फसल के बचे अवशेषों को लेकर कृषि विभाग ने जारी की एडवाइजरी, जानें क्या करें और क्या नहीं STIHL कंपनी ने हरियाणा में कृषि जागरण की 'एमएफओआई, वीवीआईएफ किसान भारत यात्रा' के साथ की साझेदारी कृषि लागत में कितनी बढ़ोतरी हुई है? सरल शब्दों में जानिए खेती के लिए 32 एचपी में सबसे पावरफुल ट्रैक्टर, जानिए फीचर्स और कीमत एक घंटे में 5 एकड़ खेत की सिंचाई करेगी यह मशीन, समय और लागत दोनों की होगी बचत Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Goat Farming: बकरी की टॉप 5 उन्नत नस्लें, जिनके पालन से होगा बंपर मुनाफा! Mushroom Farming: मशरूम की खेती में इन बातों का रखें ध्यान, 20 गुना तक बढ़ जाएगा प्रॉफिट! Guar Varieties: किसानों की पहली पसंद बनीं ग्वार की ये 3 किस्में, उपज जानकर आप हो जाएंगे हैरान!
Updated on: 30 October, 2020 12:00 AM IST

थनैला रोग एक जीवाणु जनित रोग है, जो ज्यादातर दुधारू पशु जैसे गाय, भैंस, बकरी आदि में होता है. इस रोग में पशु के अयन (थन) का सुजना, अयन का गरम होना एवं अयन का रंग हल्का लाल होना इस रोग की प्रमुख पहचान हैं. अधिक संक्रमण होने की अवस्था में दूध निकालने का रास्ता एक दम बारीक हो जाता है और साथ में दूध फट के आना, मवाद आना जैसे लक्षण दिखाई देते है. संक्रमित पशु के दूध को यदि मनुष्य द्वारा ग्रहण किया जाये तो मनुष्यों में कई प्रकार की बीमारियों हो सकती है, इस कारण यह रोग ओर अधिक विनाशकारी हो जाता है. 

क्यों होता है दुधारु पशुओं में थनैला रोग  

  • इस बीमारी का मुख्य कारण थनों में चोट लगने, थन पर गोबर, यूरिन अथवा कीचड़ का संक्रमण पाया गया है. दूध दोहने के समय साफ-सफाई का न होना और पशु बाड़े की नियमित रूप से साफ-सफाई न करने से यह बीमारी हो जाती है. जब मौसम में नमी अधिक होती है या वर्षाकाल का मौसम हो तब इस बीमारी का प्रकोप और भी बढ़ जाता है.

  • थनैला रोग संक्रमण तीन चरणों में करता है- सबसे पहले रोगाणु थन में प्रवेश करते हैं. इसके बाद संक्रमण उत्पन्न करते हैं तथा बाद में पशु के थन में सूजन पैदा करते है. 

  • सबसे पहले जीवाणु बाहरी थन नलिका से अन्दर वाली थन नलिकाओं में प्रवेश करते हैं वहां अपनी संख्या बढ़ाते हैं तथा स्तन ऊतक कोशिकाओं को क्षति पहुंचाते हैं. थन ग्रंथियों में सूजन आ जाती है.

पशुओं में थनैला रोग की रोकथाम के उपाय:  

  • एक पशु का दूध निकालने के बाद पशु-पालक को अपने हाथ अच्छी तरह से धोने चाहिए ताकि रोग को फैलाने में सहायक न हो सके.

  • पशुओं का आवास हवादार होना चाहिए तथा अधिक नमी नहीं होनी चाहिये. अधिक नमी में इस जीवाणु के पनपने की संभावनाएं बढ़ जाती है.

  • पशु के बाड़े और उसके आसपास साफ-सफाई रखनी चाहिए.

  • दूध निकालने से पहले एवं बाद में किसी एन्टीसेप्टिक लोशन से थन की धुलाई करके साफ कपडे से पोछना चाहिए. 

  • अधिक दूध देने वाले पशुओं को थनैला रोग का टीका भी लगवाना चाहिए . 

  • संक्रमित पशु को अलग रखना चाहिये, जिससे दूसरे पशु भी संक्रमीत न होने पाये.

  • बीमारी की जाँच शुरू के समय में ही करवाना चाहिए . इसके लिए दूध में थक्के जैसी या जैल जैसी संरचना दिखाई दे तो दूध परीक्षण करवाएं. 

  • पशु में बीमारी के लक्षण दिखाई देने पर तत्काल निकट के पशु चिकित्सालय या पशु चिकित्सक से उचित सलाह लेनी चाहिए.

English Summary: Cause of Mastitis disease in milch animal and its remedy
Published on: 30 October 2020, 04:11 IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now