छोटे किसान और खेतिहर मजदूरों के लिए बकरी पालन करना बहुत लाभकारी साबित होता है. बकरी पालन को कम लागत, साधारण आवास और सरल रख-रखाव से सफलतापूर्वक कर सकते हैं. अगर आधुनिक समय में पशुपालक अच्छी नस्ल की बकरी का पालन करें, तो बहुत अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं. देश के उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में बकरी पालन कर दूध उत्पादन किया जाता है. हमारे देश में बकरियों की कई नस्लें पाई जाती हैं. इन सभी नस्लों की अपनी-अपनी खासियत है, हम आपको बकरी की उन्नत नस्लों की जानकारी देने वाले हैं, जिनका पालन करके पशुपालक अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं.
बीटल (Betal Goat)
बकरी की यह नस्ल दूध उत्पादन के लिए काफी उपयुक्त मानी जाती है. इसको अधिकतर पंजाब में पाया जाता है, जिसके शरीर का आकार बड़ा होता है. इसके साथ ही शरीर पर काले रंग पर सफेद या भूरे धब्बे दिखाई देते हैं. खास बात है कि इस नस्ल की बकरी के बाल छोटे और चमकीले होते हैं. इसके अलावा कान लंबे, लटके और सर के अन्दर मुड़े होते हैं.
ब्लैक बंगाल (Black Bengal)
इस नस्ल को देश के पूर्वी क्षेत्र में पाया जाता है. खासतौर पर यह पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और बिहार में होती हैं. इस नस्ल की बकरी के पैर छोटे होते हैं, इसलिए इनका कद छोटा होता है.यह काले रंग की होती है. खास बात है कि इनकी नाक की रेखा सीधी या कुछ नीचे दबी होती है.
बरबरी (Barbari Goat)
इस बकरी को यूपी के एटा, अलीगढ़ और आगरा जिलों में ज्यादा पाला जाता है. इसको अधिकतर मांस उत्पादन के लिए पाला जाता है, जो कि आकार में छोटी होती है. यह कई रंगों में पाई जाती है. खास बात है कि इनके कान नली की तरह मुड़े होते हैं. शरीर पर सफेद भूरे धब्बे दिखाई देते हैं. बकरी की यह नस्ल दिल्ली के कई क्षेत्रों के लिए भी उपयुक्त मानी जाती है.
जमुनापारी (Jamnapari Goat)
बकरी की यह नस्ल यूपी के इटावा और मथुरा समेत कई जगहों पर पाई जाती है. पशुपालक इस बकरी को दूध और मांस, दोनों के उत्पादन के लिए पालते हैं. इस नस्ल को बकरियों की सबसे बड़ी जाति माना जाता है. यह सफेद रंग की होती है, जिसके शरीर पर भूरे रंग के धब्बे होते हैं. इसकेकान काफी लंबे और सींग लगभग 8 से 9 सेमी. तक लंबे होते हैं. यह रोजाना लगभग 2 से 2.5 लीटर तक दूध दे सकती है.
सिरोही (Sirohi Goat)
राजस्थान के सिरोही जिले में इस नस्ल को ज्यादा पाया जाता है. पशुपालक इस नस्ल को दूध और मांस, दोनों के उत्पादन के लिए पालते हैं. इस नस्ल की बकरी का शरीर मध्यम आकार का होता है.इनके शरीर का रंग भूरा होता है, जिस पर हल्के भूरे रंग के और सफेद रंग के चकत्ते दिखाई देते हैं. बता दें कि इस नस्ल की बकरी के कान पत्ते के आकार की तरह लटके होते हैं. यह कम से कम 10 सेमी लंबी होती हैं, जिनकेथन छोटे पाए जाते हैं.
गद्दी (Gaddi Goat)
इस नस्ल की बकरी हिमाचल प्रदेश के कांगडा कुल्लू घाटी में ज्यादा पाई जाती है. इस बकरी को पश्मीना आदि के लिए पाला जाता है. इसके सींग काफी नुकीले होते हैं, जिनका उपयोग अधिकतर ट्रांसपोर्ट के लिए होता है.
ओस्मानाबादी(Osmanabadi Goat)
इस नस्ल को महाराष्ट्र के ओस्मानाबादी जिले में ज्यादा पाया जाता है. इसको मांस उत्पादन के लिए पाला जाता है. इनका रंग काला होता है. खास बात है कि यह सालभर में 2 बार बच्चे देती है. इतना ही नहीं, यह बकरी लगभग आधे ब्यांत में जुड़वा बच्चों को जन्म देती है. इसके कान लगभग 20 से 25 सेमी तक लंबे होते हैं.
कच्छी (Kacchi Goat)
बकरी की यह नस्ल गुजरात के कच्छ में ज्यादा पाली है. यह एक दुधारू नस्ल की बकरी है, जिसके बाल लंबे और नाक उभारी होती है. इस बकरी के सींग मोटे पाए जाते हैं, जो कि काफी नुकीले और ऊपर की ओर उठे होते हैं. इनके थन भी काफी विकसित होते हैं.
सूरती (Surti Goat)
बकरी की इस नस्ल को गुजरात के पशुपालक ज्यादा पालते हैं. यह एक दुधारू नस्ल की बकरी है, जिसका रंग अधिकतर सफेद देखा जाता है. इसके कान मध्यम आकार के होते हैं, लेकिन लटके हुए पाए जाते हैं. इसके अलावा सींग छोटे और मुड़े होते हैं. बता दें कि यह बकरी यह ज्यादा दूरी तय नहीं कर पाती है.
मारवारी (Marwari Goat)
पशुपालक इस बकरी को दूध, मांस और बाल के लिए पालते हैं. यह अधिकतर राजस्थान के मारवार जिले में देखी जाती है. इसका रंग काला और सफेद होता है. इसके साथ ही सींग कार्कस्क्रू की तरह होते हैं.
विदेशी बकरियों की उन्नत नस्लें
अल्पाइन (Alpine Goat)
बकरी की यह नस्ल स्विटजरलैंड की है. जोकि मुख्य रूप से दूध उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती है. इस नस्ल की बकरियाँ अपने गृह क्षेत्रों में औसतन 3 से 4 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन दे देती हैं.
एंग्लोनुवियन (Anglonuvian Goat)
बकरी की यह नस्ल यूरोप के विभिन्न देशों में पाई जाती है. जोकि मांस तथा दूध दोनों के लिए उपयुक्त मानी गई है. इसकी दूध उत्पादन क्षमता 2 से 3 किलो ग्राम प्रतिदिन है.
सानन (Sanan Goat)
बकरी की यह नस्ल स्विटजरलैंड में है. इसकी दूध उत्पादन की क्षमता बाकि सभी नस्लों की बकरियों से ज्यादा है. यह औसतन 3 से 4 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन अपने गृह क्षेत्रों में दे देती है.