक्रमणों के उपचार में किया जा सकता है.
सुल्फॉनामाइड: सुल्फॉनामाइड दवाएं जैसे ट्रिमेथोप्रिम-सुल्फामेथोक्साजोल की संयोजन संक्रमण के उपचार में उपयोगी हो सकती हैं.
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वैक्सीनेशन: खुरपका रोग के खिलाफ वैक्सीनेशन का प्रयास किया जाता है. वैक्सीनेशन पशुओं को संक्रमण से बचाने और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करती है.
एंटीबायोटिक्स: संक्रमित पशुओं के लिए विशेष एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जा सकता है. यह रोगाणुओं को नष्ट करके संक्रमण के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकते हैं.
आप अगर अपने पशुओं में भी खुरपका रोग के इस तरह के कोई भी लक्षण देखते हैं तो उन्हें सबसे पहले पशु चिकित्सक को दिखाएं. बिना जानकारी के किसी भी दवा को खुद से न दें. ऊपर बताई गईं सभी दवाएं चिकित्सकीय परीक्षण के बाद ही अपने पशु को खिलाएं.